साहित्य देश के 'उपन्यास अंश' स्तम्भ के अंतर्गत इस बार प्रस्तुत है उपन्यासकार हादी हसन साहब के नये उपन्यास 'हत्यारिन हूँ-विषभरी' का एक अंश। मेजर रणवीर बराड़ का कारनामा।
उपन्यास अंश....डिसूजा वो शख्स था जिस पर लाल बिहारी अपने बाद सबसे ज्यादा विश्वास किया करता था।
"आवा डिसूज़ा...आवा...!" लाल बिहारी मोटे सिगार का कोना शार्पनर से छीलता हुआ बोला—"क्या खबर लाए हो...?"
डिसूजा ने शनील की लाल रंग की थैली उसके सामने रख दी।
"ई का है ?"
"हीरे...मिस्टर लाल...इन्हें उसी रँजीत से हासिल किया गया है जो हमारे बिज़नेस में सेंध लगाने के लिए आया था।" डिसूजा भारी प्रभावी स्वर में बोला।
"रँजीत का का बना ?"
"वही जो होना था।"
"लाश...?"
"लाश कभी बरामद नहीं होती क्योंकि हमारे केस में लाश की बरामदगी एक सिरदर्द साबित होती है।"
"वैरी गुड! हम जो कहता हूँ उसके हिसाब से तुम हमरे काम का आदमी हो। इसी वास्ते हम तुम पर विश्वास किए...हम कहता बाद में हूँ तुम करते पहले हो...।"
अपनी प्रशंसा सुन कर भी डिसूजा के चेहरे पर किसी प्रकार के भाव नहीं आए। वह. सपाट चेहरा लिए एकदम सावधान की मुद्रा में अपने बॉस के सामने बड़ा रहा।
"लाश फिर भी गई कहाँ...?"
"गटर में |"
"गटर में तो वो कहीं फंस सकती है और अगर फंस गई तो पानी की निकासी में डिफेक्ट आएगा और उसके बाद हम फंस जाउंगा।"
"नहीं मिस्टर लाल...फँसने वाला काम डिसूजा नहीं करता। मैंने लाश के अनगिनत छोटे-छोटे टुकड़े करके अलग-अलग गटर से उन्हें बहा दिया है।"
"बढ़ियां...बहुत बढ़ियां...।" लाल बिहारी प्रफुल्लित स्वर में बोला—"हम कहता हूँ हमरे डिसूजा से ज्यादा काबलियत और कोन्हू सिपहसालार मा नाहीं...हमका है घमण्डवा सब्बास हमरे कमाण्डर इन चीफ... सब्बास...!"
डिस्कोथैक में पद्मिनी रॉय का डाँस आधी रात के बाद शुरू हुआ उसके दीवाने उसके डाँस के इन्तज़ार में बेहाल थे क्योंकि पोल डाँस में उस दिलकश-दिलफरेब हसीना का कोई जवाब नहीं था।
हॉल में सिर्फ डांसिंग फ्लोर ही रोशन था बाक़ी टेबिलों पर मोमबत्ती जैसा प्रकाश था। कस्टमर्स की सुविधा के लिए ऐसा भी था कि वह एक बटन की मदद से उस नाम मात्र की रोशनी को भी गुल कर सकते थे।
तेज़ रफ़्तार संगीत पर जब पद्मिनी रॉय ने थिरकना शुरू किया उस समय उसके शरीर पर ढेर सारे वस्त्र थे लेकिन पहले राउन्ड के साथ ही एक-एक कर उसके वस्त्र उतरने आरम्म हो गए। फिर जब वह पोल पर पहुँची तो समूचा हॉल सीटियों के शोर से भर उठा।
उस अनिद्य सुंदरी के हाहाकारी रूप को देखकर नशे में झूमता धरम जी सरन जी डायमण्ड कम्पनी के मालिक का बेटा रंजीत पचीसिया, जिसकी उम्र मात्र 25 साल थी पागल हुआ जा रहा था। अण्डरवर्ल्ड डॉन लाल बिहारी का लेफ़्टीनेन्ट डिसूज़ा उस घड़ी उस बड़े व्यापारी के साथ था।
“डिसूज़ा मुझे पद्मिनी रॉय मेरे कमरे में चाहिए आज रात की दुल्हन–मेरी शहज़ादी होगी।” रँजीत जोशीले अन्दाज़ में बोलता उठ खड़ा हुआ–“इस ख़ूबसूरत बला का शो अभी खत्म करवा दो और इसे मेरे कमरे में पहुंचवा दो।” डिस्कोथैक में पद्मिनी रॉय का डाँस आधी रात के बाद शुरू हुआ उसके दीवाने उसके डाँस के इन्तज़ार में बेहाल थे क्योंकि पोल डाँस में उस दिलकश-दिलफरेब हसीना का कोई जवाब नहीं था।
राना ने उसकी ओर देखा।
“हो जाएगा रँजीत साहब–चलिए मैं आपको आपके रूम तक पहुँचा दूं।” उसे सहारा देकर डिसूज़ा आगे चल पड़ा।
उसने तुरन्त इशारा किया। पहलवानों जैसे मज़बूत आदमियों ने दाएं बाएं से रँजीत को थाम लिया।
उस घड़ी हॉल में मौजूद हर आदमी की नजर पद्मिनी रॉय के दिलफरेब रूप पर स्थिर होकर थिरकते हुए जिस्म पर लगी थीं। उसका सैक्सी नृत्य निरन्तर जारी था।
समूचा हॉल मानो सम्मोहन की स्थिति में अपलक एकटक उसे निहार रहा था।
मगर रंजीत भी धरम जी सरन जी डायमण्ड कम्पनी की ऊंची हस्ती था जो लाल बिहारी का लेफ्टीनेन्ट डिसूजा उसकी हर डिमाण्ड को पूरा करने में लगा हुआ था।
इसी कारण डांस बीच में खत्म हआ और एक शाल ओढ़े पदमिनी राय रंजीत के हरमनुमा रूम में दाख़िल हुई।
नर्म बैड पर पड़े रंजीत ने पलकें झपकाते हुए उसकी ओर देखा। उसने आमंत्रणपूर्ण निगाहों से रँजीत को निहारा।
"तुम आ गई मेरी जान−मैं...मैं कैसे तुम्हारा वैलकम करूं...ॽ” बौखलाया सा रँजीत उठा। उसने आस-पास देखा का फिर समीप रखी टेबल से ब्रीफकेस उठाकर उसे हवा में उछाल दिया। हवा में ब्रीफकेस को उछालने से पूर्व उसने उसके लॉक खोल दिए थे।
नतीजतन ब्रीफकेस के खुलते ही पांच-पांच सौ के करेंसी नोट हवा में विखरकर बैड पर गिरने लगे। शाल को पकड़े खड़ी पद्मिनी रॉय उड़ते हुए नोटों को देख कर मुस्कराई।
"वैलकम...वैलकम...आओ जानेमन।” रँजीत ने बैड की ओर इशारा करते हुए कहा।
वह आगे बढ़ी।
उसने अभी भी अपने दोनों हाथों से शॉल को इस प्रकार नीचे से ऊपर तक पकड़ रखा था मानो उसे छोड़ते ही ग़ज़ब हो जाने वाला हो।
हवा में उड़ने के बाद सारे के सारे नोट डबल बैड पर आ गिरे। कुछ नोट बैड के आस पास नीचे रूम के फर्श पर भी जा पहुंचे।
"आओ हसीना...आओ।" रँजीत ने बैड पर खड़े होकर बाहें फैलाते हुए कहा।
पदमिनी राय ने नपे-तुले कदमों से आगे बढ़कर अपने आपको बैड के ऊपर पहुंचा दिया। यह रँजीत के एकदम सामने जा खड़ी हुई।
उसकी आंखें रंजीत की आंखों से कुछ इस तरह उलझीं कि लगा फिर सुलझेंगी ही नहीं।
नशे की हालत में पदमिनी राय रँजीत को स्वर्ग की अप्सरा जैसी लग रही थी।
नशे की अवस्था में वह उत्तेजना की चरम सीमा को पहुँचा हुआ था। पदमनी राय उसे अपलक नेत्रों से निहार रही थी। उसके देखने का अंदाज ऐसा था कि कोई ऋषि मुनि भी उस मेनका पर आसक्त हो जाए।
फिर जब उस रूपसी के तौबाशिकन अंदाज ने उसके दिल के अंदर समाते हुए एक ही झटके में शाल को अपने जिस्म से अलग किया तो रँजीत को अपने रोंगटे खड़े होते से महसूस हुए। उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं।
क्योंकि शाल के नीचे वह कुछ भी पहने हुए नहीं थी। जैसे वीनस की मूर्ति, जैसे सांचे में ढला किसी संतराश का अनोखा मुजस्समा।
रंजीत की आंखें इस तरह से फैलती चली गई मानों उसने संसार का आठवां अजूबा देख लिया हो। मानो किसी भी भिखारी की करोड़ों की लाटरी खुल गई हो और उसे अपने भाग्य पर विश्वास नहीं आ रहा हो।
उसके उसके लिए वह सब कुछ अविश्वसनीय था।
वह उत्तेजित अवस्था में पदमिनी राय को अपनी दोनों बाहों में भरने को लालायित आगे की ओर अग्रसर होने लगा। नशा उसके ऊपर हॉवी था।
उसे न जाने क्यों विश्वास नहीं हो रहा था कि जिस परी को पाने की हसरत वह दिल में सजाए हुए था, वह परी सचमुच ही उसकी बाहों में आने वाली थी। वह उसे अपनी बाहों में भरने वाली थी।
फिर...!
एक झटके के साथ पदमिनी राय उसकी गोद में जा गिरी।
वह पागलों की तरह पदमनी को जगह-जगह चूमने लगा। नशे के आलम में उसकी उत्तेजना स्वयं से संभाले नहीं सँभल रही थी।
गर्म सासें घुलने लगी। अधारों से अधर टकराने लगे।
और...! शिराओं में दौड़ता रक्त तूफानी रफ्तार पकड़ने लगा। दिलों की धड़कनें बढ़ गई।
उत्तेजित रँजीत के दोनों हाथ पदमिनी राय के अंगों के उभरों को सहलाने में व्यस्त हो गए।
वह उस कातिल हसीना को अपने नीचे रोंदने लगा। उसे सब कुछ प्राप्त हो चुका था इसी कारण वह दीवानावार हालत में उसे लूटने में जुट गया।
शीघ्र ही सांसों का तूफान भड़क उठा।
रंजीत के अधर उसके अधरों से जुड़े थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि पदमिनी राय को वह समूचा अपने अंदर समा लेना चाहता हो।
पदमिनी राय की गहरी सासों को रँजीत सहन नहीं कर पा रहा था। उत्तेजना भड़क कर तूफान की स्थिति को पहुंचने लगी। तूफान बढ़ता चला गया।
और अंत में तूफान की तेजी में एकाएक ही कमी आती चली गई। रंजीत पदमिनी राय के ऊपर ढेर हो गया।
वह इस प्रकार हाँफ रहा था जैसे कि मैराथन दौड़ के अंतिम चरण को पूरा कर चुका हो। ।उसकी सांसें धौकनी के समान चल रही थीं।
यकायक...!
वह अपने सीने को दबाकर उठता चला गया। उसका चेहरा पीड़ा से बिगड़ गया। आखें इस तरह से जलने लगीं जैसे कि उनमें आग लग गई हो।
फिर एक ऐसी स्थिति भी आई जबकि वह तनाव से भरने लगा।
पीड़ा की गहरी लकीरों को उसके चेहरे पर बनता बिगड़ता हुआ सहज ही देखा जा सकता था और देखकर यह कहा जा सकता था कि वह असहनीय पीड़ा के क्षणों से गुजर रहा है।
उसकी फटी-फटी आखें अपलक पदमिनी राय पर टिकी हुई थी जिसके होठों पर जहरीली मुस्कान फैली हुई थी और जो सहज भाव से अपने वस्त्र पहनती जा रही थी।
***
***
दूरबीन नारंग की आँखों पर भी लगी थी।
"वो जो सामने बड़ी सी विन्डो चौथे माले पर नजर आ रही है...।" दूरबीन से स्थिति स्पष्ट करवाता हुआ राना नारंग से बोला—"शिकार वहीं पहुँचेगा...तू ने अपनी गन सेट करके रखनी होगी। डील होने में महज चार या पांच मिनट लगेंगे। इस छोटे से समय में तूने अपनी गन का ट्रेगर दबा ही देना होगा। याद रहे निशाना चूकना नहीं चाहिए।"
"उस विन्डो पर न जिसमें ग्लास लगा है...?" नारंग ने दूरबीन हटाकर अपनी इकलौती आँख से राना की ओर देखते हुए पूछा।
“हाँ...बड़ी विन्डो है। अगर कमरे के कोनों को छोड़ दिया जाए तो कमरे के किसी भी भाग में मौजूद आदमी को निशाना बनाया जा सकता है...नहीं?"
"बिल्कुल बनाया जा सकता है लेकिन मैं गन की सेटिंग के साथ देख लूं।" कहने के साथ ही नारंग ने साथ लाए गिटार केस को खोलकर टेलिस्कोपिक गन के तीन अलग-अलग पार्ट्स को निकाल लिया।
उसने दोनों हाथों हॉफ कट गिलव्ज पहन रखे थे जिससे उसकी उंगिलयां बाहर निकली हुई थीं। और वह किसी कुशल कारीगर की भांति अपने काम में लगा हुआ था।
एक-एक कर उसने तीनों पार्ट जोड़कर टेलिस्कोपिक गन तैयार कर ली।
गन को उसने स्टैण्ड पर सेट करके टेलिस्कोपिक लेंस पर आँख जमाई। बाद में दृश्य को स्पष्ट करने में थोड़ा सा समय जरूर लगा लेकिन शीघ्र ही वह राना की ओर घूम पड़ा।
"मैं तैयार हूँ मिस्टर राना—शिकार अगर सामने वाली उस इमारत के बताए हुए भाग में पहुंचा तो यकीनन उसे निशाना बना डालूंगा। मुझे दूसरा फायर करना नहीं पड़ेगा...एक ही बार में काम हो जाएगा ।" उसने विश्वासपूर्ण स्वर में कहा।
राना ने उसकी और संदिग्ध दृष्टि से देखा मगर वह इस कदर विश्वास से भरा हुआ था कि संदेह की कोई जगह रह नहीं गई थी।
"इसका मतलब ये हुआ कि तू पूरी तरह से रेडी है ?"
"हाँ।"
"देख नीचे जब शिकार पहुँचेगा तब वहाँ उस इमारत के कम्पाउंड में कितनी ही कारों की भीड़ लग जाएगी—एक छोटी-मोटी भीड़। बस तुझे उस भीड़ को देखने के बाद समझ लेना होगा कि तेरा काम शुरू हो गया है।"
"फिर शिकार को उस भीड़ में पहचानूँगा कैसे?"
"उसकी फिक्र मत कर उसके बारे में तुझे मैं बता दूँगा।"
"यानि आप मेरे आस-पास रहेंगे...?"
"तुझे सही वक्त पर सिग्नल देने की खातिर तेरे पास आ जाऊँगा।"
"राइट।"
"और सुन, शिकार पर गोली चलाने के बाद तूने इस इमारत के पिछले भाग से बाहर निकलना होगा। इसके पीछे जो संकरी-सी गली है उस गली के मुहाने पर तुझे एक कार पिकप करने को तैयार खड़ी मिलेगी। तूने बाहर निकलने के बाद तेजी से उस कार तक पहुँचना होगा। कार तुझे यहाँ से सुरक्षित बाहर निकाल ले जाएगी।"
"और अगर शिकार के साथ वाले किसी आदमी ने मुझे देख लिया तो...?
"उसकी चिंता तुझे नहीं करनी है। मैंने अपने आदमियों को आस-पास तेरी देख भाल के लिए लगा रखा है। उन्हें यही काम सौंपा हुआ है कि किसी भी तरह तुझे यहाँ से सुरक्षित निकाल ले जाएं।"
"इसका मतलब खतरा है...?
"नहीं...खतरा कोई नहीं है बस उस खतरे की संभावना पर विचार करते हुए सावधानी बरती जा रही है।"
"सावधानी?"
"हाँ...सावधानी ही है। तू बेकार ही टेंशन क्यों ले रहा है।"
"टेशन नहीं ले रहा सिर्फ मामले को समझने का प्रयास कर रहा हूँ।"
"डॉन्ट वरी...मैं सब ठीक करके रखूंगा। तुझे घबराने की जरूरत नहीं है।"
नारंग खामोश रहा ।
"मैं अभी आता हूँ, तैयार रहना।"
"ओके।"
राना वहाँ से चला गया।
वह इमारत के छठे माले के एक ऐसे कमरे में था जहाँ कोई भी नहीं था। वह बंद भाग था जिसे कि राना ने चुपचाप खुलवा लिया था। छठा माला एकदम वीरान था इसलिए राना को वही माला पसंद आया। हालांकि उसने अपने आदमियों को कमरे की व्यवस्था पांचवे माले पर करने को कहा था किन्तु जब उसे छठे माले की स्थिति से अवगत कराया गया तो उसे वही पसंद आ गया।
वहाँ पूरी तरह से शांति थी।
राना के जाने के बाद उसने एक सिगरेट सुलगाई और फिर वह खिड़की से बाहर का नजारा करने लगा।
गन को उसने जिस खिड़की पर सेट किया हुआ था उसका पर्दा ठीक तरह से व्यवस्थित कर गन का पूरा का पूरा भाग छिपा दिया। अब अगर दूर से कोई दूरबीन की मदद से ऊंचाई हासिल करके उसे देखता भी तो आसानी से उसकी गन को न देख पाता।
दूरबीन से वह कभी नीचे सड़क की ओर देखता तो कभी सामने वाली इमारत की चौथे माले वाली खिड़की की ओर।
अचानक...!
सड़क पर ट्रेफिक बढ़ गया।
कई कारें एक के पीछे एक सामने वाली इमारत के कम्पाउंड में आकर रुकती चली गई । तेज हलचल ने अपने आप ही बता दिया कि वहाँ कोई विशेष व्यक्ति पहुंचने वाला है। वह तेजी से गन के समीप जा पहुंचा और टेलिस्कोपिक गन के लेस पर अपनी इकलौती आंख जमा दी ।
उसके दिल की धड़कनों में अनायास ही वृद्धि होती चली गई। उसने जल्दी से जेब से व्हिस्की का क्वार्टर निकालकर दो घूँट भरे और फिर अपनी पोजीशन संभाल ली।
उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि राना उस हलचल के बावजूद वहाँ नहीं आया था। शिकार के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी और वह सोच रहा था कि कहीं राना आने में देरी न कर दे।
कहीं शिकार उसके सामने से होकर गुजर न जाए ।
जैसा कि राना ने उसे बताया था कि वहाँ एक छोटी सी भीड़ जमा हो जाएग ठीक वैसा ही हुआ।
नीचे कम्पाउंड में जमा भीड़ तेजी से इमारत के पोर्टिको की ओर बढ़ने लगी। नारंग को यकीन हो चला था कि उस भीड़ के साथ ही उसका शिकार इमारत में दाखिल होने जा रहा है और शीघ्र ही वह चौथे माले पर होगा।
उसे लगने लगा जैसे उसका दिल उछलकर उसके हलक में आ फँसा हो। धड़कने उसे अपने दिमाग में बजती मेहसूस होने लगीं।
उसने जल्दी से व्हिस्की के कई लम्बे-लम्बे घूँट भर लिए। उसे पहले दो घूँट लेने से ही हल्का नशा आरम्भ हो गया था लेकिन उसे ऐसा लग रहा था जैसे कि नशा कम होता जा रहा था।
नशे को बढ़ाने की खातिर वह दूसरा राउंड लम्बा लगा गया।
उसने जब भी अपने किसी शिकार पर निशाना साधा, नशे में ही साधा। बिना नशे के एक बार निशाना लगाने की कोशिश की थी मगर कामयाब नहीं हो सका था। बिना नशे के उसे ऐसा लगता था जैसे कि वह कोई जघन्य अपराध करने जा रहा हो। वही अपराध वह नशे में करते हुए लेश मात्र भी हिचकिचाता नहीं था।
धीरे-धीरे नशा बढ़ने लगा लेकिन राना की गैर मौजूदगी की वजह से वह बेहद चिंतित नजर आ रहा था।
इसी बीच उसका मोबाइल सिग्नल देने लगा। उसने मोबाइल को सायलेंट मोड पर रखा हुआ था।
"कौन...?" उसने जल्दी से मोबाइल कान से लगाते हुए धामी आवाज में पूछा।
"नारंग... तैयार हो जा...।" दूसरी ओर से राना की आवाज सुनाई पड़ी।
"मैं तैयार हूँ लेकिन आप कहाँ हैं ?" वह उत्तेजित स्वर में बोला।
"मैं जहाँ भी हूँ सब कुछ देख रहा हूँ: अब काम होने तक मेरा तुझसे सम्पर्क बना ही रहेगा। तूने एकदम अलर्ट रहना है...।"
"शिकार कौन है...मुझे कैसे पता चलेगा?"
"मैं बताऊँगा न।"
"ओके...।"
"सामने खिड़की की तरफ देख वहाँ कुछ हलचल होती दिखाई दे रही है। इसका मतलब ये है कि शिकार वहाँ बस पहुँचने ही वाला है।"
"लेकिन शिकार आखिरकार है कौन?"
"बस वह सामने आने ही वाला है।"
"उसकी कोई निशानी—कोई पहचान?"
"देख...दो आदमी खिड़की में आ चुके हैं...दिखाई दे रहा है न ? एक के हाथ में बैग है और दूसरा खाली हाथ...नजर आ रह है न?"
"हाँ...।"
"अब देख, और दो आदमियों के बीच सिगार का धुआँ उड़ाता स्लेटी कलर के सूट के साथ लाल टाई में फैली हुई नाक वाला भारी भरकम आदमी तेरा शिकार...जल्दी कर... बना डाल उसे निशाना।"
"यह तो लाल बिहारी हैं।" नारंग शंकित स्वर में बड़बड़ाया।
"हाँ-वही शिकार है।"
"लेकिन...।"
"वक्त कम है...हरी-अप !"
लाल बिहारी नारंग को सामने नजर आ रहा था। अण्डरवर्ल्ड की उसकी बादशाहत से वह भली- भांति वाकिफ था। लाल बिहारी के अपने पास अनगिनत शार्प शूटर थे, उससे नारंग का खौफजदा होना स्वाभाविक ही था।
दूसरी तरफ से मोबाइल पर राना का निरन्तर उत्तेजना पूर्ण स्वर उसे फायर करने के लिए उकसा रहा था।
नशे की तरंग अलग उसके दिमाग पर हावी होती जा रही थी।
उसने टेलिस्कोपिक गन संभाल ली। इकलौती आँख टेलिस्कोप के लेंस पर जम गई।
टारगेट क्रॉस पर उसने लाल बिहारी को स्थिर करना शुरू कर दिया। पहले पहुँचे हुए आदमियों में से जिस आदमी के हाथ में ब्रीफकेस था उसने ब्रीफकेस खोलकर लाल बिहारी की ओर घुमा दिया।
लाल बिहारी उसके निशाने पर सीधा आता जा रहा था।
उसने आई लेंस से फोकस बनाने के लिए थोड़ा सा बायीं ओर को घुमाया।
दृश्य और अधिक क्लीयर हो गया।
गन का सेफ्टी कैच हटा।
उंगली ट्रेगर पर पहुँची। उसके सधे हुए हाथ बड़ी सावधानी के साथ रुटीन वर्क की तरह सारे काम करते जा रहे थे।
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