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सोमवार, 26 सितंबर 2022

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की -23

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 23
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टावर वाली गली में उस समय गली के आरम्भ के किसी भी मकान के आसपास कोई नहीं था, ना ही उन मकानों के द्वार खुले हुए थे, लेकिन गली के पांचवें मकान का लोहे की सलाखों वाला मेन गेट खुला हुआ था और उसमें से एक गोरा-चिट्टा लम्बा और बेहद खूबसूरत नौजवान बाहर निकल रहा था।
मैं उसी मकान की ओर बढ़ गया। तभी मकान से दो और शख्स बाहर आये। एक कुछ छोटे कद का गेंहुए रंग का नौजवान था और दूसरा दबे सांवले रंग का औसत कद का नौजवान था, जो पहले नौजवान से कद में छोटा और दूसरे से बड़ा था।
मैं आगे बढ़ता हुआ उन तीनों अजनबियों के निकट पहुँचा और लम्बे और गोरे नौजवान से बोला-”यहाँ कोई कम्प्यूटर ठीक करने वाले रहते हैं?”
देवदत्त सर, हाँ, यही घर है।” लम्बा गोरा नौजवान बोला-”कोई काम है सर से....?”
मेरा कम्प्यूटर खराब हो गया है।”-  मैंने कहा। 
क्या गड़बड़ हुई है?”
*पता नहीं...। स्टार्ट नहीं हो रहा।” - मैंने कहा। 
कब से....?”        मुझे उस लम्बे गोरे नौजवान के सवालों से कोफ्त हुई, लेकिन शान्त रहते हुए बोला-"परसों रात मैंने काम किया था। कल सुबह ही मेरठ चला गया था। कल रात को लौटा तो कल तो कम्प्यूटर बिल्कुल नहीं चलाया, लेकिन आज सुबह चलाया तो कम्प्यूटर ऑन ही नहीं हुआ।”
रैम खराब हो गई होगी...।” - लम्बा गोरा सांवले रंग के मझोले कद के नौजवान से बोला-"है ना, नवीन...?”
सांवले रंग के नौजवान ने सहमति में सिर हिलाया। 
तभी घर के अन्दरूनी दरवाजों से छोटे कद का एक तरफ झुक कर चलता हुआ चश्माधारी शख्स सामने आया। 
देवदत्त सर, इनका कम्प्यूटर खराब हो गया है।” - लम्बे गोरे नौजवान ने उस आगन्तुक से कहा।
कहाँ है? लाओ।”-  देवदत्त ने कहा। 
घर पर है...।” मैंने कहा तो उस छोटे कद के मचक मचक कर कुछ टेढ़ा-टेढ़ा चलने वाले शख्स ने तुरन्त कहा-"यहाँ ले आओ।”
यहाँ मैं नहीं ला सकता।” - मैंने कहा। 
क्यों, यहाँ लाने में क्या प्राब्लम है?” देवदत्त ने पूछा। 
मैंने कभी कम्प्यूटर उठाया नहीं, एक परिचित हैं सुशील जी, उनसे लिया था...।”
राॅयल कम्प्यूटेक वाला, नजफगढ़ वाला...?” - देवदत्त ने पूछा। 
हाँ, शायद वही, वो कम्प्यूटर खुद लेकर आये थे और जिस टेबल पर, जैसे फिट कर गये थे, वैसा ही रखा है। मुझे तो यह भी नहीं पता कि उसका वजन कितना है और ज्यादा वजन मुझसे नहीं उठता।”
वजन ज्यादा नहीं होता, आपसे उठ जायेगा।”-  देवदत्त ने कहा।
नहीं उठेगा, फिर चार-चार चीजें तो मैं उठा ही नहीं सकता।”
चार-चार क्या...?” - देवदत्त ने असमंजस से मेरी ओर देखा। 
सीपीयू है, मानीटर है, कीबोर्ड और माऊस है...।”
नहीं-नहीं...।” - मेरी बात पूरी होते हुए देवदत्त शीघ्रता से बोला-"आपने सिर्फ सीपीयू लाना है। उसे हम अपने सिस्टम पर लगा कर देख लेंगे।”
पर मैंने कभी सीपीयू भी नहीं उठाया, मुझे नहीं पता, मुझसे उठेगा या नहीं, आप घर पर चलकर ही देख लो।” -मैंने कहा। 
इस बार देवदत्त हंसा। बोला-"सीपीयू दस साल का लड़का भी उठा सकता है। और आपके घर पर ठीक से चैक नहीं होगा, वहाँ एक एक सामान लेकर कैसे जायेंगे। यहाँ तो सब कुछ है। रैम, मदरबोर्ड...पर छोड़ो...।” -यह कहकर देवदत्त लम्बे गोरे नौजवान से बोला-”मनोज, तू इनके साथ जा और  इनका सीपीयू ले आ...।”
मनोज मेरे साथ चलने के लिये तैयार हुआ तो मैंने देवदत्त से पूछ लिया-"टाइम कितना लगेगा, ठीक होने में?”
यह कुछ नहीं कहा जा सकता...।” देवदत्त रुखे स्वर में बोला-”दस मिनट भी लग सकते हैं... दस घण्टे भी...।”
दस घण्टे सुनकर तो मेरी सांसें जैसे गले में अटक गयीं, मगर तभी मनोज बोल पड़ा- "चलें सर...।”
दोस्तो, यही वह मनोज गुर्जर है, जो आज भी मेरे साथ जुड़ा हुआ है। हालांकि आरम्भिक दिनों में मेरा सबसे बड़ा नुक्सान भी इसी मनोज गुर्जर की वजह से हुआ था, जिसके बारे में आप इसी एपिसोड में आगे जानेंगे। तब मनोज मुझे 'सर' ही कहता था, लेकिन जैसे-जैसे निकटता बढ़ी, 'सर' उड़ गया और मैं 'मित्तल जी' बन गया। 
मनोज को साथ लेकर मैं अपने घर गया। 
मनोज सीपीयू लेकर वापस जाने लगा तो मैं भी उसके साथ चलने लगा। यह देख, वह तुरन्त बोला-"आप यहीं रुको सर, आप क्या करोगे चलकर, मैं ठीक कराकर, यहीं लाकर फिट कर दूंगा।”
मेरा दिल तो घर में रुकने का नहीं था। मेरी नज़र में मेरा कम्प्यूटर बहुत कीमती चीज़ था और मनोज एकदम अजनबी। पर धीरज और साहस मुझ में तब भी कूट-कूट कर भरा था। मेरे कदम रुक गये। 
मनोज सीपीयू लेकर चला गया, लेकिन उसके बाद का मेरा समय बड़ी बेचैनी में गुजरा। एक-एक मिनट भारी लगने लगा।
देवदत्त के शब्द 'दस घण्टे भी लग सकते हैं, दिल और दिमाग में हथौड़े की तरह बिना रुके बजने लगे थे, लेकिन दस घण्टे का इन्तजार न रहा, लगभग चालीस मिनट बाद मनोज सीपीयू लेकर वापस आ गया। 
ठीक हो गया?” - उसकी शक्ल देखते ही मैंने पूछा। 
हाँ, इसकी रैम खराब थी। बदल दी। यह रही आपकी रैम..।”- मनोज सीपीयू और खराब रैम टेबल पर रखते हुए बोला।
कितने पैसे हुए...?” - मैंने खराब रैम को उठाकर उलट-पलटकर देखते हुए पूछा। मुझे रैम देख, समझ में ही नहीं आया कि उसमें क्या खराबी हुई होगी। तब कम्प्यूटर एक बिल्कुल नई चीज हुआ करती थी और उसके पुर्जों के बारे में, जमाने के साथ दौड़ लगाने के हम जैसे इच्छुक लोगों को धेले की जानकारी नहीं थी। कम्प्यूटर ले अवश्य लिया था, पर सीपीयू, मानीटर, कीबोर्ड और माउस के अलावा कुछ नहीं मालूम था, यह भी इसलिये मालूम था, क्योंकि पहले पालम गाँव के अमेरिकन इंस्टीट्यूट में टाइपिंग करवाते हुए इंस्टीट्यूट चलाने वाले कृष्ण मुरारी गर्ग से बहुत कुछ जान लिया था। कृष्ण मुरारी गर्ग बढ़िया शख्स था, कुछ भी पूछो, आवश्यकता से अधिक डिटेल में पूरी जानकारी खुशी खुशी देता था। 
दो सौ रुपये हुए....।”-  मनोज ने सीपीयू टेबल पर सैट कर, मानीटर, कीबोर्ड, माउस कनेक्ट करते हुए, दीवार में लगे बिजली के बोर्ड के साकेट्स में कम्प्यूटर के प्लग्स लगाते हुए, रैम की कीमत बताई। 
दो सौ...।” - मैंने गहरी सांस ली। उन दिनों दो सौ रुपये एक बड़ी रकम हुआ करती थी। 
मेरा चेहरा देख, मनोज को लगा, शायद दो सौ रुपये मेरे पास नहीं हों, जो कि सच भी था। वह बोल उठा-"सर, अगर अभी नहीं हों तो कोई बात नहीं, मैं बाद में आकर ले जाऊँगा, आप यह बता दीजिये, कब आऊँ?”
पर तभी मेरी पत्नी राज ने नाक नीची होने से बचा ली। उसने दो सौ रुपये लाकर मनोज के हाथ में थमा दिये। 
मनोज ने कम्प्यूटर ऑन करने के लिये सीपीयू का बटन दबा दिया था। 
मैं कम्प्यूटर ऑन होने की प्रतीक्षा करने लगा, लेकिन कुछ देर होने पर भी कम्प्यूटर स्टार्ट नहीं हुआ तो व्यग्र होकर मनोज से बोला-"यह तो अब भी स्टार्ट नहीं हो रहा..।”
धीरज रखिये सर...।” मनोज बोला-"आपका सिस्टम बहुत स्लो है, स्टार्ट होगा, लेकिन टाइम लेगा।”
और जब मेरी बेचैनी अपने चरम पर थी, मानीटर में प्रकाश उभरने लगा।
बहुत देर लगा रहा है मानीटर, ऑन होने में....।” -मैंने मनोज से कहा। 
नहीं, कोई ज्यादा देर नहीं लगा रहा, पहले भी इतना ही टाइम लेता होगा और इतना टाइम तो लग ही जाता है।” - मनोज ने मुझे तसल्ली दी। 
पर रामगोपाल के यहाँ के सभी सिस्टम इससे जल्दी ऑन हो जाते हैं।” -मैंने कहा। 
जरूर हो जाते होंगे।” मनोज बोला-"सिस्टम -सिस्टम में भी फर्क होता है सर...। अभी आप इसी पर काम कीजिये। और फास्ट काम करना हो तो इसका मदर बोर्ड चेंज करवा लीजियेगा।”
                   मैंने मनोज की बात मानकर, कम्प्यूटर पर काम करना आरम्भ कर दिया, लेकिन तीसरे ही दिन फिर मुसीबत आ धमकी। कम्प्यूटर फिर बन्द हो गया। बहुत बार ऑफ-ऑन करने पर भी सीपीयू में कोई हरकत नहीं हुई। मानीटर की स्क्रीन काली की काली ही रही।
मैं भागा-भागा देवदत्त गोयल के यहाँ गया। इस बार मनोज बाहर ही मिल गया। मैंने मनोज से पूछा -"देवदत्त हैं?”
क्यों, क्या हुआ? कम्प्यूटर फिर खराब हो गया?” -मनोज ने पूछा। 
हाँ, मतलब पहले तुमने ठीक से नहीं काम किया था, इसलिये तुम्हें पता था कि कम्प्यूटर फिर खराब हो जायेगा।” - मैं कुछ रोष भरे स्वर में बोला। 
नहीं सर जी, ऐसी बात नहीं थी। तब कम्प्यूटर में जो बीमारी थी, हमने ठीक कर दी थी। आपके सामने ही कम्प्यूटर चला था और आप कई दिनों बाद आ रहे हो तो चला तो होगा न कम्प्यूटर। अब फिर कोई खराबी ही हुई होगी, तभी आप आये हो यहाँ? वरना यहाँ क्यों आते?”-  मनोज ने बड़े प्यार से लम्बा सा लेक्चर दे डाला और यहीं पर वह रुका नहीं, आगे भी बोलता चला गया -"अच्छा, आप ही बताइये, मरीज डॉक्टर के पास क्यों जाता है। कभी पेट में दर्द हो तो भी जाना जाता है। कभी सिर में दर्द हो तो भी जाता है और कभी बुखार भी हो सकता है और खाँसी भी तो आ सकती है।”
बस-बस...।” - मैंने हाथ खड़ा कर मनोज को रोका -"कभी दमा भी हो सकता है, कभी कैंसर भी हो सकता है। ब्रेन हैमरेज भी हो सकता है। किडनी फेल भी हो सकती है। हार्ट अटैक भी हो सकता है। मुझे सब मालूम है भाई और आपकी बात सही है मरीज़ डाक्टर के पास बीमार पड़ने पर ही जाता है और मेरा कम्प्यूटर फिर से बीमार हो गया है। बन्द हो गया है। मानीटर ऑन ही नहीं हो रहा।”
तो चलिये न सर, चलकर देख लेते हैं।” - मनोज पहले की तरह मधुर अन्दाज़ में बोला। आज भी उसका अन्दाज़ वैसा ही मीठा और मनमोहक है, यही कारण है - एक बार सम्बन्ध बनने के बाद आज तक वह मेरे साथ भी है और मेरा विश्वासपात्र भी है। मैं आँख मूंदकर उस पर भरोसा करता हूँ। और गुस्सा करना मेरी आदत में नहीं है, लेकिन कभी कभी उसे डांट भी देता हूँ और उस पर गुस्सा भी हो जाता हूँ, मगर उसकी मुस्कान सदैव कायम रहती है। और मेरे गुस्सा होने पर उसकी प्रतिक्रिया यह होती है कि "मित्तल जी, आप डांटते हो तो मुझे बिल्कुल भी बुरा नहीं लगता, आप अपना समझते हो, तभी तो डांटते हो, तभी गुस्सा होते हो, मेरे भले के लिये गुस्सा होते हो, ऐरे-गैरे को कोई थोड़े ही डांटता है। गुस्सा करता है।”
खैर, उस दिन मनोज ने कहा -"तो चलिये न सर, चलकर देख लेते हैं।”
तो मैंने यूँ ही पूछ लिया -"तुम चलोगे?”
हाँ, क्या हर्ज है, बस, देवदत्त सर को बोल आऊँ, फिर चलता हूँ। सर ने मुझे सारा काम सिखाया हुआ है।” - मनोज ने कहा। 
तब मनोज मुझे 'सर' ही कहता था। अब 'मित्तल जी' कहता है। 
                        उस दिन मनोज मेरे साथ गया। कम्प्यूटर ऑन करने की उसने बहुत कोशिश की। सीपीयू खोल रैम निकाली फूंक मार कर, फिर लगाई। दोबारा निकाली। एक रूमाल से नर्म नर्म हाथ से साफ करके लगाई, मगर कम्प्यूटर स्टार्ट नहीं हुआ तो बोला -”सर जी, इसे तो आफिस ले जाना पड़ेगा। वहीं टेस्टिंग के बाद बीमार पता चलेगी।”
कितनी देर में ठीक हो जायेगा?”-  मैंने पूछा । 
जितनी जल्दी बीमारी पता चलेगी, उतनी जल्दी ठीक हो जायेगा। बीमारी पता चलने में देर लगी तो ठीक होने में भी देर लग सकती है।”-  मनोज ने गोल-मोल जवाब दिया। 
ठीक है, ले जाओ। पर जल्दी ठीक कर देना, यह न हो कि किसी और का भी कम्प्यूटर ठीक होने आया हो तो तुम उनका काम करने लगो और मेरा साइड में कर दो।”-  मैंने कहा। 
बेफिक्र रहिये सर, यहाँ ज्यादा लोगों के यहाँ कम्प्यूटर नहीं हैं। देवदत्त सर के यहाँ तो इसलिये हर समय चहल-पहल रहती है, क्योंकि वह क्लास लेते हैं। सिखाते हैं।” मनोज ने कहा -यहाँ काफी लड़के उनसे कम्प्यूटर असेम्बलिंग और रिपेयर करना सीखते हैं।” 
                          देवदत्त गोयल से इजाज़त लेकर मनोज ही मेरे साथ मेरे घर गया और घर से सिर्फ सीपीयू ही ले गया। उसका कहना था मानीटर ठीक ही है। पावर सप्लाई मानीटर तक नहीं पहुंच रही है, इसलिये ऑन नहीं हो रहा है। 
                  दो घंटे बाद मनोज सीपीयू वापस ले आया और बताया -"सर, आपके मदरबोर्ड में गड़बड़ थी, हमने नया और बढ़िया मदरबोर्ड लगा दिया है। आपका रख लिया है - रिपेयर करने के लिये। आप चला कर देखिये, अगर यह मदरबोर्ड आप रखेंगे तो आपके मदरबोर्ड का डिफरेंस काटकर आपको तीन सौ रुपये देने होंगे। वरना आप अभी इस मदरबोर्ड पर काम कीजिये, हम रिपेयर होने पर आपका मदरबोर्ड वापस लगाकर अपना मदरबोर्ड ले जायेंगे। तब आपको अपने मदरबोर्ड की रिपेयरिंग के दो सौ रुपये देने होंगे।”
ठीक है, तुम कम्प्यूटर स्टार्ट करो।”- मैंने कहा। 
            मनोज ने सीपीयू टेबल पर रख सारे कनेक्शन जोड़े और कम्प्यूटर स्टार्ट कर दिया। मानीटर पर बहुत जल्दी स्क्रीन आ गई और पहले से बहुत जल्दी डेस्कटॉप पर सारे आइकॉन दिखने लगे। 
मैंने मनोज से कहा -"कम्प्यूटर तो पहले से बहुत जल्दी स्टार्ट हो गया।”
हाँ, इसमें जो मदरबोर्ड लगा है, आप वाले से बढ़िया है।” - मनोज ने कहा। 
और वो जो मेरा मदरबोर्ड तुम ठीक करा रहे हो, वह ठीक होने के बाद अगर लगाओगे तो क्या वह भी जल्दी कम्प्यूटर स्टार्ट कर देगा?”-  मैंने मनोज से पूछा। 
नहीं सर, वो तो उतना ही टाइम लेगा, जितना पहले लेता था।”- मनोज ने कहा। 
तो ठीक है..। तुम शाम को इसी के पैसे ले जाना।” -मैंने मनोज से कहा। 
                    दरअसल तब तीन सौ रुपये मेरे पास नहीं थे। डेढ़ सौ रुपये के करीब थे, पर आधे अभी ले लो, आधे बाद में ले लेना, कहने का मन नहीं हुआ। 
ठीक है सर, शाम को कितने बजे आऊं?” - मनोज ने पूछा। 
सात बजे के करीब आ जाना।”-  मैंने कहा। 
मनोज चला गया तो मैंने कम्प्यूटर पर काम करना आरम्भ किया। थोड़ी देर बाद लैण्डलाइन फोन पर मेरठ से वेद प्रकाश शर्मा की काल आ गयी।
मेरा काम चल रहा है न...?”-  वेद ने पूछा। 
धड़ल्ले से चल रहा है।”-  मैंने कहा। 
कितना लिख लिया...?”-  वेद ने पूछा। 
नौ फार्म का मैटर हो गया है। बाकी तीन फार्म भी इस हफ्ते हो जायेंगे।”-  मैंने कहा, फिर पूछा -"वो पांच फार्म के प्रिन्ट आउट जो तुम्हें दिये थे, पढ़े।”
अरे, पढ़े थे, तभी तो तुझे आगे लिखने के लिए फोन किया था।”
हाँ, पर उस रोज ज्यादा बात नहीं हुई थी। फोन कट गया था।”
हाँ, बाहरी काल में ऐसा तो अक्सर होता है। पर काम की तो बात हो ही गयी थी।”
हाँ, पर तुमने यह नहीं बताया था कि पढ़कर मजा आया या नहीं?”
अरे, हम कोई नावल मजे के लिये पढ़े हैं। मज़ा तो पाठकों को आना चाहिए। तू लिखै जा बस, फटाफट...। और यह काम खत्म करै तो आगे के लिये भी मैंने सोचा हुआ है। तुझे खाली नहीं रखना अब...।” -वेद ने कहा। 
ऐसा क्या सोचा हुआ है?” -मैंने पूछा। 
अभी से सस्पेंस क्या खोलना, जब आयेगा, तब बात करेंगे।”
ओके तो बताओ, कब आ जाऊँ? आज आ जाऊँ?”
न-न... फालतू चक्कर लगाने की जरूरत नहीं है, काम पर ध्यान दे। नावल पूरा हो जाये तो सारे प्रिन्ट निकाल कर ठीक से लेकर आइयो। प्रिन्ट आउट सीधे और साफ रहें। तेरी टाइपिंग में गलती होने का तो कोई चांस ही नहीं होगा तो सीधे निगेटिव बनवा कर, ऑफसेट पर भेज देंगे।” - वेद ने कहा। 
ठीक है, फिर तो अगले हफ्ते ही आना हो सकेगा।”
तो ठीक है, अगले हफ्ते आइयो। किसी डाक्टर ने यह थोड़े ही कहा है कि इसी हफ्ते तेरा आना जरूरी है।”
ओके...। तो अब नावल कम्पलीट करके ही आऊँगा।”-  मैंने कहा। 
ठीक है, लग जा धन्धे पे....।” वेद ने कहा और फोन काट दिया। प्रस्तुति - योगेश मित्तल

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