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शुक्रवार, 20 मई 2022

नये उपन्यास-2022

 नमस्ते पाठक मित्रो,
  साहित्य देश ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है। 
नये उपन्यासों की सूचना स्तम्भ में प्रस्तुत है आपके लिए कुछ नये उपन्यासों की जानकारी। हालांकि यह पोस्ट कुछ समय पहले आ जानी चाहिए थी, पर अतिव्यस्तता के कारण देर हो गयी।

1. तीसरी आँख- कमलदीप
    प्रकाशक-      अजय पॉकेट बुक्स
       कमलदीप जी उपन्यास क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय हैं पर वे पर्दे के पीछे ही रहे हैं, अर्थात Ghost writing करते रहे हैं। लेकिन अब अजय पॉकेट बुक्स ने उन्हें उन्हीं के काम से प्रकाशित किया है।
तीसरी आँख एक मर्डर मिस्ट्री पर आधारित उपन्यास है। जिसमें अमन नामक डिटेक्टिव रामा पैलेस में हुये मर्डर की जांच करता है। 
      पत्थर की जुबान रखने वाले शातिर अपराधी भी अमन के आगे तोते की तरह बोलने लगता था। मुर्दे के हलक में हाथ डालकर सच्चाई उगलवाने की काबिलियत थी उसमे , वही अमन वर्मा रामा पैलेस में एक के बाद एक हो रहे क़त्ल के चक्रव्यूह में उलझ कर रह गया था। तीन -तीन क़त्ल की वारदांतो ने उस तेज तरार जासूस की खोपड़ी घुमा कर रख दी थी उसकी तीसरी आँख क्या इन क़त्ल का राज़ उजागर कर सकी...?
लेखक का स्वयं के नाम से प्रकाशित होने का यह प्रथम अवसर है। अतः पाठक मित्रों को यह उपन्यास एक बार तो अवश्य पढना चाहिये।
   एक बात और भी गौरी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित केशव पण्डित का प्रथम उपन्यास 'सुहाग की हत्या' के रचयिता कमलदीप जी ही हैं।
किंडल लिंक- तीसरी आँख- कमलदीप

2.  हेरीटेज हाॅस्टल हत्याकाण्ड- आनंद चौधरी
   प्रकाशक- अजय पॉकेट बुक्स
     आनंद चौधरी जी का यह द्वितीय उपन्यास है,इस से पूर्व उनका एक उपन्यास 'साजन मेरे शातिर' प्रकाशित हो चुका है।
  हॉस्टल हेरीटेज हत्याकाण्ड एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है।
हेरिटेज हॉस्टल के अन्दर से बंद एक कमरे में जिस अजीबोग़रीब तरीके से शीतल राजपूत की हत्या हुई थी , उस तरीके से हत्या कर पाना किसी आदमजात के लिय कतई मुमकिन नहीं था ! वो हत्या कोई प्रेतलीला ही हो सकती थी। 

एमेजन प्राप्ति लिंक- हाॅस्टल हेरिटेज हत्याकाण्ड - आनंद चौधरी

3. यज्ञ- अनिल मोहन
    प्रकाशन- Kindle
    अनिल मोहन जी के द्वारा लिखित 'पुनर्जन्म' उपन्यास का द्वितीय भाग 'युद्ध' किंडल पर प्रकाशित हो चुका है। इस उपन्यास के तीन भाग हैं द्वितीय भाग भी शीघ्र प्रकाशित होगा।
वो सब मुकुट के साथ पूर्वजन्म में आते ही बिखर गए थे। कोई यहां था तो कोई कहीं और था। कोई किसी के संग था तो कोई किसी के संग था। उन सबको पूर्वजन्म की जमीन पर इकट्ठे होना था और मुकुट के साथ किले पर पहुंचना था। जहां किले के भीतर के लोग पत्थर बने हुए थे, किले सहित, उन लोगों को देवराज चौहान और मोना चौधरी को यज्ञ के दौरान मंत्रों का जाप करके, जीवित करना था।
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और जुगल किशोर (रामन) पहुंच चुका था अपने भीमा के पास, जिसने उसे दो सौ पच्चीस साल पहले मुकुट के साथ, पृथ्वी ग्रह पर भेज दिया था।
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"क्या ये दोनों ठीक से मंत्रों का जाप कर रहे हैं?" अर्जुन भारद्वाज ने बेचैनी से पूछा।
"देवराज चौहान और मोना चौधरी कभी भी कोई काम अधूरे मन से नहीं करते।" जगमोहन गम्भीर स्वर में कह उठा--- "दोनों को ऐसी किताबें पढ़ने को दी गई थी जिनके मंत्र काट-काटकर कभी इस किताब में तो कभी दूसरी किताब में लिखे गए थे। दोनों ने उन मंत्रों को याद कर रखा है। देवराज चौहान एक मंत्र पर रुकता है तो उनके आगे का हिस्सा मोना चौधरी शुरु कर देती है, इसी तरह मोना चौधरी एक मंत्र पर रूकती है तो उसके आगे का देवराज चौहान पूरा करने लगता है। इस तरह इस यज्ञ पूर्ण किया जा रहा है।"
"और मंत्र का कोई हिस्सा, कोई भूल गया तो---?"
"तो यज्ञ कभी भी पूरा नहीं होगा।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।
अर्जुन भारद्वाज के होंठ भिंच गए। मन ही मन यही सोचने लगा कि वे दोनों मंत्र भूलें नहीं।
देवराज चौहान और मोना चौधरी के मंत्रों की आवाजें बराबर उनके कानों में पड़ रही थीं। जबसे उन्होंने यज्ञ शुरू किया था। तब से अब तक वो एक बार भी नहीं रुके थे। मंत्रों का उच्चारण उनके होंठों से बराबर निकल रहा था। उनके अलावा और कोई आवाज नहीं गूंज रही थी। उनमें से कोई ये भी नहीं जानता था कि किले के बाहर भीमा अपने सत्तर-अस्सी आदमियों के साथ घेरा डालता जा रहा था। बहुत ख़ामोशी से भीमा ये काम कर रहा था।
उस वक्त यज्ञ को शुरू हुए पौने तीन घंटे हो चुके थे कि एकाएक अर्जुन भारद्वाज के होंठों से खरखराता स्वर निकला।
"ये देखो-पैर-रानी के पैर--- मेरी रानी के पैर---।"
जगमोहन की निगाह उसी पल रानी के पैरों पर गई।
पत्थर के हुए पड़े पैर एकाएक मानवीय शक्ल में आते जा रहे थे।
जगमोहन की निगाह तारा के पैरों पर गई।
तारा के पैर भी धीरे-धीरे मानवीय शक्ल अख्तियार करते जा रहे थे।
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देवराज चौहान, मोना चौधरी, अर्जुन भारद्वाज, जुगल किशोर, जगमोहन, सोहनलाल, पारसनाथ, महाजन, बांकेलाल राठौर और रूस्तम राव पूर्वजन्म में प्रवेश कर चुके हैं।
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जुगल किशोर अपनी पूर्वजन्म की लड़की रोशी के साथ ब्याह करता है या नहीं? उपन्यास पढ़ने पर हम इस बात को जान सकेंगे। वैसे भी जुगल किशोर का कोई भरोसा नहीं कि कब वो, क्या कर दे?
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किले की रानी की खास, सबसे खास, ये कहना गलत नहीं होगा कि वो तारा, रानी की पहली और आखिरी सहेली थी जिससे रानी हर बात कर लेती थी। तारा पास ना हो तो रानी बेचैन हो उठती थी। रानी ने तारा को हमेशा ही अपनी सहेली माना था और तारा भी उसे अपनी सहेली मानती थी। उसी तारा और जगमोहन के बीच तब प्यार की लहरें उठ रही थीं जब देवा-मिन्नो में युद्ध का डंका बज उठा था। उनका प्यार तब ब्याह पर ही जाकर रुकना था कि तभी, भीमा ने किले की मूर्ति से मुकुट निकालकर (रामन) जुगल किशोर के हाथ पृथ्वी पर भेज दिया था और किला और उसमें रहने वाले सभी इंसान बुत बन चुके थे। इधर देवा और मिन्नो के बीच युद्ध छिड़ गया था। कोई मिन्नो की तरफ से, कोई देवा की तरफ से, गांव और कस्बे के कस्बे उस युद्ध में कूद चुके थे और उसके बाद जगमोहन और तारा की मुलाकात नहीं हो पाई थी क्योंकि तारा किले में पत्थर का बुत बनी मौजूद थी। अब किले की तरफ बढ़ते जगमोहन के दिमाग में सिर्फ एक ही बात टकरा रही थी कि उसे सामने पाकर तारा के दिल पर क्या गुजरेगी?
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विश्वप्रसिद्ध लेखक अनिल मोहन की कलम से निकला हुआ एक शानदार उपन्यास।

लिंक  -    पुर्वजन्म
लिंक -     ज्ञ
लिंक -     महाकाल

4. द मर्डर लैण्ड- नील कृष्ण वैरागी
  प्रकाशक - प्रभाकर प्रकाशन
     लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में 'तीन दिन' उपन्यास के साथ कदम रखने वाले नीलकृष्ण वैरागी जी का यह द्वितीय उपन्यास है।
     वो शातिर था, वो मास्टर माइण्ड था। लाख रुपये की बात, उसका कत्ल करने का तरीका निराला था,बिरला था।  वह बकायदा पुलिस को दिन और वक्त बताकर कत्ल करता था और पुलिस की नाक के नीचे करता था। जब बात बस के बाहर हुयी तो लद्दाख पुलिस को हार कर विकास गुप्ता को उस केस को साल्व करने की गर्ज से बुलवाना पड़ा।
      तब शुरु हुआ आँख-मिचौली का खेल। उसका विकास को चैलेंज जारी हुआ कि वो उसे रोक ले अन्यथा परिणाम भयंकर होंगे   और वो‌ लद्दाख को मर्डर लैण्ड बना कर छोड़ेगा।

5. डाकू मोहन - वेदप्रकाश काम्बोज
      प्रकाशक- नीलम जासूस कार्यालय
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माधुरी किसी से प्यार करती थी मगर पिता की हालत के आगे मजबूर थी।
वृद्ध जमींदार की नज़र माधुरी पर थी और वह बेटी की उम्र की इस लड़की से शादी करना चाहता था।
मगर इन दोनों पर जिसकी नज़र थी उसे लोग डाकू मोहन के नाम से जानते थे।
शादी के कार्ड बांटे जा चुके थे...
ख़बर गर्म थी।
जितने मुँह उतनी बातें।
डाकू मोहन की जब ये ख़बर मिली तो उसने क्या किया?
बुद्धिमान, साहसी भेष बदलने में माहिर डाकू मोहन का सनीखेज कारनामा...
वरिष्ठ लेखक श्री वेदप्रकाश काम्बोज की नवीनतम रचना
'डाकू मोहन'
नीलम जासूस कार्यलय से जल्द आ रही है...

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