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बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

वो यादें जो मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गई- राजकुमार गुप्ता

 वो यादें जो मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गई...

18 फरवरी, 2017 की सुबह एक अशुभ समाचार मेरा इंतजार कर रहा था-लोकप्रिय उपन्यासकार वेदप्रकाश शर्मा नहीं रहे। मैं हत्प्रभ रह गया। ऐसा लगा कि जैसे वक्त वहीं थम गया हो और आत्मा अचानक एक अनजानी सी बेचैनी से भर उठी। मुझे उनके जाना का अभी भी यकीन नहीं हो रहा था। यादों की न जाने कितनी परछाइयां मेरे आस-पास जीवंत हो उठी।

         मेरा उनका साथ दो-चार वर्षों का नहीं, लगभग चालीस वर्षों का था। इन वर्षों के दौरान हम सिर्फ, प्रकाशक और लेखक ही नहीं रहे थे बल्कि जिंदगी की तमाम कठिनाइयों में साथ रहने वाले परम प्रिय दोस्त बन गये थे। उनके व्यक्तित्व में एक जादू था, जो उन्हें हर दिल अजीज बनाता था।

          जिस तरह उनका व्यक्तित्व जादुई था उसी तरह उनकी लेखनी भी तिलिस्मी थी। इब्ने सफी की रहस्यमयता, गुलशन नंदा का दिल को छूने वाला भावनात्मक प्रवाह, अगाथा क्रिस्टी के रहस्यलोक की रचना बाबू देवकीनंदन खत्री का तिलिस्म-लोक, जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा के पात्रों की सहजता और सरलता अगर कहीं एख ही जगह मिल जाने की कल्पना की जा सकती है तो वह थी वेदप्रकाश शर्मा की लेखनी। उनकी लेखनी पाठकों को जादू में बांध लेने में समर्थ थी, लेखन के प्रति उनका समर्पण भी अद्भुत था।

               आज भी मुझे याद हैं वे दिन, जब हम लगभग चालीस वर्ष पहले मिले थे। उन दिनों उनके उपन्यास मेरठ से प्रकाशित हो रहे थे, परंतु उनको अभी वह मंजिल नहीं मिल पाई थी, जिसके वे असल हकदार थे। मुझे उनमें एक छुपी प्रतिभा नजर आई, मैंने तय किया कि मैं इस लेखक को वह मुकाम दिलाऊंगा जो इसे हासिल होना चाहिये।

               हमने मिलकर तय किया कि उनके उपन्यासों के प्रकाशन के लिये एक नई संस्था स्थापित हो और उन्हें उसी तरह प्रस्तुत किया जाये जिस तरह भारत में फिल्मों को बड़े स्केल पर प्रोजेक्ट किया जाता है। इसी संकल्पना के तहत राजा पॉकेट बुक्स की स्थापना की गई।

    उस समय वेद जी विजय-विकास सीरीज पर आधारित उपन्यास लिखते थे। इस करैक्टर से उनकी अच्छी-खासी पहचान सब चुकी थी। परंतु सच तो यह था कि मैं उन्हें उपन्यास लेखन के फलक पर देखना चाहता था। हम दोनों ने यह निश्चय किया कि एक ऐसे करैक्टर का सृजन किया जाये जो कानून के दायरे में रहकर अन्याय का प्रतिरोध करता हो। बहुत मंथन के बाद जन्म हुआ `केशव पण्डित` का, उपन्यास छपा और किसी फिल्म की तरह ही बहुत बड़े पैमाने पर इसका विज्ञापन किया गया। देखते-ही-देखते यह उपन्यास घर-घर में चर्चा का विषय बन गया।

               मुझे याद है वह समय, इस उपन्यास का मुख्य पृष्ठ बनवाने के लिये हम पन्द्रह दिन, पूरे पन्द्रह दिनों तक चित्रकार शैले जी के पास अमरोहा में उनके घर पर ही ठहरे थे। हमने बहुत मेहनत के बाद इस उपन्यास का मुख्य पृष्ठ फाइनल किया। पाठकों को याद होगा इस उपन्यास का मुख्य पृष्ठ, बेहतरीन कहानी के साज-सज्जा के इस संयोजन ने अपना कमाल दिखाया और वेद जी उपन्यास जगत पर छा गये।

               इस उपन्यास का दूसरा पार्ट बन गया था `कानून का बेटा`। कानूना का बेटा के प्रकाशन से पहले ही उसकी मांग इतनी बढ गई कि होससेलरों ने हजारों की संख्या में अपनी प्रतियां बुक करानी शुरू कर दी। पाठकों का धैर्य समाप्त सा होने लगा। रोज सैकड़ों फोन आते कि उपन्यास कब तक आ रहा है। आखिरकार `कानून का बेटा` आया और उपन्यास जगत में मील का पत्थर साबित हुआ।

               इस उपन्यास ने बिक्री के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिये। लाखों प्रतियां बिकी। यहां तक कि 10 रुपए का यह उपन्यास दो सौ रुपए में ब्लैक मार्केट में बिका। कानून का बेटा के बाद `वर्दी वाला गुण्डा`,`पाक साफ`,`एक थप्पड़ हिन्दुस्तानी`, `काला अंग्रेज` आदि को भी पाठकों ने खूब सराहा। यह सिलसिला अब तक जारी है।

 उपन्यास लेखन के साथ-साथ उन्होंने अपने लेखन काल में कॉमिक्स भी लिखे और उनका सफल प्रकाशन भी किया। उनके लिखे दो कॉमिक्स करैक्टरों `जम्बू` और `अंगारा` को भी पाठकों में खूब पसंद किया।

 वेदप्रकाश शर्मा के डेढ़ सौ से भी अधिक उपन्यास राजा पॉकेट बुक्स ने ही प्रकाशित किये हैं। मेरे लिये यह अतिसौभाग्य की बात है।

               क्या-क्या याद करुं। क्या-क्या कहूँ। मेरा उनका साथ एक इतिहास है और इतिहास दो लफ्जों में बयां नहीं होता। आज जब वे हमारे बीच नहीं है तो मुझे याद आ रही हैं वे फिल्में भी जिन्होंने उनके कलम के जादू को सिनेमाई पर्दे पर उतारा,`बहू मांगे इंसाफ`,`सबसे बड़ा खिलाड़ी` जैसी सफल फिल्में उनके उपन्यास पर ही आधारित हैं।

               आँखों में आंसू हैं और हाथों में कम्पन। मुझे यह लग रहा है कि कहीं लिखते-लिखते ये आँसू कागज के कोरे पन्नों तक न आ जायें। इसलिये मैं उस दिव्यात्मा की शांति के लिये परमात्मा से प्रार्थना करते हुये उनकी पत्नी मधु जी, उनके पुत्र शगुन व उनकी पुत्रियों करिश्मा, गरिमा और खुशबू के लिये प्रार्थना करता हूँ कि उन्हें इस दुख को सहने की शक्ति प्राप्त हो। साथ ही आप सभी पाठकों से यह वादा करता हूँ कि मैं उनकी इच्छा, उनकी पुस्तकों के अंग्रेजी अनुवाद के संबंध में पूरी करने का प्रयत्न अवश्य करूंगा।

 राजा पॉकेट बुक्स से छपी उनकी पुस्तकें तो सदैव उपलब्ध होती रहेंगी।

     -     शोकाकुल
-    राजकुमार गुप्ता
-    निदेशक राजा पॉकेट बुक्स


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