उपन्यास - महल
लेखक - चन्द्रप्रकाश पाण्डेय
लेखक - चन्द्रप्रकाश पाण्डेय
प्रकाशक - थ्रिल वर्ल्ड
जमुना के मन में संदेह के साँप ने सिर उठाया और उसकी आँखें गोल हो गयीं। पशुपति को हसीनाबाद में डेरा डाले हुए महीने भर से ऊपर हो रहा था और इस वक्फे में एक भी पल ऐसा नहीं गुजरा था, जब जमुना उसकी ओर से निश्चिंत रहा हो। पशुपति की ओर से उसे जो उजरत हासिल होती थी, उसमें इस बात का भी करार हुआ था कि वह उसके लिए दोपहर और रात का भोजन भी ले आया करेगा। जमुना इस करार को मुसलसल पूरा भी कर रहा था लेकिन आज पहली दफा हुआ था, जब भोजन के वक्त पशुपति कहीं जाने की तैयारी कर रहा था; वो भी रात के दस बजे, जब पूरा जंगल और समूचा कस्बा अँधेरे व कुहरे की दोहरी चादर ओढ़कर सो रहा था।
जमुना ने भयभीत निगाहों से पूरे चाँद की ओर देखा। कस्बे में जब से वह रहस्यमयी मेहमान आया था, तब से पूर्णमासी की रात उसके लिए खौफ और दहशत का बायस बनकर आती थी। वह इस कदर खौफ़जदा रहता था कि उस रात को आँखों ही आँखों में गुजार देता था और जब भोर की पहली किरण धरा का आलिंगन करती थी, पक्षियों का कलरव जन-जीवन को जिजीविषा का बोध कराता था तो वह यूँ लम्बी साँस लेता था, जैसे उसे नया जीवन मिला हो।
वह तुरंत एक पेड़ की ओट में हो गया और पशुपति की हरकतों पर नजर रखने लगा। दूर जंगल से कबाइलियों के नाचने-गाने की आवाजें आ रही थीं।
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जमुना ने भयभीत निगाहों से पूरे चाँद की ओर देखा। कस्बे में जब से वह रहस्यमयी मेहमान आया था, तब से पूर्णमासी की रात उसके लिए खौफ और दहशत का बायस बनकर आती थी। वह इस कदर खौफ़जदा रहता था कि उस रात को आँखों ही आँखों में गुजार देता था और जब भोर की पहली किरण धरा का आलिंगन करती थी, पक्षियों का कलरव जन-जीवन को जिजीविषा का बोध कराता था तो वह यूँ लम्बी साँस लेता था, जैसे उसे नया जीवन मिला हो।
वह तुरंत एक पेड़ की ओट में हो गया और पशुपति की हरकतों पर नजर रखने लगा। दूर जंगल से कबाइलियों के नाचने-गाने की आवाजें आ रही थीं।
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