एक खास बात और
हथियार के नाम पर बूमरैंग टाइप की गेंद का इस्तेमाल सैमुएल अंजुम अर्शी साहब ने अपने मास्टर ब्रेन सीरीज़ के उपन्यासों में बखूबी किया था, वो अपने किस्म का अनूठा उदाहरण है!
दुश्मन पर मास्टर ब्रेन की गेंद का वार और दुश्मन चारों खाने चित्त और गेंद फिर से मास्टर ब्रेन के हाथ में।
आप में से जिसने भी पढ़े होंगे - मास्टर ब्रेन सीरीज़ के उपन्यास, निश्चय ही भूले नहीं होंगे और खास बात यह कि यह खूबी सिर्फ मास्टर ब्रेन के उपन्यासों में ही मिलेगी।
सफदरजंग अस्पताल में 28 नम्बर वार्ड के इंचार्ज किसी समय ये ही थे और बहुत सारी नर्सों तथा वार्ड बाय को ट्रेनिंग भी दिया करते थे।
सैमुएल अंजुम अर्शी साहब मेहमाननवाजी में जवाब नहीं रखते थे। कोई भी आये - सिर आँखों पर बैठाते थे। अच्छा सत्कार करते थे और बड़े प्यार से धीरे धीरे बात करते थे।
जबरदस्त कुक भी थे। खास तौर से नानवेज बनाने में इनका जवाब नहीं था।
आप यदि दस बार इनके यहाँ गये होंगे तो हर बार आपको नयी-नयी डिश खिलाई होगी, क्योंकि इनकी याद्दाश्त भी गज़ब की हुआ करती थी और....
इससे ज्यादा और मुझसे बेहतर इनके बारे में आज के लोगों में दूसरा एक भी शख्स कुछ नहीं बता सकता।
आखिरी बार इनसे नोयडा स्थित जर्मन डिजाइन की बनी कोठी में हुई थी। बदकिस्मती से आज वो पता याद नहीं है।
और हाँ, मुसलमान नहीं, क्रिश्चियन थे और इनकी दो बीवियाँ थीं।
#योगेश मित्तल जी के स्मृति कोष से
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