यादें वेद प्रकाश शर्मा जी -21
प्रस्तुति- योगेश मित्तल
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उसके बाद हमारे बीच पारिवारिक बातें होती रही। उन्हीं बातों के बीच एक बार चाय और आ गई, लेकिन इस बार चाय के साथ नमकीन और बिस्कुट भी थे। हम चाय खत्म भी नहीं कर पाये थे कि घर में बने पकौड़े आ गये। मुझे आश्चर्य हुआ, क्योंकि मेरे सामने वेद ने पकौड़ों का कोई आदेश नहीं दिया था।
यह पहला अवसर नहीं था, इससे पहले भी और बाद में भी अनेक अवसर ऐसे आये, जब वेद के यहाँ अपनेपन का गहरा स्पर्श मैंने महसूस किया। वेद की मेहमाननवाजी और सत्कार ने हर बार मेरे दिल में उसका कद पहले से अधिक ऊंचा किया था।
चाय नाश्ते के बाद वेद ने फिर कहा -"तो फिर नावल कब से शुरू करेगा?""फिलहाल दस-पन्द्रह दिन तो तुम्हारे विजय विकास सीरीज़ के उपन्यास पढ़ने में लगाऊँगा, उसके बाद ही टाइपिंग आरम्भ करूँगा।" मैंने कहा!
"टाइपिंग...?" - वेद चौंक गया -"टाइपराइटर ले लिया है तूने?"
"नहीं, एक सेकेण्ड हैण्ड फोर एट सिक्स ले लिया है, आजकल उसी पर टाइपिंग करता हूँ।"
"फोर एट सिक्स...?"
"कम्प्यूटर...।"
"तूने कम्प्यूटर ले लिया...?"- वेद ने आश्चर्य व्यक्त किया।"हाँ..., दरअसल भारती साहब ने पिछले दिनों एक जासूसी पत्रिका 'अपराध कथाएँ' आरम्भ की थी और उसकी टाइपिंग के लिये पालम गाँव के एक शख्स के यहाँ सैटिंग की थी। बस, पहली बार वहीं कम्प्यूटर देखा, फिर पता चला उत्तमनगर में हमारे घर के पास भी रामगोपाल नाम के एक व्यक्ति ने कम्प्यूटर लगा रखा है। अपराध कथाएँ का दूसरा अंक और मैंने 'रजत राजवंशी' नाम के लिये अपना पहला उपन्यास वहीं टाइप करवाया था, उसके बाद अचानक ऐसी जरूरत आ पड़ी कि कम्प्यूटर खरीदना पड़ा।"- मैंने कहा!
"ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी?" - वेद ने पूछा!
"दिल्ली में एक प्रकाशन संस्था है - ड्रीमलैण्ड पब्लिकेशन, उन्हें लोटपोट में मोटू पतलू की चित्रकथाएं बनाने वाले हरविन्द्र माँकड़ ने गणेश जी पर एक किताब लिखने के लिये मेरा नाम सुझाया था। उनसे बात की तो वह बोले कि स्क्रिप्ट उन्हें कम्प्यूटर पर टाइप चाहिये, इसलिये कम्प्यूटर ले लिया।"
"तो तू...यार... गणेश जी पर भी कुछ लिख रहा है?"
"हाँ।"
"फिर मेरा काम कब करेगा?"
"करूँगा न... तुम्हारे काम के लिये रोज दो घण्टे रात को लगाया करूँगा।"
"पर यार, सब कुछ हाच-पाच नहीं हो जायेगा। एक तरफ तूने रजत राजवंशी लिखना है, अपराध कथाएँ, खेल खिलाड़ी, नन्हा नटखट, मानसी कहानियाँ जैसी मैगज़ीन तू एडिट कर रहा है। गणेश जी पर धार्मिक पुस्तक तू लिख रहा है तो विजय-विकास पर कैसे लिखेगा?" - वेद को यकीन नहीं हो रहा था कि मैं उसके लिये उपन्यास लिखूँगा।
"यार, तुम्हें मालूम है ना कि मैं एक ही वक़्त में अनेक काम करता रहता हूँ।"
"तो ठीक है, तू लिखना स्टार्ट कर, जब चार-पांच फार्म का काम हो जाये मुझे लाकर दिखा देना। उसके आगे का उसके बाद लिखना।"- वेद ने कहा।
मैंने स्वीकार कर लिया।
वेद ने पढ़कर विकास का कैरेक्टर स्टडी करने के लिये मुझे विकास सीरीज़ के एक दर्जन उपन्यासों का बण्डल बंधवा कर दिया, लेकिन दिल्ली पहुँचने के बाद मैंने सारे उपन्यास नहीं पढ़े। चार उपन्यास पढ़कर ही मुझे विकास का चरित्र समझ में आ गया और विजय-विकास को लेकर क्या लिखना है, मैंने कुछ ही घण्टों में फाइनल कर लिया।
उन दिनों बीस-पच्चीस हज़ार करोड़ के नकली स्टाम्प पेपर घोटाले का मामला बहुत गर्म था। अब्दुल करीम तेलगी का नाम रोज़ ही अखबारों में चर्चा का विषय रहता था।
ऐसे में मैंने अपने उपन्यास के अपराधी का नाम अब्दुल करीम तेलगी से कुछ मिलता-जुलता रखा। क्या रखा था, आज अच्छी तरह याद नहीं आ रहा, मगर मान लीजिये कि वो नाम अब्दुल रहीम तेलगी था। पर मेरे उपन्यास का अपराधी सिर्फ स्टाम्प घोटाले का मास्टर माइंड नहीं था, वह विजय - विकास सीरीज़ के उपन्यासों के शहर राजनगर का सबसे बड़ा माफिया डान था और उसके एक नहीं, अनेक बुरे धन्धे थे।
स्टाम्प घोटाले का स्कैम सामने आने के बाद अब्दुल रहीम तेलगी राजनगर में कहाँ छिप गया, कहाँ गायब हो गया, किसी को कानोंकान खबर तक न थी। ऐसे में विजय द्वारा विकास को अब्दुल रहीम तेलगी को ढूँढ निकालने और गिरफ्तार करके लाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी।
विकास को किसी मुखबिर से पता चलता है कि अब्दुल रहीम तेलगी राजनगर के बाहरी क्षेत्र में नई नई फल फूल रही जरायम बस्ती में छिपा हुआ है।
सर्दी के उन दिनों में विकास उस बस्ती में जाता है, जहाँ सिर्फ अपराधी बसते थे, लेकिन इससे पहले कि वह अब्दुल रहीम तेलगी तक पहुँच पाता, एक मोटर साइकिल सवार उसका रास्ता रोक लेता है, जिसके सिर पर पीकैप थी, आँखों पर काला चश्मा, बदन पर काले चमड़े की शानदार जैकेट और वैसी ही पैण्ट थी।
वह मोटर साइकिल सवार विकास का रास्ता रोक लेता है। फिर विकास की उस मोटर साइकिल सवार से फाइट होती है।
विकास पैदल होता है और वह मोटर साइकिल सवार मोटर साइकिल पर सवार। पूरी फाइट में वह मोटर साइकिल सवार अपनी मोटर साइकिल पर ही सवार रहता है और विकास को पता चलता है कि वह शख्स मोटर साइकिल के करतबों का भी जबरदस्त माहिर है।
बिमल चटर्जी के साथ बैठकर तथा उनके उपन्यासों में भी लिखने के कारण मैं फाइट सीन लिखने में भी जबरदस्त उस्ताद बन चुका था। और उन दिनों मेरे लिखे फाइट सीन काफी लम्बे लम्बे होने के बावजूद इतने दिलचस्प होते थे कि पाठक बीच में उपन्यास नहीं छोड़ सकते थे।
विकास और उस मोटर साइकिल सवार की फाइट का सीन लगभग दस ग्यारह पेज तक लम्बा खिंचा, उसके बाद अचानक ही विकास की होशियारी के कारण उसकी मोटर साइकिल सड़क पर लुढ़क जाती है और तब उसकी पीकैप भी सिर से नीचे सड़क पर गिर जाती है और उसके लम्बे बाल खुलकर पीठ पर लहरा जाते हैं और तब विकास को पता चलता है कि वह मोटर साइकिल सवार एक लड़की थी।
उन दिनों हैलमेट लगाना जरूरी नहीं हुआ करता था। या शायद मैंने पीकैप की जगह हैलमेट ही लिखा हो, यह भी हो सकता है।
वह लड़की अब्दुल रहीम तेलगी की इकलौती बेटी मुस्कान थी। इससे पहले कि विकास मुस्कान को पकड़ पाता, वह तेजी से मोटर साइकिल सम्भाल पलट कर भाग निकलती है! उसकी कैप सड़क पर पड़ी रह जाती है।
विकास उसकी कैप उठा लेता है, लेकिन उसका पीछा नहीं करता, क्योंकि उसे अब्दुल रहीम तेलगी को पकड़ना था, लेकिन जब वह अब्दुल रहीम तेलगी के ठिकाने पर पहुँचता है तो पता चलता है कि जितनी देर उसने मुस्कान से फाइट की, उतनी देर में अब्दुल रहीम तेलगी अपने गुप्त ठिकाने से निकल भागा था। वास्तव में मुस्कान ने विकास का रास्ता अपने पिता को उससे बचाने के लिये ही रोका था।
उन दिनों मैं अधिकांश लेखन कार्य कम्प्यूटर पर ही करने लगा था। शुक्रिया ड्रीमलैण्ड पब्लिकेशन्स के आदरणीय वेद प्रकाश चावला जी का, उनकी इस डिमांड ने कि उन्हें श्रीगणेश महापुराण की स्क्रिप्ट कम्प्यूटर द्वारा टाइप्ड चाहिये, मुझे कम्प्यूटर टाइपिंग सिखा दी और वो भी एक ही दिन में, लेकिन वो किस्सा फिर कभी...।
शेष फिर
यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की - भाग-01
यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की - भाग-15
यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की - भाग- 21
यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की - भाग- 22
प्रस्तुति- योगेश मित्तल
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उसके बाद हमारे बीच पारिवारिक बातें होती रही। उन्हीं बातों के बीच एक बार चाय और आ गई, लेकिन इस बार चाय के साथ नमकीन और बिस्कुट भी थे। हम चाय खत्म भी नहीं कर पाये थे कि घर में बने पकौड़े आ गये। मुझे आश्चर्य हुआ, क्योंकि मेरे सामने वेद ने पकौड़ों का कोई आदेश नहीं दिया था।
यह पहला अवसर नहीं था, इससे पहले भी और बाद में भी अनेक अवसर ऐसे आये, जब वेद के यहाँ अपनेपन का गहरा स्पर्श मैंने महसूस किया। वेद की मेहमाननवाजी और सत्कार ने हर बार मेरे दिल में उसका कद पहले से अधिक ऊंचा किया था।
चाय नाश्ते के बाद वेद ने फिर कहा -"तो फिर नावल कब से शुरू करेगा?""फिलहाल दस-पन्द्रह दिन तो तुम्हारे विजय विकास सीरीज़ के उपन्यास पढ़ने में लगाऊँगा, उसके बाद ही टाइपिंग आरम्भ करूँगा।" मैंने कहा!
"टाइपिंग...?" - वेद चौंक गया -"टाइपराइटर ले लिया है तूने?"
"नहीं, एक सेकेण्ड हैण्ड फोर एट सिक्स ले लिया है, आजकल उसी पर टाइपिंग करता हूँ।"
"फोर एट सिक्स...?"
"कम्प्यूटर...।"
"तूने कम्प्यूटर ले लिया...?"- वेद ने आश्चर्य व्यक्त किया।"हाँ..., दरअसल भारती साहब ने पिछले दिनों एक जासूसी पत्रिका 'अपराध कथाएँ' आरम्भ की थी और उसकी टाइपिंग के लिये पालम गाँव के एक शख्स के यहाँ सैटिंग की थी। बस, पहली बार वहीं कम्प्यूटर देखा, फिर पता चला उत्तमनगर में हमारे घर के पास भी रामगोपाल नाम के एक व्यक्ति ने कम्प्यूटर लगा रखा है। अपराध कथाएँ का दूसरा अंक और मैंने 'रजत राजवंशी' नाम के लिये अपना पहला उपन्यास वहीं टाइप करवाया था, उसके बाद अचानक ऐसी जरूरत आ पड़ी कि कम्प्यूटर खरीदना पड़ा।"- मैंने कहा!
"ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी?" - वेद ने पूछा!
"दिल्ली में एक प्रकाशन संस्था है - ड्रीमलैण्ड पब्लिकेशन, उन्हें लोटपोट में मोटू पतलू की चित्रकथाएं बनाने वाले हरविन्द्र माँकड़ ने गणेश जी पर एक किताब लिखने के लिये मेरा नाम सुझाया था। उनसे बात की तो वह बोले कि स्क्रिप्ट उन्हें कम्प्यूटर पर टाइप चाहिये, इसलिये कम्प्यूटर ले लिया।"
"तो तू...यार... गणेश जी पर भी कुछ लिख रहा है?"
"हाँ।"
"फिर मेरा काम कब करेगा?"
"करूँगा न... तुम्हारे काम के लिये रोज दो घण्टे रात को लगाया करूँगा।"
"पर यार, सब कुछ हाच-पाच नहीं हो जायेगा। एक तरफ तूने रजत राजवंशी लिखना है, अपराध कथाएँ, खेल खिलाड़ी, नन्हा नटखट, मानसी कहानियाँ जैसी मैगज़ीन तू एडिट कर रहा है। गणेश जी पर धार्मिक पुस्तक तू लिख रहा है तो विजय-विकास पर कैसे लिखेगा?" - वेद को यकीन नहीं हो रहा था कि मैं उसके लिये उपन्यास लिखूँगा।
"यार, तुम्हें मालूम है ना कि मैं एक ही वक़्त में अनेक काम करता रहता हूँ।"
"तो ठीक है, तू लिखना स्टार्ट कर, जब चार-पांच फार्म का काम हो जाये मुझे लाकर दिखा देना। उसके आगे का उसके बाद लिखना।"- वेद ने कहा।
मैंने स्वीकार कर लिया।
वेद ने पढ़कर विकास का कैरेक्टर स्टडी करने के लिये मुझे विकास सीरीज़ के एक दर्जन उपन्यासों का बण्डल बंधवा कर दिया, लेकिन दिल्ली पहुँचने के बाद मैंने सारे उपन्यास नहीं पढ़े। चार उपन्यास पढ़कर ही मुझे विकास का चरित्र समझ में आ गया और विजय-विकास को लेकर क्या लिखना है, मैंने कुछ ही घण्टों में फाइनल कर लिया।
उन दिनों बीस-पच्चीस हज़ार करोड़ के नकली स्टाम्प पेपर घोटाले का मामला बहुत गर्म था। अब्दुल करीम तेलगी का नाम रोज़ ही अखबारों में चर्चा का विषय रहता था।
ऐसे में मैंने अपने उपन्यास के अपराधी का नाम अब्दुल करीम तेलगी से कुछ मिलता-जुलता रखा। क्या रखा था, आज अच्छी तरह याद नहीं आ रहा, मगर मान लीजिये कि वो नाम अब्दुल रहीम तेलगी था। पर मेरे उपन्यास का अपराधी सिर्फ स्टाम्प घोटाले का मास्टर माइंड नहीं था, वह विजय - विकास सीरीज़ के उपन्यासों के शहर राजनगर का सबसे बड़ा माफिया डान था और उसके एक नहीं, अनेक बुरे धन्धे थे।
स्टाम्प घोटाले का स्कैम सामने आने के बाद अब्दुल रहीम तेलगी राजनगर में कहाँ छिप गया, कहाँ गायब हो गया, किसी को कानोंकान खबर तक न थी। ऐसे में विजय द्वारा विकास को अब्दुल रहीम तेलगी को ढूँढ निकालने और गिरफ्तार करके लाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी।
विकास को किसी मुखबिर से पता चलता है कि अब्दुल रहीम तेलगी राजनगर के बाहरी क्षेत्र में नई नई फल फूल रही जरायम बस्ती में छिपा हुआ है।
सर्दी के उन दिनों में विकास उस बस्ती में जाता है, जहाँ सिर्फ अपराधी बसते थे, लेकिन इससे पहले कि वह अब्दुल रहीम तेलगी तक पहुँच पाता, एक मोटर साइकिल सवार उसका रास्ता रोक लेता है, जिसके सिर पर पीकैप थी, आँखों पर काला चश्मा, बदन पर काले चमड़े की शानदार जैकेट और वैसी ही पैण्ट थी।
वह मोटर साइकिल सवार विकास का रास्ता रोक लेता है। फिर विकास की उस मोटर साइकिल सवार से फाइट होती है।
विकास पैदल होता है और वह मोटर साइकिल सवार मोटर साइकिल पर सवार। पूरी फाइट में वह मोटर साइकिल सवार अपनी मोटर साइकिल पर ही सवार रहता है और विकास को पता चलता है कि वह शख्स मोटर साइकिल के करतबों का भी जबरदस्त माहिर है।
बिमल चटर्जी के साथ बैठकर तथा उनके उपन्यासों में भी लिखने के कारण मैं फाइट सीन लिखने में भी जबरदस्त उस्ताद बन चुका था। और उन दिनों मेरे लिखे फाइट सीन काफी लम्बे लम्बे होने के बावजूद इतने दिलचस्प होते थे कि पाठक बीच में उपन्यास नहीं छोड़ सकते थे।
विकास और उस मोटर साइकिल सवार की फाइट का सीन लगभग दस ग्यारह पेज तक लम्बा खिंचा, उसके बाद अचानक ही विकास की होशियारी के कारण उसकी मोटर साइकिल सड़क पर लुढ़क जाती है और तब उसकी पीकैप भी सिर से नीचे सड़क पर गिर जाती है और उसके लम्बे बाल खुलकर पीठ पर लहरा जाते हैं और तब विकास को पता चलता है कि वह मोटर साइकिल सवार एक लड़की थी।
उन दिनों हैलमेट लगाना जरूरी नहीं हुआ करता था। या शायद मैंने पीकैप की जगह हैलमेट ही लिखा हो, यह भी हो सकता है।
वह लड़की अब्दुल रहीम तेलगी की इकलौती बेटी मुस्कान थी। इससे पहले कि विकास मुस्कान को पकड़ पाता, वह तेजी से मोटर साइकिल सम्भाल पलट कर भाग निकलती है! उसकी कैप सड़क पर पड़ी रह जाती है।
विकास उसकी कैप उठा लेता है, लेकिन उसका पीछा नहीं करता, क्योंकि उसे अब्दुल रहीम तेलगी को पकड़ना था, लेकिन जब वह अब्दुल रहीम तेलगी के ठिकाने पर पहुँचता है तो पता चलता है कि जितनी देर उसने मुस्कान से फाइट की, उतनी देर में अब्दुल रहीम तेलगी अपने गुप्त ठिकाने से निकल भागा था। वास्तव में मुस्कान ने विकास का रास्ता अपने पिता को उससे बचाने के लिये ही रोका था।
उन दिनों मैं अधिकांश लेखन कार्य कम्प्यूटर पर ही करने लगा था। शुक्रिया ड्रीमलैण्ड पब्लिकेशन्स के आदरणीय वेद प्रकाश चावला जी का, उनकी इस डिमांड ने कि उन्हें श्रीगणेश महापुराण की स्क्रिप्ट कम्प्यूटर द्वारा टाइप्ड चाहिये, मुझे कम्प्यूटर टाइपिंग सिखा दी और वो भी एक ही दिन में, लेकिन वो किस्सा फिर कभी...।
शेष फिर
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