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बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

श्रद्धा सुमन वेद जी को- सुरेन्द्र मोहन पाठक

 अलविदा बिरादर अलविदा- सुरेन्द्र मोहन पाठक
            दिनाकं 17.02.2017 को विख्यात, प्रतिष्ठित, लोकप्रिय साहित्य के लेखक वेदप्रकाश शर्मा के देहावसान की खबर जब आम हुई तो उनके शैदाई पाठक हक्के-बक्के रह गये। एक निष्ठावान लेखक का इतनी कम उम्र में चला जाना उनके लिये एक नाकाबिलेबर्दाश्त सदमा था। जाना तो सब ने ही होता है लेकिन सिर्फ 62 साल की उम्र में  चला जाना एक दारुण व्यथा बरपाने वाला वाकया था।
वेदप्रकाश शर्मा जी के साथ सुरेन्द्र मोहन पाठक जी
                  उनके चौथे के दिन अपनी संवेदना प्रकट करने के लिये मैं मेरठ उनके दौलतखाने पर गया तो मैंने बैठक के एक कोने में स्मृति शेष के तौर पर रखी उनकी एक तस्वीर देखी। वो तस्वीर यकीनन हालिया थी और वो उसमें इतने यूथफुल और तरोताजा जान पड़ रहे थे कि यकीन करना मुहाल था कि जिस अक्स के मैं रूबरू था वो अब इस फानी दुनिया से रुखसत पा चुका था। उनकी पत्नी के रूबरू हुआ तो उनसे निगाहें मिलाते वक्त कलेजा चाक होता था, बेटे- बेटियों के रूबरू हुआ तो उनकी गमगीन सूरतें देखी नहीं जाती थी।
                कहते हैं वक्त बड़े-बड़े गम भुला देता है। ठीक ही कहते होंगे लेकिन वक्त लेखक के जाने का गम भले ही भुला दे अपने निरंतर, अनथक, लेखन के जरिये उन्होंने जो अपना लार्जर दैन लाइफ वजूद खड़ा किया था, वो नहीं भुलाया जा सकने वाला। सालोंसाल ये जहां `वर्दी वाला गुण्डा` के लेखक को याद करेगा जिसकी ज्यादातर जिंदगी में उपन्यास लेखन में उससे आगे कोई नहीं था। 
कबीर जी ने कितना दुरुस्त फरमाया है-
                              पानी केरा बुदबुदा, अस मानुष की जात
                              देखत ही छिप जायेगा,  ज्यों तारा प्रभात।
लेकिन इस `तारा प्रभात` का दुखद अंजाम किसे कबूल होगा? किसी को नहीं।
                              मौत को देखा तो नहीं
                              पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी
                              कमबख्त जो भी उससे मिलता है
                              जीना छोड़ देता है।
लभगभ आधी सदी तक पाठकों के दिल पर एकछत्र राज करने वाले विलक्षण रहस्यकथा लेखक वेदप्रकाश शर्मा को मेरी विनम्र श्रद्धांजालि।
                               जब तक रहे तू, यूं रहे कि तू ही तू रहे,
                              जब तू न रहे, तब भी तेरी गुफ्तगु रहे।
अलविदा बिरादर अलविदा।
                                                        उपन्यासकार
                                                       सुरेन्द्र मोहन पाठक
अन्य विशेष लिंक
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