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गुरुवार, 10 अगस्त 2023

क्राइम एक्सपर्ट- राकेश पाठक, उपन्यास अंश

साहित्य देश के उपन्यास अंश में इस बार पढें लोकप्रिय साहित्य के प्रसिद्ध उपन्यासकार राकेश पाठक जी के चर्चित उपन्यास 'क्राइम एक्सपर्ट' उपन्यास का एक अंश।
फोन की घण्टी बजने पर स्टाफ के साथ जश्न मना रहे इन्सपेक्टर मुकेश तिवारी ने रिसीवर उठाया तथा कान से लगाकर बोला- “हैलो, कौन ?"
"कांग्रेचुलेशन, मिस्टर तिवारी ।" दूसरी तरफ से मानो कोई गहरे कुंयें से बोल रहा था-"तुमने बहुत बड़ा कारनामा कर दिखलाया है।"
“हां, कारनामा तो किया ही है मैंने।”- मुकेश तिवारी सीने पर लगे सोने के तमगे को सहला कर बोला, "रिंगो को खत्म कर दिया है मैंने। वो साला कानून और पुलिस डिपार्टमैंट के लिये सिरदर्द और चैलेंज बना हुआ था। तभी तो सरकार ने उस पर पूरे एक करोड़ रुपये का इनाम रखा था। लेकिन तुम कौन हो ?"


“रिंगो।"
“क्या बकते हो ? पुलिस वाले से ही मजाक ? रिंगो को तो मैंने मार दिया।"
"रिंगो के पंच तत्वों से बने शरीर को ही ना, उसकी आत्मा को तो नहीं ना ?” - मानो कोई जख्मी नाग ही फुफंकारा हो, “थोड़ा-सा चूक गया मैं और तेरी गोलियों का शिकार हो गया। वरना तेरे जैसे पुलिस वाले मेरी जेबों में पड़े रहते थे। ओवर कॉन्फीडेन्स का शिकार हो गया था मैं। खरगोश और कछुवे वाली बात ही हो गई। खरगोश ने सोचा कि कछुआ तो शाम तक भी विनिंग स्पॉट पर नहीं पहुंच पायेगा, और वो सो गया। जब नींद टूटी तो कछुआ रेस जीत चुका था। मैं आत्मा हूँ 'रिंगो की आत्मा' ।"
"पागल है तू कोई ।"- मुकेश तिवारी हंसकर बोला, “रिंगो की आवाज बनाने से तू रिंगो थोड़े ही बन जायेगा। मैं आत्मा या भूत-प्रेत को कतई नहीं मानता हूं, समझे मिस्टर ?”
"मानेगा, तुझे मानना ही होगा।" - दूसरी तरफ से बोलने वाले का लहजा सर्द हो चला, "सिर्फ तू ही नहीं मुकेश तिवारी, सारी दुनिया को मानना होगा कि रिंगो का शरीर भले ही नष्ट हो गया हो, परन्तु उसकी आत्मा मौजूद है। सच बात तो ये है कि मरने के बाद मुझे बहुत मजा आ रहा है। क्योंकि मेरी ताकत बढ़ गई है। अब मुझे कोई गोली नहीं मार सकती, कोई आग जला नहीं सकती और पानी डुबो नहीं सकता। मैं अब पहले से भी ज्यादा खतरनाक हो गया हूं। मैं किसी के भी शरीर में दाखिल हो जाऊंगा और मनमर्जी के अपराध करूंगा। कत्ल, डकैती या बलात्कार ! कोई मेरा क्या बिगाड़ पायेगा भला ? पुलिस की गोलियां और फांसी का फन्दा मेरा क्या बिगाड़ेगा भला- ? एक शरीर नष्ट होगा तो मैं दूसरा शरीर धारण कर लूंगा।"
“बकवास मत कर।” - मुकेश तिवारी झुंझला कर बोला, “रिंगो को मारने की ऐवज में मुझे गोल्ड मैडल और प्रमोशन मिला है। अपने स्टाफ के लोगों के साथ जश्न मना रहा हूं। मेरा मूड ऑफ मत कर। शायद तू रिंगो का कोई चहेता है। उसकी मौत से बौखला कर ही।"
“नहीं, मैं रिंगो हूं इन्सपैक्टर।" -दूसरी तरफ से बात करने वाला चिल्लाया,- "जब तू ड्यूटी ऑफ होने पर घर जायेगा तो तुझे सबूत भी मिल जायेगा।”
“क्या सबूत देगा तू"
“मैं किसी का शरीर धारण करके तेरा कत्ल कर दूंगा।"
"यानि कोई मेरा कत्ल करेगा ?”
“कोई नहीं, मैं रिंगा... रिंगो।”
"बकवास ना कर तू। ये बकवास है कि आत्मा किसी का भी शरीर धारण कर सकती है।"
“लेकिन मेरी आत्मा शरीर धारण करके तेरा कत्ल करेगी, आज ही करेगी मुकेश तिवारी। ये बोल कि तू दुनिया में सबसे ज्यादा किसे  चाहता है? किस पर तुझे सबसे ज्यादा भरोसा है ? तेरी नजर में कौन तुझे जरा-सा भी नुकसान नहीं पहुंचा सकता है ?"
"क्यों पूछ रहा है तू ?"
"मैं तेरे उसी चहेते का शरीर धारण करके तेरा कत्ल करूंगा। जब वो तुझे मारेगा तो तुझे यकीन हो जायेगा कि उसके भीतर रिंगो की आत्मा है। बोल किस पर सबसे ज्यादा भरोसा करता है तू ? अपनी बीवी पर अपनी लाड़ली बहन पर? तू जिसका भी नाम लेगा, वो ही तेरा कत्ल करेगा, आज ही करेगा। क्योंकि मेरी आत्मा उसके शरीर मे समाकर उसके दिमाग पर अपना कब्जा कर लेगी।"
मुकेश तिवारी चकरा गया। पहली मर्तबा वो गम्भीर हुआ।
"मुझे अपनी बीवी और बहन पर पूरा भरोसा है। वो दोनों ख्वाबों में भी मेरे नुकसान के बारे में नहीं सोच सकती हैं। मेरा नौकर भी वफादार है। लेकिन इन तीनों के अलावा एक और प्राणी भी है, जो मुझे बहुत प्यार करता है। मेरे लिये वो अपनी जान भी दे सकता है। एक बार मुझ पर चलाई गई गोली के सामने वो आ गया था। गोली अपने ऊपर झेली थी उसने और मरते-मरते बचा था वो।"
“कौन ? किसकी बात कर रहा है तू ?"
"टॉमी...मेरा पालतू कुत्ता। जन्म देते ही टॉमी की माँ मर गई थी। उसे मैंने शीशी से दूध पिला-पिलाकर पाला। एक बार को मेरी बीवी और बहन तो मेरा नुकसान चाह सकती हैं, लेकिन टॉमी नहीं।”
"तो फिर ठीक है, टॉमी ही सही। आत्मा इन्सान के अलावा जानवरों के शरीर में भी दाखिल हो सकती है, उस पर काबिज हो सकती है। पहुंच तो सही तू अपने घर। तुझे पता चल जायेगा कि टॉमी के भीतर मेरी यानि रिंगो की आत्मा है कि नहीं।"
इसी के साथ दूसरी ओर से फोन कट गया ।
.........
इन्सपेक्टर मुकेश तिवारी ने फाटक पार करके लाल रंग की बुलैट मोटर साइकिल को रोका और नीचे उतर कर स्टैन्ड पर खड़ी करने लगा।
तभी काले रंग का तगड़ा कुत्ता दौड़ा हुआ आया तथा दुम हिलाते हुये मुकेश तिवारी के जूते को सूंघने लगा ।
"टॉमी...माई चाइल्ड।"- मुकेश तिवारी झुका तथा टॉमी की पीठ पर स्नेह भरा हाथ फिराते हुये बोला, "कैसा है रे तू ? मैं तेरे वास्ते गोश्त लाया हूँ। अभी उबाल कर खिलाता हूँ तेरे को"।"
"गुर्र...गुर्र...
अचानक ही टॉमी गुर्राया ।
उसकी आंखें अंगारों की तरह सुर्ख हो चलीं।
"क्या हुआ बेटा, नाराज है क्या तू?"
दो कदम पीछे हटा टॉमी और फिर उसने मुकेश तिवारी पर छलांग लगा दी।
पूरा जबड़ा खोल कर उसने अपने लम्बे, मजबूत व पैने दांत इंस्पेक्टर मुकेश तिवारी की गर्दन में गाड़ दिये। गहरी पीड़ा के साथ-साथ मुकेश तिवारी को गहन आश्चर्य भी हुआ। उसकी गर्दन से खून बहने लगा ।
"छोड़... छोड़....टॉमी ।"-  वह भिचे-भिचे से स्वर में बोला, "ये... ये क्या हो गया तुझे टॉमी, मैं तेरा मालिक मुकेश तिवारी।"
मुकेश तिवारी ने टॉमी की मोटी गर्दन को हथेलियों के शिकंजे में कसकर दबोच लिया और झटके के साथ उसे पीछे करके अपनी गर्दन को छुड़ाया।
टॉमी को दूर फेंक दिया।
गर्दन पर बने छिद्रों से तेजी के साथ खून बहे जा रहा था। वह खड़ा नहीं रह सका, सांसें घुटने लगीं। घुटनों के बल बैठकर दोनों हाथों से गर्दन पकड़कर खून रोकने की चेष्टा करने लगा ।
जमीन पर गिरने के साथ ही टॉमी गुर्राते हुये फिर उस पर झपटा। हवा में उछाल-सी धरकर उसने मुकेश तिवारी के दायें हाथ की कलाई पर दांत गड़ा दिये
"छो...छोड़ टॉमी।" - वह पीड़ा के मारे बिलबिलाते हुये बोला- "ये...ये....क्या हो गया है....आह...।"
वह बायें हाथ से टॉमी के सिर व पीठ पर घूंसे मारने लगा।
तब टॉमी ने उसके बायें हाथ को ही दबोच लिया। वो मारे पीड़ा के कराहा और घबरा कर चिल्लाया, -"ल...लच्छो.. बचाओ टॉमी मुझ पर हमला कर रहा है... आह...।"
टॉमी ने हाथ छोड़कर पुनः उसके गले पर हमला किया तथा पूरा जबड़ा खोलकर गहराई तक दांत गाड़ दिये।
मकान के भीतर से अधेड़ उम्र का नौकर निकला और उस नजारे को देखकर चौंका।
उसकी फैल चली आंखों में आश्चर्य व अविश्वास भरे भाव भर एक बारगी तो वह सकते की सी अवस्था में रह गया, फिर वो गये ।
चिल्लाता हुआ अपने मालिक की मदद को दौड़ा।
“हट...हट...ये क्या हो गया है तुझे टॉमी ?”
वह टॉमी की कोहली भर कर खींचने के लिये जोर लगाकर चिल्लाया,-  "मालिक पर ही हमला कर दिया तूने कम्बख्त ?” लच्छो एक झटके के साथ टॉमी को साथ लिये हुये पीछे की तरफ तो गिरा, लेकिन टॉमी के जबड़ों में मुकेश तिवारी की गर्दन का गोश्त भी दबा हुआ था।
मुकेश तिवारी के गले पर गायब हुये गोश्त वाली जगह पर मौखला सा बन गया था और उसमें से खून तेजी के साथ बह रहा था । टूटती हुई सांसों के साथ उसने आश्चर्य तथा अविश्वास के साथ अपने वफादार कुत्ते को देखा-फिर एक हिचकी के साथ उसने दम तोड़ दिया।
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"योर ऑनर ! कटघरे में खड़े इस शख्स की भोली-भाली सूरत पर मत जाइये। ये शातिर दिमाग वाला ऐसा खतरनाक मुजरिम है कि लोग इसे क्राइम एक्सपर्ट कहते हैं। ये जुर्म के ऐसे-ऐसे नायाब तरीके निकाल कर लाता है कि ये मुजरिम साबित नहीं हो पाता। इसने इन्स्पेक्टर मुकेश तिवारी को बदला लेने की धमकी दी थी। अदालत को मालूम है कि कैसे रिंगो की आत्मा वाला नाटक रचकर इसने पालतू  कुत्ते के जरिये इन्स्पेक्टर मुकेश तिवारी को मरवाया। अगर इस शख्स को कानून ने सजा ना दी तो ये जुर्म पर जुर्म करता चला जायेगा और ना जाने कितने घरों को तबाह करेगा। बड़ी मुश्किल से ये कानून के हाथ में आया है।"
" गलत बोल रहे हैं आप मिस्टर पब्लिक प्रोसीक्यूटर।”
कटघरे में खड़ा गोरा-चिट्टा, खूबसूरत, नीली आंखों और घुंघराले बालों वाला युवक मुस्कराते हुये बोला- “मेरे खिलाफ जब नामजद रिपोर्ट दर्ज की गई तो मैंने स्वयं को कानून के हवाले कर दिया। मिस्टर पब्लिक प्रोसीक्यूटर साबित करें कि मैंने इन्स्पेक्टर मुकेश तिवारी को कैसे मारा ? इनके स्टाफ के लोगों का ही ये बयान है कि रिंगो की आत्मा ने फोन पर इन्स्पेक्टर मुकेश तिवारी को धमकी दी थी कि वो उनके पालतू कुत्ते के भीतर दाखिल होकर उन्हें मारेगा। उनके पालतू कुत्ते टॉमी ने ही उन्हें मारा। इस बात का गवाह इन्स्पेक्टर मुकेश तिवारी का वफादार नौकर ही है। कोई यकीन करे या ना करे, लेकिन मैं भूत-प्रेत और आत्माओं पर यकीन करता हूं। मेरा मानना है कि आत्मा किसी भी प्राणी के शरीर में प्रविष्ट होकर कुछ भी कर सकती है। रिंगो की आत्मा टॉमी के जिस्म में दाखिल हुई और उसने इन्स्पेक्टर तिवारी को मार दिया।"
“भूत-प्रेत या आत्मा कुछ नहीं होती। ये सब काल्पनिक हैं।” पब्लिक प्रोसीक्यूटर ने कहा- "लोगों के ठगने के लिये ही तन्त्र-मन्त्र का नाटक करने वालों ने ये काल्पनिक पात्र घड़े हुए हैं। अगर आत्मा होती है तो रिंगो की आत्मा अदालत में आकर ये साबित करे कि वो आत्मा ही है और किसी के भी जिस्म में प्रविष्ट हो सकती है। मैं दावा करता हूं कि रिंगो की कोई आत्मा वात्मा नहीं हैं और इन्स्पेक्टर मुकेश तिवारी को कटघरे में खड़े 'क्राइम-एक्सपर्ट' ने ही योजनाबद्ध तरीके से मारा है। इसे पुलिस रिमांड पर लिया जाये। पुलिस इससे इसके तमाम जुर्मों को कबूलवा लेगी और ये पुलिस को बतलायेगा कि इसने इन्स्पेक्टर मुकेश तिवारी को मारने के लिये कौन-सी तरकीब इस्तेमाल की। ओह...ओह !”
       अचानक ही पब्लिक प्रोसीक्यूटर झटके-से खाने लगे और फिर मुंह से इ... इ...ई की घुटी घुटी सी आवाज निकालते हुये यूं छटपटाने सा लगा कि मानो बिजली के तेज झटके दिये जा रहे हों।
“मिस्टर पब्लिक प्रोसीक्यूटर।" - जज साहब अधीरता से बोले-“आप ठीक तो हैं ना ? ये क्या हो रहा है आपको ?” सरकारी वकील का चेहरा लाल-भभूका हो चला और आंखें अंगारों की तरह ही सुर्ख पड़ गईं।
"कौन पब्लिक प्रोसीक्यूटर ?” वह नथुनों को चौड़ाकर बदले हुये स्वर में बोला- "मैं रिंगो हूं रिंगो की आत्मा । ये मेरे अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा था—इसलिये मैंने इसके ही शरीर पर कब्जा कर लिया है। आप भी आत्मा के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करते जज साहब। कटघरे में खड़ा ये युवक निर्दोष है। मैंने ही इन्स्पेक्टर मुकेश तिवारी के पालतू और वफादार कुत्ते के जिस्म में प्रविष्ट होकर तिवारी को मारा था। आज मैं भरी अदालत में ये साबित करूंगा कि मैं रिंगो की आत्मा हूं। मैं वो काम करूंगा जो पब्लिक प्रोसीक्यूटर अजीत सिंहानी किसी भी कीमत पर नहीं कर सकता है।"
और फिर ।
पब्लिक प्रोसीक्यूटर अजीत सिंहानी किसी बाज की ही तरह पुलिस इन्स्पेक्टर पर झपटा और उसके होलेस्टर से रिवॉल्वर निकालकर दर्शक दीर्घा में बैठे बारह वर्षीय खूबसूरत लड़के पर फायर कर दिया।
धांय से चली गोली लड़के के माथे में सूराख करती हुई उसके सिर के पृष्ठ भाग से निकल गई।
वह लड़का बिना चीखे ही लुढ़क गया।
"न-नहींऽऽऽ !” करीब बैठी चालीस वर्षीय औरत ने उस लड़के को बांहों में भर लिया और फफक-फफककर रोते हुये बोली - "रा रामू मेरे बेटे मेरे लाल ये क्या हो गया ? तुझे जान से भी बढ़कर चाहने वाले तेरे पापा ने ही तेरी जान ले ली। नहीं बेटे आंखें खोलो अपनी मम्मी को देखो। तुम्हारी मम्मी भी तुम्हारे बिना नहीं जी पायेगी। ये ये क्या किया आपने ?” वो पब्लिक प्रोसीक्यूटर से विक्षिप्त भाव से चिल्लाकर बोली-"अपनी जान से भी बढ़कर प्यार करने वाले इकलौते बेटे को मार दिया। मेरी गोद उजाड़ दी। हे भगवान! ये क्या हो गया ?"
"हा हा हा ।" - पब्लिक प्रोसीक्यूटर अजीत सिंहानी वहशी किस्म का ठहाका लगाकर बदले हुये स्वर में बोला- "गिरा  पब्लिक प्रोसीक्यूटर को मार दिया। क्योंकि अजीत सिंहानी नहीं हूँ मैं रिंगो की आत्मा हूं। दावा कर रहा था कि रिंगो की आत्मा- वात्मा नहीं है। ये मेरे अस्तित्व को चुनौती दे रहा था। जब मैं इसके जिस्म को छोडूंगा और ये होश में आयेगा तो यही बोलेगा कि मैने अपने बेटे पर गोली नहीं चलाई। ये बेटे की लाश से लिपट कर फूट-फूट कर रोयेगा। अब मैं समझता हूं कि अदालत को यकीन हो गया होगा कि मैं रिंगो की आत्मा हूं और मैंने ही इन्स्पेक्टर मुकेश तिवारी को उसके कुत्ते के जरिये मरवाया था। अपने बाकी दुश्मनों को भी ऐसे ही मारूंगा मैं और कानून मेरा बाल भी बांका नहीं कर पायेगा । कानून सजा देगा भी तो अजीत सिंहानी को जो कि अपने बेटे का कातिल भी नहीं है। मेरे छोटे भाई को फांसी पर चढ़वाया था इस कमीने सिंहानी ने। आज मैंने अपने भाई की मौत का बदला ले लिया है। इसका बेटा मर गया और ये अपने बेटे के कत्ल के इल्जाम में फांसी या उम्रकैद की सजा भी पायेगा—क्योंकि कानून तो भूत-प्रेत या आत्मा के अस्तित्व पर यकीन नहीं करता है। मैं रिंगो की आत्मा हूं। मैं अपने दुश्मनों में इन्तकाम लूंगा और कानून के हिमायतियों के जिस्म में दाखिल होकर जुर्म पर जुर्म करता रहूंगा। आत्मा को ना तो गोली से मारा जा सकता है ना ही फांसी पर चढ़ाया जा सकता है। कानून सजा देगा भी तो उन लोगों को, जिन्हें मैं अपना माध्यम बनाऊंगा। बैंक मैनेजर के जिस्म में दाखिल होकर बैंक लूट लूंगा। जौहरी के जिस्म में दाखिल होकर उसके गहने लूट लूंगा। पति के जिस्म में दाखिल होकर उसकी ही खूबसूरत बीवी की इज्जत लूट लूंगा मैं। कोई माई का लाल नहीं रोक पायेगा मुझे कानून भी नहीं हा... हा...हा...।"
ठहाका लगाने के पश्चात् पब्लिक प्रोसीक्यूटर भरभराकर फर्श पर जा गिरा।
पूरी अदालत स्तब्ध थी—जज साहब भी। जबकि कटघरे में खड़ा घुंघराले बालों व नीली आंखों वाला युवक मुस्कराये जा रहा था।
......
स्वामी विवेकानन्द निजी पुस्तकालय
Mob. 9509583944
रायसिंहनगर, (राज0) 335051

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