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शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

मेरे लेखन की शुरुआत- अनुराग कुमार जीनियस

मेरे लेखन जीवन की शुरुआत- अनुराग कुमार जीनियस
   साहित्य देश ब्लॉग हमेशा कुछ नया करने का प्रयास करता है। इसी क्रम में हमने लेखकों के प्रथम उपन्यास के संदर्भ में उनके रोचक वर्णन यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। 
   इस स्तंभ के प्रथम चरण में पढें लोकप्रिय साहित्य के सितारे अनुराग कुमार जीनियस के अनुभव।


मुझे बचपन से ही पढ़ने का बेहद शौक रहा। घर पर उस समय खूब किताबें आती थी। किताबों का एक जमाना था। बच्चों की कहानियों की किताबों के साथ साथ उपन्यास भी खूब आते थे। चंपक, नंदन, बालहंस, मोगली की कहानी और ढेर सारी कॉमिक्स जिनमें लाल बुझक्कड़, नागराज, चाचा चौधरी आदि की संख्या ज्यादा होती थी। पत्रिकाओं में सरस सलिल, सरिता, हंस, इंडिया टूडे आदि पत्रिकाएं भी बहुत आती थी। उस समय मैंने बहुत सारे उपन्यासकारों को पढ़ा जिनमें प्रमुख थे वेद प्रकाश शर्मा जी, सुरेंद्र मोहन पाठक जी, रानू, अनिल मोहन जी, मनोज, रीमा भारती, दिनेश ठाकुर, परशुराम शर्मा जी, प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु, कमलेश्वर स्वयं प्रकाश आदि। वेद प्रकाश शर्मा सुरेंद्र मोहन पाठक अनिल मोहन जी से मैं बहुत ज्यादा प्रभावित रहा।
पढ़ने का सिलसिला यूं ही चलता रहा।
    कक्षा 9 में आते ही मुझे लगा कि मुझे भी कुछ लिखना चाहिए। क्योंकि उस समय नाॅवल ज्यादा पढ़ता था नॉवल से ही शुरुआत की। एक नाॅवल पढा, नॉवेल का नाम था बदला। पर शीघ्र ही मन उचट गया। कई बार कोशिश की पर उसे कभी पूरा नहीं कर पाया। कुछ दिनों बाद फिर से दिल में तरंग उठी लिखने की तो इस बार कहानी पर हाथ आजमाया और उसे पूरा भी किया। इसके बाद कई छोटी-बड़ी कहानियां लिखी। इंटर के बाद फिर से उपन्यास लिखने का ख्याल आया। इस बार मैंने पहले से ही तय कर लिया था कि नॉवेल पूरा जरूर करूंगा। और इस बार मैंने जो नॉवेल शुरू किया उसका नाम था अनोखा कातिल जिसे मैंने पूरा भी किया। फिर मन में एक विश्वास आ गया कि मैं नाॅवल पूरा लिख सकता हूँ। इसीलिए फिर मैं नॉवेल लिखने लगा और उसे पूरा भी करता था। 

      2 साल के बाद मुझे लगा कि मुझे भी अपना नॉवेल छपवाना चाहिए। मेरे मन में भी वेद जी, सुरेंद्र मोहन पाठक जी और अनिल मोहन जी के जैसे ही बनने के सपने आने लगे थे। अपना सपना साकार करने के लिए 2011 में मेरठ पहुंचा था। वहां जाने पर मेरा अनुभव बहुत कड़वा रहा है। धीरज पॉकेट बुक्स, रवि पॉकेट बुक्स मैं ही पता चला है कि अब ज्यादा पॉकेट बुक्स बचे नहीं है। यह धंधा भी अब आखरी सांसे ले रहा है। क्योंकि मेरे दिलो-दिमाग में राइटर बनने का जुनून सवार था इसीलिए मैंने उनसे कहा कि वह मेरा नॉवेल छापे। दोनों जगह मुझसे पैसे की डिमांड की गई पर मैंने दोनों जगह ही मना कर दिया फिर। रवि पॉकेट बुक्स में तो मुझसे कहा गया था कि अब लिखना बंद कर दो किसी और धंधे में हाथ आजमाओ।
फिर मैं तुलसी पॉकेट बुक्स गया जहां पर मेरी मुलाकात वेद जी से हुई। उन्होंने मुझसे वादा किया कि अगर मेरा नॉवेल सही होगा छपने लायक होगा तो यह जरूर छापेंगे। इस बात ने मेरे अंदर कम होते मेरे आत्मविश्वास को पुनः जीवित कर दिया था पर बाद में तुलसी पॉकेट बॉक्स से भी मुझसे एक बड़ी रकम की मांग की गई। किस्मत का खेल मेरा नॉवेल उन्हें पसंद आया था पर वह मेरे नाम से छापने के लिए तैयार नहीं थे। मैंने मना कर दिया तो उन्होंने कहा कि अगर मैं अपने नाम से नॉवेल छपवाना चाहता हूं तो मुझसे ₹50000 लगेंगे। मैंने सोचा कि हर जगह जब पैसे की डिमांड हो रही है तो क्यों ना तुलसी से ही नॉवेल छपवा छपवाऊं। 
     मेरी दिली इच्छा थी कि मेरा उपन्यास वेद जी की फर्म से ही निकले।उस समय मुझे पॉकेट बुक्स के धंधे के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं थी शायद इसीलिए मैंने वह फैसला लिया था जो गलत साबित हुआ।
मैंने पैसे शगुन शर्मा को दिए थे क्योंकि उस समय वेद जी घर पर नहीं थे। बाद में वेद जी को कैंसर हो गया और उनकी डेथ हो गई। इसी बीच मुझे शगुन शर्मा के असलियत पता चली। उसने मेरे साथ धोखेबाजी की। मेरा नॉवेल एक लाश का चक्कर छपने में 2 साल लग गए। वह भी मार्केट में कहीं नहीं दिखा। शगुन ने नॉवेल की 15 कॉपी मुझे सौंपी थी।
     उसकी धोखेबाजी से और वर्तमान में पॉकेट बुक्स की खराब पोजीशन की वजह से मैंने तो लिखना ही बंद करने का मन बना लिया था पर शुभानंद जी के संपर्क में आने पर वो इरादा त्याग दिया। फिर मेरे कई उपन्यास सूरज पॉकेट बुक्स ने छापे जिसके लिए मैं शुभानंद जी और पूरी सूरज पॉकेट बुक्स की टीम को धन्यवाद देना चाहता हूं दिल से। और उनसे मेरा अच्छा नाता बन गया है मेरे नियमित रूप से उपन्यास वहीं से आ रहे हैं।
    अपनी छोटी सी लेखन यात्रा में मुझे ढेर सारे कड़वे अनुभव हुए जो कभी विस्तार से लिखूंगा। यहां एक बात जरुर कहना चाहूंगा कि पहले मुझे लगता था कि पाकेट बुक्स का धंधा सच में डूब जाएगा पर अब नए-नए प्रकाशन खुल रहे हैं। नए-नए लेखक आ रहे हैं। और पाठकों की संख्या में इजाफा हो रहा है। उसे देखकर लगता है कि पाकेट बुक्स का धंधा फिर से अपनी नई ऊंचाइयों को छुएगा।
    अपनी इस छोटी सी लेखन यात्रा के दौरान मुझे कुछ विशेष मित्रों का सहयोग भी प्राप्त हुआ जो मेरे लिए बहुत ही अमूल्य है मैं उन कुछ खास मित्रों का नाम भी लेना चाहूंगा। एक तो श्री गुरप्रीत सिंह जी, रमाकांत मिश्रा जी, डॉ सबा खान जी, श्री अमित श्रीवास्तव जी एवं इकराम फरीदी जी। इनके अलावा मैं अपने तमाम दोस्तों शुभचिंतकों और पाठकों का भी शुक्रिया अदा करना चाहता जिनकी वजह से ही मेरा सपना आज साकार होने की दिशा में है। धन्यवाद।
अनुराग कुमार जीनियस।
लेखक का परिचय इस लिंक पर है- उपन्यासकार अनुराग कुमार जीनियस

2 टिप्‍पणियां:

  1. कड़वे अनुभव से ही आदमी सीखता है आपने भी सीखा और ऐसे अनुभव हर फील्ड में मिलते हैं बस हमारा काम सीख कर आगे बढ़ना है रुकना नही

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