दूसरा चेहरा- अंजिक्य शर्मा
उपन्यास 'दूसरा चेहरा' का एक अंश-
इंस्पेक्टर सुबीर पाल ने होटल जश्न की छठवीं मंजिल पर स्थित कमरा नम्बर 303 में कदम रखा।
वो उस तरह के शानदार होटलों में मिलने वाले सुइट्स की तरह ही एक शानदार सुइट था, जिसमें कुल तीन रूम थे। एक बाहर वाला हॉलनुमा रूम, उसे पार करके अंदर एक छोटा रूम और आखिर में तीसरा व आखिरी कमरा।
लाश सबसे बाहर वाले कमरे में ही पड़ी थी।
इंस्पेक्टर ने गौर से लाश का मुआयना किया। वो कोई 30-32 वर्ष का सेहतमंद ऊंची कद-काठी वाला युवक था। उसके गले के पास खून का छोटा-सा तालाब जैसा बन कर सूख भी चुका था। गले पर धारदार हथियार से काटे जाने का निशान था।
कुछ देर उस कमरे में रूकने के पश्चात इंस्पैक्टर पाल अगले कमरे को पार करते हुए सबसे अंदर वाले कमरे-बैडरूम में पहुंचा। वहां सब इंस्पैक्टर दिनेश रावत और पुलिस का डॉक्टर वी.के. खुराना पहले ही मौजूद थे।
बाकी कमरों की तरह बैडरूम भी शानदार था लेकिन जो चीज बैडरूम को और भी शानदार बना रही थी, वो थी एक बड़े साइज का ग्लास डोर, जिससे बालकनी से बाहर का शानदार व्यू नजर आ रहा था।
कमरे के बीचों-बीच रखे विशाल बैड पर एक बेहद खूबसूरत युवती बेसुध पड़ी थी।
युवती के दोनों हाथ बिस्तर पर विपरीत दिशाओं में फैले हुए थे, जिनमें से एक हाथ में-
-एक खून से रंगा चाकू था।
‘’ये कौन है?’’-इंस्पैक्टर पाल ने हैरानी से कहा।
“क्या पता?”-एसआई रावत ने कंधे उचकाए-''होश में आएगी तो पता चलेगा।“
“और बाहर जो मरा पड़ा है, वो कौन है? या वो भी जब जिंदा होगा, तब पता चलेगा।“
रावत हड़बड़ा गया।
''सॉरी सर!”-वो जल्दी से बोला-''उसका नाम पवन है। पवन शांडिल्य। पैसे वाले घर का है। पिछली रात को ही होटल में चैक इन किया था बेचारे ने। इस लड़की के बारे में कुछ पता नहीं चल पाया है। ये उसके साथ नहीं ठहरी थी। शायद बाहर से मिलने आई होगी। हालांकि होटल के कर्मचारी कहते हैं कि उन्होंने इसे होटल में-या इस रूम में-आते हुए नहीं देखा।“
इंस्पैक्टर ने सिर हिलाया, फिर वो डॉक्टर से मुखातिब हुआ-''आपका क्या कहना है?”
''लड़की काफी समय से बेहोश लग रही है”-डॉक्टर गम्भीर स्वर में बोला-''इसके हाथ में जो चाकू है, उस पर लगा खून भी सूख चुका है।“
''इसके हाथ में चाकू है”-इंस्पैक्टर उलझनपूर्ण स्वर में बोला-“इसे देखकर तो ऐसा लग रहा है कि उस आदमी का खून....।“
“...इसी ने किया है।“-डॉक्टर ने उसकी बात पूरी की।
इंस्पैक्टर ने वैसे ही उलझनपूर्ण भाव से डॉक्टर की ओर देखा, फिर बोला-“लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है?”
''कैसा कैसे हो सकता है? आपको हैरानी हो रही है कि ये छुई-मुई सी दिखने वाली लड़की ऐसे हट्टे-कट्टे आदमी का खून कैसे कर सकती है?”
''नहीं। वो बात नहीं है। हाथ में चाकू हो तो इससे भी ज्यादा छुई-मुई लड़की उससे भी ज्यादा तगड़े आदमी का भी खून कर सकती है। इस बात की मुझे कोई हैरानी नहीं है।“
''फिर?”
''फिर क्या? अरे भाई, ये यहां बेहोश पड़ी है, वो वहां एक कमरा पार करके हॉल में मरा पड़ा है। कमरा अंदर से बंद था। किसी और को यहां देखा नहीं गया। खून से रंगा चाकू इसके हाथ में है लेकिन ये खुद बेहोश पड़ी है। इस मर्डर का तो कुछ गुणा-भाग ही समझ में नहीं आ रहा है।“
''उसीलिए तो आप यहां हैं इंस्पैक्टर साहब। इस मर्डर के गुणा-भाग को समझने के लिए।“
''चलिए”-इंस्पैक्टर ने बैड के सिरहाने रखी छोटी टेबल पर रखे पानी के जग की ओर इशारा करते हुए कहा-''फिलहाल तो इसे होश में लाइये। कम से कम यही कुछ बताए तो पता तो चले यहां आखिर हुआ क्या था?”
डॉक्टर छोटी टेबल के पास पहुंचा। उस पर पानी से आधे भरे जग के अलावा एक प्लेट भी रखी थी, जिसमें कुछ सेब रखे थे।
''शायद इसने चाकू इसी प्लेट से उठाया होगा।“-इंस्पैक्टर बोला।
डॉक्टर ने पानी भरा जग तो उठा लिया लेकिन तुरंत युवती के चेहरे पर पानी के छींटे मारने के स्थान पर उसने एक बार गौर से युवती को देखा। उसकी तरह ही इंस्पैक्टर और एसआई ने भी बेहोश पड़ी युवती का मुआयना किया।
उसके कपड़े अस्त-व्यस्त से लग रहे थे।
''ऐसा लग रहा है”-एसआई के मुंह से निकला-''इसके साथ जोर-जबर्दस्ती करने की कोशिश की गई थी।“
''और अगर ऐसा करने वाला वो शख्स था, जिसकी लाश बाहर हॉल में पड़ी है, तो सारी कहानी शीशे की तरह साफ हो जाती है।“-इंस्पैक्टर ने कहा।
डॉक्टर और एसआई दोनों की नजरें इंस्पैक्टर की ओर घूम गईं।
''वो शख्स”-इंस्पैक्टर ने कहा-''इसके साथ जोर-जबर्दस्ती करने की कोशिश कर रहा होगा। इसी दौरान लड़की के हाथ प्लेट में रखा चाकू आ गया और इसने उस शख्स के गले पर वार कर दिया, जिससे उसकी मौत हो गई।“
''लेकिन”-एसआई के मुंह से निकला-''अगर लड़की ने उसके गले पर चाकू से वार किया तो उसकी लाश बाहर हॉल में कैसे पहुंची?”
''गले पर चोट लगने से जरूरी नहीं कि हमेशा तुरंत ही मौत हो जाए”-डॉक्टर ने गम्भीर स्वर में कहा-''वैसे भी उसका गला कोई पूरा नहीं कट गया है। चाकू के वार से बस सामने की ओर जख्म है। शायद घायल होने के बाद वो मदद की उम्मीद में बाहर निकलना चाहता होगा। यहां तो वैसे भी कोई नहीं था, जो उसकी मदद करता। लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाया। बाहर वाले हॉल तक पहुंचकर उसकी हिम्मत ने उसका साथ छोड़ दिया और वो वहीं ढेर हो गया।“
''चलिये मान लिया”-एसआई बोला-''ऐसा ही हुआ होगा। लेकिन फिर ये यहां कैसे बेहोश हो गई? इसे बेहोश करने वाला कौन था? और बेहोश करके अंदर से कहां चला गया?”
''इसके बेहोश होने की कई वजह हो सकती हैं।“-डॉक्टर बोला।
''कई?”
''हां। मैंने ऐसे-रेप अटैम्प्ट के-कई केसेज देखे हैं। ऐसी घटनाओं में सदमे से, या दम घुट जाने से या किसी अन्य कारण से भी लड़की बेहोश हो सकती है।“
''ओह।“
''या ये भी हो सकता है कि अपने हमलावर से धींगामुश्ती के दौरान इसका सिर पलंग के सिरहाने से टकरा गया हो, जिसकी सम्भावना ज्यादा भी लग रही है क्योंकि इसका सिर सिरहाने के कुछ ज्यादा ही पास है।“
''अभी तो आप इसे होश में लाइये”-इंस्पैक्टर ने कहा-''इसके बयान के बाद हो सकता है, हमें इतनी मगजमारी करने की जरूरत ही न पड़े।“
डॉक्टर ने सहमति में सिर हिलाया और जग से पानी के छींटे युवती के मुंह पर मारे।
दो-तीन बार पानी डालने पर युवती कुनमुनाई, फिर उसने अपनी आंखें खोल दीं।
वो कुछ देर तक उलझनपूर्ण भाव से अपने आसपास देखती रही, फिर कराहती स्वर में बोली-''मैं कहां हूं?”
''तुम वहीं हों”-एसआई कड़े स्वर में बोला-''जहां तुम थीं। होटल जश्न के रूम नम्बर 303 में।“
उसने हैरानी से एसआई की ओर देखा, फिर धीमे स्वर में कुछ बुदबुदाई।
''क्या?”-एसआई जोर से बोला।
''कह रही है”-डॉक्टर के चेहरे पर हैरानी के भाव थे-''मैं कौन हूं?”
इंस्पेक्टर और एसआई के चेहरे पर भी हैरानी के भाव आए। फिर इंस्पैक्टर आगे बढ़कर पलंग के पास पहुंचा।
''तुम्हारा नाम क्या है?”-वो युवती से कदरन नम्र स्वर में बोला।
वो परेशान सी इंस्पैक्टर की ओर देखती रही लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया।
''इंस्पेक्टर साहब कुछ पूछ रहे हैं।“-पीछे से एसआई कड़े स्वर में बोला। इंस्पैक्टर व डॉक्टर दोनों ने उसे घूरकर देखा, जिस पर एसआई ने अपने होंठ भींच लिए।
''ये अभी-अभी होश में आई है”-डॉक्टर धीमे स्वर में बोला-''हो सकता है सदमे में है। हमें ठीक से पता भी नहीं है कि इसके साथ क्या हुआ था? सख्ती से काम नहीं चलेगा। आप इसे इंस्पैक्टर साहब को ही हैण्डल करने दीजिये।“
''देखो”-इंस्पैक्टर पूर्ववत् नम्र स्वर में युवती से बोला-''तुम्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है। तुम सुरक्षित हो। तुम्हें केवल अपना नाम बताना है।“
''लेकिन”-वो बेहद परेशान से स्वर में बोली-''मुझे...मुझे मेरा नाम याद नहीं आ रहा है।“
''तुम्हें अपना ही नाम याद नहीं आ रहा है?”-इंस्पैक्टर ने हैरानी से कहा।
युवती ने हां में सिर हिलाया। उसके चेहरे पर परेशानी के भाव थे।
इंस्पैक्टर ने हैरानी से डॉक्टर की ओर देखा।
''लगता है इसे कुछ ज्यादा ही गहरा सदमा लगा है”-डॉक्टर गम्भीर स्वर में बोला।
''सदमे में कोई अपना नाम भी भूल जाता है?”
''या दूसरी वजह भी हो सकती है।“
''क्या?”
''हो सकता है कि धींगामुश्ती में इसका सिर सचमुच ही पलंग के सिरहाने से टकरा गया हो और उससे लगी चोट से इसकी याददाश्त चली गई हो।“
इंस्पैक्टर ने एसआई की ओर देखा।
''मैं तो कहता हूं, सर”-एसआई बोला-''कांस्टेबल फरहा अभी आती ही होगी। वो इसको एक-दो फटके लगाएगी तो इसकी खोई हुई याददाश्त चुटकियों में लौटती हुई नजर आएगी।“
''वो तो फरहा के आने के बाद होगा।“-डॉक्टर बोला-''तब तक हमें भी कुछ ट्राई करके देख लेना चाहिए।“
''जैसे?”
''जैसे इसे बाहर उस लाश के पास ले चलते हैं। हो सकता है, उसका चेहरा देख कर इसे सब याद आ जाए। थोड़ा-बहुत हिलने-डुलने से इसके दिमाग के ढीले हो गए स्क्रू टाइट हों।“
''ऐसा ही करते हैं”-इंस्पैक्टर ने सहमति व्यक्त की।
''सुनो”-डॉक्टर ने युवती को सम्बोधित किया-''तुम्हें सचमुच अपना नाम याद नहीं आ रहा है?”
युवती ने हां में सिर हिलाया। वो अब भी काफी परेशान और घबराई हुई लग रही थी।
''तब तो तुम्हें ये भी याद नहीं होगा कि तुम यहां कैसे पहुंचीं? ये कौन सी जगह है?”
युवती ने फिर स्वीकृति में सिर हिलाया।
''बाहर एक लाश पड़ी है।“-डॉक्टर ने कहा-''हमें लगता है कि उसका खून तुम्हारे हाथों से हुआ है। हो सकता है ये मर्डर तुमसे सेल्फ डिफेंस में हुआ हो। जो भी हो, सच सामने आ ही जाएगा। फिलहाल तुम बाहर हॉल में चलो और उस लाश को पहचानने की कोशिश करो।“
युवती ने जवाब में कुछ नहीं कहा लेकिन उसके चेहरे पर अनिश्चय के भाव दिखाई दे रहे थे।
''हो सकता है, तुम उस लाश को पहचान जाओ। उसे देख कर तुम्हारी याददाश्त वापस आ जाए। ऐसे केसेज में ये आम बात है।“
''ऐसे केसेज?”-एसआई भुनभुनाया-''मुझे तो ये दुनिया का सबसे अजीब केस लग रहा है, जिसमें लाश बाहर पड़ी है और कातिल खुद यहां बेहोश पड़ा है। ऊपर से तुर्रा ये कि मैडम कि याददाश्त भी गुम हो गई है।“
''ऐसे केसेज से मेरा मतलब है”-डॉक्टर धैर्यपूर्ण स्वर में बोला-''याददाश्त जाने के केस। याददाश्त जाने के मामलों में कुछ याद आये तो फिर उससे जुड़ा बहुत कुछ याद आ सकता है। मैं मर्डर की बात नहीं कर रहा था।“
''ओह।“
डॉक्टर ने सहारा देकर युवती को पहले बैड पर बिठाया, फिर बैड से नीचे उतरने में भी उसकी मदद की।
वे लोग उसे लेकर बाहर वाले कमरे में पहुंचे, जहां लाश पड़ी थी।
मृतक का चेहरा नीचे फर्श की ओर था, इसलिए डॉक्टर ने झुककर उसके सिर को मोड़ कर ऊपर की ओर किया, जिससे युवती उसके चेहरे को अच्छी तरह देख सके।
''पहचानती हो इसे?”-इंस्पैक्टर ने युवती से पूछा।
युवती ने इनकार में सिर हिलाया।
''एक बार और ध्यान से देखो”-एसआई भी नम्र स्वर में बोला, अब वो भी पिघलने लगा था-''शायद पहचान जाओ। आराम से देखो, कोई जल्दी नहीं है।“
उसने एसआई की ओर देखा, फिर लाश की ओर। कुछ क्षण देखने के बाद उसने इनकार में सिर हिलाया।
''लगता है इसकी याददाश्त सचमुच चली गई है।“-डॉक्टर बोला।
''तुम्हें कुछ और याद है?”-इंस्पैक्टर बोला-''जैसे इस आदमी ने तुम्हारे साथ कोई मारपीट, कोई जोर जबर्दस्ती करने की कोशिश की हो? या ऐसा कुछ भी?”
युवती ने फिर इनकार में सिर हिलाया।
इंस्पैक्टर ने असहाय भाव से डॉक्टर की ओर देखा। डॉक्टर ने कंधे उचका दिए।
''वो क्या है?”-अचानक युवती बोली।
''क्या?”-सभी ने चौंक कर उसकी ओर देखा।
''मुझे लगा...इसके नीचे कुछ है।“-युवती का इशारा लाश की ओर था। सबकी निगाहें लाश की ओर घूम गईं।
''इसे पलटो”-इंस्पैक्टर ने आदेश दिया।
एसआई और डॉक्टर ने लाश को पलटने की कोशिश की। हट्टे-कट्टे पहलवान जैसे शरीर को पलटाने में उन्हें दिक्कत होती देख कर इंस्पैक्टर ने खुद भी झुककर उनकी मदद की।
लाश के नीचे कुछ भी नहीं था।
उसी समय बाहर वाले दरवाजे पर हुई आहट ने उन सबका ध्यान आकृष्ट किया।
दरवाजे पर लेडी कांस्टेबल फरहा खान खड़ी थी।
''फरहा”-इंस्पैक्टर ने कहा-''इसे अरैस्ट कर लो। शायद इसकी याद्दाश्त गुम हो चुकी है तो इसके साथ थोड़ी नर्मी से पेश आना...।“
फरहा ने हैरानी से उनके पीछे की ओर देखा, फिर बोली-''किसे? किसे अरैस्ट कर लूं सर? किसके साथ नर्मी से पेश आऊं?”
सबके सिर पीछे की ओर घूम गए।
वहां अब तक खड़ी युवती अब वहां नहीं थी।
पीछे वाले कमरे का दरवाजा भड़ाक की जोरदार आवाज के साथ उनके मुंह पर बंद हो गया।
...
इंस्पैक्टर और एसआई बिजली की तरह दरवाजे की ओर लपके। इंस्पैक्टर ने दरवाजे को धक्का देकर खोलने की कोशिश की लेकिन दरवाजा टस से मस नहीं हुआ।
अंदर से चिटखनी लग चुकी थी।
इंस्पैक्टर ने जोर से दरवाजा भड़भड़ाया।
''दरवाजा खोलो।“-वो गरजा।
''कुण्डी मत खड़काओ राजा”-अंदर से युवती का सुरीला स्वर सुनाई दिया-''सीधे अंदर आओ राजा।“
इंस्पैक्टर का चेहरा कानों तक लाल हो गया। उसने एसआई की ओर देखा, जिसकी लाख कोशिश करने के बाद भी हंसी छूट गई।
''हंसो मत।“-इंस्पैक्टर का दिमाग और भी भन्ना गया-''इसे खोलने की कोशिश करो।“
''मुझे तो पहले ही लग रहा था सर”-एसआई बोला-''कि ये नाटक कर रही है।“
''फालतू बात मत करो। शुरू से लग रहा था तो नजर क्यों नहीं रखे रहे उस पर?”
''सर, आपने ही तो उसके कहने पर लाश को पलटने के लिए कहा था...”
''अरे, बातों में वक्त जाया मत करो”-डॉक्टर बोला-''दरवाजा खोलने की कोशिश करो।“
''अब अंदर से वो कहां जाएगी?”-एसआई बोला-''अंदर तो वो चूहेदानी में कैद होकर रह गई है। हम लोग छठवीं मंजिल पर हैं। उसके पास भागने का कोई रास्ता नहीं है। ये दरवाजा तो कुछ ही मिनटों में खुल जाएगा। फिर मैं उसे बताऊंगा, कुण्डी मत खड़काओ राजा का मतलब...।“
''अरे बातें, बाद में बना लेना”-इंस्पैक्टर बोला-''पहले दरवाजा तो खोलो।“
दोनों ने दरवाजे में कंधे की जोरदार टक्करें मारीं। कुछ ही टक्करों में अंदर चिटखनी उखड़ गई। दरवाजा खुलते चारों लोग धड़धड़ाते हुए अंदर वाले कमरे से होते हुए बैडरूम में पहुंचे।
बैडरूम में कोई नहीं था।
उन लोगों ने पूरे कमरे को खंगाल डाला। अलमारी खोली, बैड के नीचे भी झांककर देख लिया, बाथरूम में भी देख लिया।
युवती कहीं नहीं थी।
इंस्पैक्टर ने बालकनी वाले ग्लासडोर को खोला और बालकनी में पहुंचा।
उन लोगों के हिसाब से अब वो आखिरी जगह थी, जहां वो हो सकती थी।
लेकिन वो वहां भी नहीं थी।
''कहां चली गई?”-हैरान-परेशान एसआई के मुंह से निकला।
इंस्पैक्टर ने बालकनी के अगल-बगल नजर डाली। वहां अगल-बगल में कतार में वैसी पांच-छ: और भी बालकनियां दिखाई दे रहीं थीं।
उसने बगल वाली बालकनी में झांकने की कोशिश की।
दोनों बालकनियों के बीच करीब पांच-छ: फीट का फासला था।
इंस्पैक्टर ने एक बार अनजानी आशंका से ग्रस्त होकर नीचे भी झांककर देखा। ये देख कर उसने राहत की सांस ली कि नीचे सब कुछ सामान्य था।
फिर वो लपककर तूफान की सी तेजी से पूरे सुइट को लांघते हुए बाहर कॉरीडोर में पहुंचा।
वहां दरवाजे पर तैनात कांस्टेबल अपनी जगह पर मुस्तैद था।
''क्या हुआ सर?”-इंस्पैक्टर को ऐसे हड़बड़ाए देख कर कांस्टेबल हैरानी से बोला।
''तुमने कॉरीडोर में किसी लड़की को देखा?”-इंस्पैक्टर जल्दी से बोला।
''जी सर। बगल वाले सुइट से अभी थोड़ी देर पहले एक लड़की निकलकर उधर लिफ्ट की ओर...।“
इंस्पैक्टर पूरी बात सुनने के लिए रूका नहीं। वो तेजी से कॉरीडोर के आखिरी सिरे की ओर लपका।
वो लिफ्ट के पास पहुंचा। लिफ्ट अब ऊपर की ओर आ रही थी।
इंस्पैक्टर ने गहरी सांस लेकर नीचे तैनात कांस्टेबल को वायरलैस पर उस युवती का हुलिया बताते हुए उसे ढूंढने के निर्देश दिए।
लेकिन वो मन ही मन में इस बात को अच्छी तरह जानता था कि वो लड़की अब उनके हाथ नहीं आने वाली थी।
जिस तरह से वो सुइट में उन्हें चकमा देकर निकल भागी थी, उसके बाद उसके इतनी आसानी से पकड़े जाने की उम्मीद न के बराबर थी।
अभी थोड़ी देर पहले 'ओपन एंड शट’ लगने वाला केस अचानक पेचीदा हो गया था।
बिना युवती के बयान के रेप अटैम्प्ट और मर्डर की उनकी थ्योरी की पुष्टि नहीं होने वाली थी।
लेकिन इंस्पैक्टर को इस बात का भी अंदाजा नहीं था कि ये तो सिर्फ एक शुरूआत थी।
केस उससे कहीं ज्यादा विस्फोटक था, जितना वो सोच रहा था।
...
उपन्यास- दूसरा चेहरा
लेखक- अजिंक्य शर्मा
किंडल लिंक- दूसरा चेहरा- अजिंक्य शर्मा
उपन्यास 'दूसरा चेहरा' का एक अंश-
इंस्पेक्टर सुबीर पाल ने होटल जश्न की छठवीं मंजिल पर स्थित कमरा नम्बर 303 में कदम रखा।
वो उस तरह के शानदार होटलों में मिलने वाले सुइट्स की तरह ही एक शानदार सुइट था, जिसमें कुल तीन रूम थे। एक बाहर वाला हॉलनुमा रूम, उसे पार करके अंदर एक छोटा रूम और आखिर में तीसरा व आखिरी कमरा।
लाश सबसे बाहर वाले कमरे में ही पड़ी थी।
इंस्पेक्टर ने गौर से लाश का मुआयना किया। वो कोई 30-32 वर्ष का सेहतमंद ऊंची कद-काठी वाला युवक था। उसके गले के पास खून का छोटा-सा तालाब जैसा बन कर सूख भी चुका था। गले पर धारदार हथियार से काटे जाने का निशान था।
कुछ देर उस कमरे में रूकने के पश्चात इंस्पैक्टर पाल अगले कमरे को पार करते हुए सबसे अंदर वाले कमरे-बैडरूम में पहुंचा। वहां सब इंस्पैक्टर दिनेश रावत और पुलिस का डॉक्टर वी.के. खुराना पहले ही मौजूद थे।
बाकी कमरों की तरह बैडरूम भी शानदार था लेकिन जो चीज बैडरूम को और भी शानदार बना रही थी, वो थी एक बड़े साइज का ग्लास डोर, जिससे बालकनी से बाहर का शानदार व्यू नजर आ रहा था।
कमरे के बीचों-बीच रखे विशाल बैड पर एक बेहद खूबसूरत युवती बेसुध पड़ी थी।
युवती के दोनों हाथ बिस्तर पर विपरीत दिशाओं में फैले हुए थे, जिनमें से एक हाथ में-
-एक खून से रंगा चाकू था।
‘’ये कौन है?’’-इंस्पैक्टर पाल ने हैरानी से कहा।
“क्या पता?”-एसआई रावत ने कंधे उचकाए-''होश में आएगी तो पता चलेगा।“
“और बाहर जो मरा पड़ा है, वो कौन है? या वो भी जब जिंदा होगा, तब पता चलेगा।“
रावत हड़बड़ा गया।
''सॉरी सर!”-वो जल्दी से बोला-''उसका नाम पवन है। पवन शांडिल्य। पैसे वाले घर का है। पिछली रात को ही होटल में चैक इन किया था बेचारे ने। इस लड़की के बारे में कुछ पता नहीं चल पाया है। ये उसके साथ नहीं ठहरी थी। शायद बाहर से मिलने आई होगी। हालांकि होटल के कर्मचारी कहते हैं कि उन्होंने इसे होटल में-या इस रूम में-आते हुए नहीं देखा।“
इंस्पैक्टर ने सिर हिलाया, फिर वो डॉक्टर से मुखातिब हुआ-''आपका क्या कहना है?”
''लड़की काफी समय से बेहोश लग रही है”-डॉक्टर गम्भीर स्वर में बोला-''इसके हाथ में जो चाकू है, उस पर लगा खून भी सूख चुका है।“
''इसके हाथ में चाकू है”-इंस्पैक्टर उलझनपूर्ण स्वर में बोला-“इसे देखकर तो ऐसा लग रहा है कि उस आदमी का खून....।“
“...इसी ने किया है।“-डॉक्टर ने उसकी बात पूरी की।
इंस्पैक्टर ने वैसे ही उलझनपूर्ण भाव से डॉक्टर की ओर देखा, फिर बोला-“लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है?”
''कैसा कैसे हो सकता है? आपको हैरानी हो रही है कि ये छुई-मुई सी दिखने वाली लड़की ऐसे हट्टे-कट्टे आदमी का खून कैसे कर सकती है?”
''नहीं। वो बात नहीं है। हाथ में चाकू हो तो इससे भी ज्यादा छुई-मुई लड़की उससे भी ज्यादा तगड़े आदमी का भी खून कर सकती है। इस बात की मुझे कोई हैरानी नहीं है।“
''फिर?”
''फिर क्या? अरे भाई, ये यहां बेहोश पड़ी है, वो वहां एक कमरा पार करके हॉल में मरा पड़ा है। कमरा अंदर से बंद था। किसी और को यहां देखा नहीं गया। खून से रंगा चाकू इसके हाथ में है लेकिन ये खुद बेहोश पड़ी है। इस मर्डर का तो कुछ गुणा-भाग ही समझ में नहीं आ रहा है।“
''उसीलिए तो आप यहां हैं इंस्पैक्टर साहब। इस मर्डर के गुणा-भाग को समझने के लिए।“
''चलिए”-इंस्पैक्टर ने बैड के सिरहाने रखी छोटी टेबल पर रखे पानी के जग की ओर इशारा करते हुए कहा-''फिलहाल तो इसे होश में लाइये। कम से कम यही कुछ बताए तो पता तो चले यहां आखिर हुआ क्या था?”
डॉक्टर छोटी टेबल के पास पहुंचा। उस पर पानी से आधे भरे जग के अलावा एक प्लेट भी रखी थी, जिसमें कुछ सेब रखे थे।
''शायद इसने चाकू इसी प्लेट से उठाया होगा।“-इंस्पैक्टर बोला।
डॉक्टर ने पानी भरा जग तो उठा लिया लेकिन तुरंत युवती के चेहरे पर पानी के छींटे मारने के स्थान पर उसने एक बार गौर से युवती को देखा। उसकी तरह ही इंस्पैक्टर और एसआई ने भी बेहोश पड़ी युवती का मुआयना किया।
उसके कपड़े अस्त-व्यस्त से लग रहे थे।
''ऐसा लग रहा है”-एसआई के मुंह से निकला-''इसके साथ जोर-जबर्दस्ती करने की कोशिश की गई थी।“
''और अगर ऐसा करने वाला वो शख्स था, जिसकी लाश बाहर हॉल में पड़ी है, तो सारी कहानी शीशे की तरह साफ हो जाती है।“-इंस्पैक्टर ने कहा।
डॉक्टर और एसआई दोनों की नजरें इंस्पैक्टर की ओर घूम गईं।
''वो शख्स”-इंस्पैक्टर ने कहा-''इसके साथ जोर-जबर्दस्ती करने की कोशिश कर रहा होगा। इसी दौरान लड़की के हाथ प्लेट में रखा चाकू आ गया और इसने उस शख्स के गले पर वार कर दिया, जिससे उसकी मौत हो गई।“
''लेकिन”-एसआई के मुंह से निकला-''अगर लड़की ने उसके गले पर चाकू से वार किया तो उसकी लाश बाहर हॉल में कैसे पहुंची?”
''गले पर चोट लगने से जरूरी नहीं कि हमेशा तुरंत ही मौत हो जाए”-डॉक्टर ने गम्भीर स्वर में कहा-''वैसे भी उसका गला कोई पूरा नहीं कट गया है। चाकू के वार से बस सामने की ओर जख्म है। शायद घायल होने के बाद वो मदद की उम्मीद में बाहर निकलना चाहता होगा। यहां तो वैसे भी कोई नहीं था, जो उसकी मदद करता। लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाया। बाहर वाले हॉल तक पहुंचकर उसकी हिम्मत ने उसका साथ छोड़ दिया और वो वहीं ढेर हो गया।“
''चलिये मान लिया”-एसआई बोला-''ऐसा ही हुआ होगा। लेकिन फिर ये यहां कैसे बेहोश हो गई? इसे बेहोश करने वाला कौन था? और बेहोश करके अंदर से कहां चला गया?”
''इसके बेहोश होने की कई वजह हो सकती हैं।“-डॉक्टर बोला।
''कई?”
''हां। मैंने ऐसे-रेप अटैम्प्ट के-कई केसेज देखे हैं। ऐसी घटनाओं में सदमे से, या दम घुट जाने से या किसी अन्य कारण से भी लड़की बेहोश हो सकती है।“
''ओह।“
''या ये भी हो सकता है कि अपने हमलावर से धींगामुश्ती के दौरान इसका सिर पलंग के सिरहाने से टकरा गया हो, जिसकी सम्भावना ज्यादा भी लग रही है क्योंकि इसका सिर सिरहाने के कुछ ज्यादा ही पास है।“
''अभी तो आप इसे होश में लाइये”-इंस्पैक्टर ने कहा-''इसके बयान के बाद हो सकता है, हमें इतनी मगजमारी करने की जरूरत ही न पड़े।“
डॉक्टर ने सहमति में सिर हिलाया और जग से पानी के छींटे युवती के मुंह पर मारे।
दो-तीन बार पानी डालने पर युवती कुनमुनाई, फिर उसने अपनी आंखें खोल दीं।
वो कुछ देर तक उलझनपूर्ण भाव से अपने आसपास देखती रही, फिर कराहती स्वर में बोली-''मैं कहां हूं?”
''तुम वहीं हों”-एसआई कड़े स्वर में बोला-''जहां तुम थीं। होटल जश्न के रूम नम्बर 303 में।“
उसने हैरानी से एसआई की ओर देखा, फिर धीमे स्वर में कुछ बुदबुदाई।
''क्या?”-एसआई जोर से बोला।
''कह रही है”-डॉक्टर के चेहरे पर हैरानी के भाव थे-''मैं कौन हूं?”
इंस्पेक्टर और एसआई के चेहरे पर भी हैरानी के भाव आए। फिर इंस्पैक्टर आगे बढ़कर पलंग के पास पहुंचा।
''तुम्हारा नाम क्या है?”-वो युवती से कदरन नम्र स्वर में बोला।
वो परेशान सी इंस्पैक्टर की ओर देखती रही लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया।
''इंस्पेक्टर साहब कुछ पूछ रहे हैं।“-पीछे से एसआई कड़े स्वर में बोला। इंस्पैक्टर व डॉक्टर दोनों ने उसे घूरकर देखा, जिस पर एसआई ने अपने होंठ भींच लिए।
''ये अभी-अभी होश में आई है”-डॉक्टर धीमे स्वर में बोला-''हो सकता है सदमे में है। हमें ठीक से पता भी नहीं है कि इसके साथ क्या हुआ था? सख्ती से काम नहीं चलेगा। आप इसे इंस्पैक्टर साहब को ही हैण्डल करने दीजिये।“
''देखो”-इंस्पैक्टर पूर्ववत् नम्र स्वर में युवती से बोला-''तुम्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है। तुम सुरक्षित हो। तुम्हें केवल अपना नाम बताना है।“
''लेकिन”-वो बेहद परेशान से स्वर में बोली-''मुझे...मुझे मेरा नाम याद नहीं आ रहा है।“
''तुम्हें अपना ही नाम याद नहीं आ रहा है?”-इंस्पैक्टर ने हैरानी से कहा।
युवती ने हां में सिर हिलाया। उसके चेहरे पर परेशानी के भाव थे।
इंस्पैक्टर ने हैरानी से डॉक्टर की ओर देखा।
''लगता है इसे कुछ ज्यादा ही गहरा सदमा लगा है”-डॉक्टर गम्भीर स्वर में बोला।
''सदमे में कोई अपना नाम भी भूल जाता है?”
''या दूसरी वजह भी हो सकती है।“
''क्या?”
''हो सकता है कि धींगामुश्ती में इसका सिर सचमुच ही पलंग के सिरहाने से टकरा गया हो और उससे लगी चोट से इसकी याददाश्त चली गई हो।“
इंस्पैक्टर ने एसआई की ओर देखा।
''मैं तो कहता हूं, सर”-एसआई बोला-''कांस्टेबल फरहा अभी आती ही होगी। वो इसको एक-दो फटके लगाएगी तो इसकी खोई हुई याददाश्त चुटकियों में लौटती हुई नजर आएगी।“
''वो तो फरहा के आने के बाद होगा।“-डॉक्टर बोला-''तब तक हमें भी कुछ ट्राई करके देख लेना चाहिए।“
''जैसे?”
''जैसे इसे बाहर उस लाश के पास ले चलते हैं। हो सकता है, उसका चेहरा देख कर इसे सब याद आ जाए। थोड़ा-बहुत हिलने-डुलने से इसके दिमाग के ढीले हो गए स्क्रू टाइट हों।“
''ऐसा ही करते हैं”-इंस्पैक्टर ने सहमति व्यक्त की।
''सुनो”-डॉक्टर ने युवती को सम्बोधित किया-''तुम्हें सचमुच अपना नाम याद नहीं आ रहा है?”
युवती ने हां में सिर हिलाया। वो अब भी काफी परेशान और घबराई हुई लग रही थी।
''तब तो तुम्हें ये भी याद नहीं होगा कि तुम यहां कैसे पहुंचीं? ये कौन सी जगह है?”
युवती ने फिर स्वीकृति में सिर हिलाया।
''बाहर एक लाश पड़ी है।“-डॉक्टर ने कहा-''हमें लगता है कि उसका खून तुम्हारे हाथों से हुआ है। हो सकता है ये मर्डर तुमसे सेल्फ डिफेंस में हुआ हो। जो भी हो, सच सामने आ ही जाएगा। फिलहाल तुम बाहर हॉल में चलो और उस लाश को पहचानने की कोशिश करो।“
युवती ने जवाब में कुछ नहीं कहा लेकिन उसके चेहरे पर अनिश्चय के भाव दिखाई दे रहे थे।
''हो सकता है, तुम उस लाश को पहचान जाओ। उसे देख कर तुम्हारी याददाश्त वापस आ जाए। ऐसे केसेज में ये आम बात है।“
''ऐसे केसेज?”-एसआई भुनभुनाया-''मुझे तो ये दुनिया का सबसे अजीब केस लग रहा है, जिसमें लाश बाहर पड़ी है और कातिल खुद यहां बेहोश पड़ा है। ऊपर से तुर्रा ये कि मैडम कि याददाश्त भी गुम हो गई है।“
''ऐसे केसेज से मेरा मतलब है”-डॉक्टर धैर्यपूर्ण स्वर में बोला-''याददाश्त जाने के केस। याददाश्त जाने के मामलों में कुछ याद आये तो फिर उससे जुड़ा बहुत कुछ याद आ सकता है। मैं मर्डर की बात नहीं कर रहा था।“
''ओह।“
डॉक्टर ने सहारा देकर युवती को पहले बैड पर बिठाया, फिर बैड से नीचे उतरने में भी उसकी मदद की।
वे लोग उसे लेकर बाहर वाले कमरे में पहुंचे, जहां लाश पड़ी थी।
मृतक का चेहरा नीचे फर्श की ओर था, इसलिए डॉक्टर ने झुककर उसके सिर को मोड़ कर ऊपर की ओर किया, जिससे युवती उसके चेहरे को अच्छी तरह देख सके।
''पहचानती हो इसे?”-इंस्पैक्टर ने युवती से पूछा।
युवती ने इनकार में सिर हिलाया।
''एक बार और ध्यान से देखो”-एसआई भी नम्र स्वर में बोला, अब वो भी पिघलने लगा था-''शायद पहचान जाओ। आराम से देखो, कोई जल्दी नहीं है।“
उसने एसआई की ओर देखा, फिर लाश की ओर। कुछ क्षण देखने के बाद उसने इनकार में सिर हिलाया।
''लगता है इसकी याददाश्त सचमुच चली गई है।“-डॉक्टर बोला।
''तुम्हें कुछ और याद है?”-इंस्पैक्टर बोला-''जैसे इस आदमी ने तुम्हारे साथ कोई मारपीट, कोई जोर जबर्दस्ती करने की कोशिश की हो? या ऐसा कुछ भी?”
युवती ने फिर इनकार में सिर हिलाया।
इंस्पैक्टर ने असहाय भाव से डॉक्टर की ओर देखा। डॉक्टर ने कंधे उचका दिए।
''वो क्या है?”-अचानक युवती बोली।
''क्या?”-सभी ने चौंक कर उसकी ओर देखा।
''मुझे लगा...इसके नीचे कुछ है।“-युवती का इशारा लाश की ओर था। सबकी निगाहें लाश की ओर घूम गईं।
''इसे पलटो”-इंस्पैक्टर ने आदेश दिया।
एसआई और डॉक्टर ने लाश को पलटने की कोशिश की। हट्टे-कट्टे पहलवान जैसे शरीर को पलटाने में उन्हें दिक्कत होती देख कर इंस्पैक्टर ने खुद भी झुककर उनकी मदद की।
लाश के नीचे कुछ भी नहीं था।
उसी समय बाहर वाले दरवाजे पर हुई आहट ने उन सबका ध्यान आकृष्ट किया।
दरवाजे पर लेडी कांस्टेबल फरहा खान खड़ी थी।
''फरहा”-इंस्पैक्टर ने कहा-''इसे अरैस्ट कर लो। शायद इसकी याद्दाश्त गुम हो चुकी है तो इसके साथ थोड़ी नर्मी से पेश आना...।“
फरहा ने हैरानी से उनके पीछे की ओर देखा, फिर बोली-''किसे? किसे अरैस्ट कर लूं सर? किसके साथ नर्मी से पेश आऊं?”
सबके सिर पीछे की ओर घूम गए।
वहां अब तक खड़ी युवती अब वहां नहीं थी।
पीछे वाले कमरे का दरवाजा भड़ाक की जोरदार आवाज के साथ उनके मुंह पर बंद हो गया।
...
इंस्पैक्टर और एसआई बिजली की तरह दरवाजे की ओर लपके। इंस्पैक्टर ने दरवाजे को धक्का देकर खोलने की कोशिश की लेकिन दरवाजा टस से मस नहीं हुआ।
अंदर से चिटखनी लग चुकी थी।
इंस्पैक्टर ने जोर से दरवाजा भड़भड़ाया।
''दरवाजा खोलो।“-वो गरजा।
''कुण्डी मत खड़काओ राजा”-अंदर से युवती का सुरीला स्वर सुनाई दिया-''सीधे अंदर आओ राजा।“
इंस्पैक्टर का चेहरा कानों तक लाल हो गया। उसने एसआई की ओर देखा, जिसकी लाख कोशिश करने के बाद भी हंसी छूट गई।
''हंसो मत।“-इंस्पैक्टर का दिमाग और भी भन्ना गया-''इसे खोलने की कोशिश करो।“
''मुझे तो पहले ही लग रहा था सर”-एसआई बोला-''कि ये नाटक कर रही है।“
''फालतू बात मत करो। शुरू से लग रहा था तो नजर क्यों नहीं रखे रहे उस पर?”
''सर, आपने ही तो उसके कहने पर लाश को पलटने के लिए कहा था...”
''अरे, बातों में वक्त जाया मत करो”-डॉक्टर बोला-''दरवाजा खोलने की कोशिश करो।“
''अब अंदर से वो कहां जाएगी?”-एसआई बोला-''अंदर तो वो चूहेदानी में कैद होकर रह गई है। हम लोग छठवीं मंजिल पर हैं। उसके पास भागने का कोई रास्ता नहीं है। ये दरवाजा तो कुछ ही मिनटों में खुल जाएगा। फिर मैं उसे बताऊंगा, कुण्डी मत खड़काओ राजा का मतलब...।“
''अरे बातें, बाद में बना लेना”-इंस्पैक्टर बोला-''पहले दरवाजा तो खोलो।“
दोनों ने दरवाजे में कंधे की जोरदार टक्करें मारीं। कुछ ही टक्करों में अंदर चिटखनी उखड़ गई। दरवाजा खुलते चारों लोग धड़धड़ाते हुए अंदर वाले कमरे से होते हुए बैडरूम में पहुंचे।
बैडरूम में कोई नहीं था।
उन लोगों ने पूरे कमरे को खंगाल डाला। अलमारी खोली, बैड के नीचे भी झांककर देख लिया, बाथरूम में भी देख लिया।
युवती कहीं नहीं थी।
इंस्पैक्टर ने बालकनी वाले ग्लासडोर को खोला और बालकनी में पहुंचा।
उन लोगों के हिसाब से अब वो आखिरी जगह थी, जहां वो हो सकती थी।
लेकिन वो वहां भी नहीं थी।
''कहां चली गई?”-हैरान-परेशान एसआई के मुंह से निकला।
इंस्पैक्टर ने बालकनी के अगल-बगल नजर डाली। वहां अगल-बगल में कतार में वैसी पांच-छ: और भी बालकनियां दिखाई दे रहीं थीं।
उसने बगल वाली बालकनी में झांकने की कोशिश की।
दोनों बालकनियों के बीच करीब पांच-छ: फीट का फासला था।
इंस्पैक्टर ने एक बार अनजानी आशंका से ग्रस्त होकर नीचे भी झांककर देखा। ये देख कर उसने राहत की सांस ली कि नीचे सब कुछ सामान्य था।
फिर वो लपककर तूफान की सी तेजी से पूरे सुइट को लांघते हुए बाहर कॉरीडोर में पहुंचा।
वहां दरवाजे पर तैनात कांस्टेबल अपनी जगह पर मुस्तैद था।
''क्या हुआ सर?”-इंस्पैक्टर को ऐसे हड़बड़ाए देख कर कांस्टेबल हैरानी से बोला।
''तुमने कॉरीडोर में किसी लड़की को देखा?”-इंस्पैक्टर जल्दी से बोला।
''जी सर। बगल वाले सुइट से अभी थोड़ी देर पहले एक लड़की निकलकर उधर लिफ्ट की ओर...।“
इंस्पैक्टर पूरी बात सुनने के लिए रूका नहीं। वो तेजी से कॉरीडोर के आखिरी सिरे की ओर लपका।
वो लिफ्ट के पास पहुंचा। लिफ्ट अब ऊपर की ओर आ रही थी।
इंस्पैक्टर ने गहरी सांस लेकर नीचे तैनात कांस्टेबल को वायरलैस पर उस युवती का हुलिया बताते हुए उसे ढूंढने के निर्देश दिए।
लेकिन वो मन ही मन में इस बात को अच्छी तरह जानता था कि वो लड़की अब उनके हाथ नहीं आने वाली थी।
जिस तरह से वो सुइट में उन्हें चकमा देकर निकल भागी थी, उसके बाद उसके इतनी आसानी से पकड़े जाने की उम्मीद न के बराबर थी।
अभी थोड़ी देर पहले 'ओपन एंड शट’ लगने वाला केस अचानक पेचीदा हो गया था।
बिना युवती के बयान के रेप अटैम्प्ट और मर्डर की उनकी थ्योरी की पुष्टि नहीं होने वाली थी।
लेकिन इंस्पैक्टर को इस बात का भी अंदाजा नहीं था कि ये तो सिर्फ एक शुरूआत थी।
केस उससे कहीं ज्यादा विस्फोटक था, जितना वो सोच रहा था।
...
उपन्यास- दूसरा चेहरा
लेखक- अजिंक्य शर्मा
किंडल लिंक- दूसरा चेहरा- अजिंक्य शर्मा
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