यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की -20
प्रस्तुति- योगेश मित्तल
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में योगेश मित्तल जी एक चर्चित नाम है। उनका लेखकों और प्रकाशकों से घनिष्ठ संबंध रहा है, वे लेखक-प्रकाशक दिल्ली के हो या मेरठ के योगेश जी का सभी के साथ अपनत्व रहा है। योगेश जी ने स्वयं के नाम के साथ-साथ अनेक नामों से Ghost writing भी की है। सद्य प्रकाशित इनकी रचना 'प्रेत लेखन का नंगा सच' में इन्होंने प्रेत लेखन कॆ विषय में बहुत कुछ लिखा है।
शीघ्र ही इनकी एक और रचना प्रकाशित हो रही है जो उपन्यासकार वेदप्रकाश शर्मा जी के जीवन से संबंधित है। उसके बाद मैं अगले दो दिन ईश्वरपुरी के किसी भी प्रकाशक के यहाँ नहीं गया।
देवीनगर गया था, वहाँ सतीश जैन उर्फ मामा ने कुछ पुराने आठ नौ फार्म के सामाजिक उपन्यास दिये, जो घोस्ट नामों से छपे हुए थे। उनमें तीन चार फार्म का मैटर बढ़ाना था। तरीका सतीश जैन ने यह बताया कि लगभग आठ पेज का मैटर उपन्यास के स्टार्टिंग में बढ़ाना है और इतने ही पेज आखिर में। उपन्यास का अन्त बेशक बदल जाये, उसकी कोई चिन्ता नहीं। बाकी बीच में जितने भी चैप्टर हैं, सबकी स्टार्टिंग दो तीन लाइन बदल देनी है या नयी एडजस्ट करनी है।
उपन्यास के मुख्य पात्रों के नाम सतीश जैन ने स्वयं ही पहले से काट-पीट करके बदल रखे थे। उपन्यास का नाम भी कोई नया ही रखना था।
मतलब समझ गये आप...! एक पुराना उपन्यास, जो अच्छा रहा हो या बकवास... योगेश मित्तल का हाथ लगने के बाद एक नये नाम से बिल्कुल नये उपन्यास के रूप में पाठकों के हाथ में जाना था और लेखक को यानि मुझे नया उपन्यास लिखने के पारिश्रमिक से आधा ही पारिश्रमिक मिलना था और प्रकाशक के पास एक नया उपन्यास तैयार हो जाना था। ऐसे कामों में मुझसे ज्यादा सिद्धहस्त उस दौर में दूसरा कोई भी लेखक नहीं था। यह मैं या मेरा अहंकार नहीं कह रहा है - यह शब्द उन दिनों लक्ष्मी पाकेट बुक्स के सर्वेसर्वा सतीश जैन के थे। इसका एक कारण यह भी था कि उन दिनों ज्यादातर लेखक अपनी दाल-रोटी के लिये लिखते थे और उनके लिखने का रूटीन रोज नियम से कुछ घण्टे लिखने का था, जबकि मेरे लिखने का न तो कोई टाइम होता था, ना ही मूड। जब पैन उठाया - काम शुरू।
चौबीस घण्टों में किसी भी घण्टे मैं बिना किसी प्लानिंग के, बिना कुछ सोचे हुए भी कलम उठा लेता था तो दिमाग की बत्ती तुरन्त जल जाती थी और पैन फुल स्पीड से दौड़ने लगता था और यह खूबी अब भी मुझ में बरकरार है, यह और बात है कि इस खूबी का मैं अपने जीवन में माकूल फायदा नहीं उठा सका।