मासिक माॅर्निग वाॅक
'साहित्य देश' के स्तम्भ 'हास्य रस' में इस बार प्रस्तुत है उपन्यासकार आलोक सिंह खालौरी जी के उपन्यास 'यामी' से चंद हास्य पंक्तियाँ -मासिक माॅर्निग वाॅक.
“हाँ भाई, क्या करें, अब नियम है तो है, चाहे कुछ हो जाए हम अपनी मासिक मॉर्निंग वॉक कभी नहीं छोड़ते।”–आलोक सहज भाव से बोला।
“मासिक मॉर्निंग वॉक ?”–रिया बोली।
“हाँ भाई, हर महीने नियम से आधा घंटा मॉर्निंग वॉक करनी ही करनी है चाहे कुछ हो जाए।”
“जरूरी है सर, सेहत का ख़्याल रखना भी।”–रिया सहज भाव से बोली।
“बिलकुल, जीवन में अनुशासन बेहद जरूरी है।”–आलोक भी सहज स्वर में बोला।
विजय ने गौर से लेखक की तरफ देखा। उसे कहीं से कहीं तक विनोद का एक भी भाव नजर नहीं आया।
“मासिक मॉर्निंग वॉक ?”–रिया बोली।
“हाँ भाई, हर महीने नियम से आधा घंटा मॉर्निंग वॉक करनी ही करनी है चाहे कुछ हो जाए।”
“जरूरी है सर, सेहत का ख़्याल रखना भी।”–रिया सहज भाव से बोली।
“बिलकुल, जीवन में अनुशासन बेहद जरूरी है।”–आलोक भी सहज स्वर में बोला।
विजय ने गौर से लेखक की तरफ देखा। उसे कहीं से कहीं तक विनोद का एक भी भाव नजर नहीं आया।
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