लोकप्रिय उपन्यास जगत में घोस्ट राइटिंग और फर्जी नाम नाम से जितने उपन्यास भारतीय बाजार में आये यह स्वयं में एक रिकाॅर्ड हो सकता है।
कभी केशव पण्डित सीरिज की लाइन लंबी हुयी तो कभी रीमा भारती सीरिज की। इस बहती कलुषित गंगा में हर कोई प्रकाशक हाथ धोने को उतावला था। बस थोड़ा-बहुत नाम परिवर्तन किया और एक नया लेखक-लेखिका बाजार में उतार दिया।
कहानी से कोई वास्ता नहीं और लेखक को राॅयल्टी देनी नहीं जितना माल बना सको सब प्रकाशक की जेब में।
दिनेश ठाकुर के अश्लीलता वाली रीमा भारती एक बार क्या चल गयी सभी ने महिला प्रधान एक्शन उपन्यास की लाईन लगा दी। नायिका के नाम में हल्का सा परिवर्तन और नयी नायिका तैयार। इसी मानसिकता के चलते कहानी खो गयी और एक दिन उपन्यास बाजार भी गुम हो गया। प्रकाशक ने उपन्यास प्रकाशित करना बंद कर दिया और अच्छे लेखकों को भी पाठकों से दूर कर दिया।
इसी भीड़ में एक और नायिका बाजार में उतारी माया पॉकेट बुक्स के मालिक दीपक जैन जी ने। नाम दिया माया मैमसाब। माया मैमसाब के उपन्यास के नाम भी बहुत अजीब से होते थे। लेकिन माया मैमसाब का नाम बाजार में न चलना था न चला।
माया मैमसाब के उपन्यास
1. बिल्ली बोली म्याऊँ, मैं मौत बन जाऊं
2. मुर्गा बोला कुक्कडू कूं, मुर्दा जी उठा क्यूं
3. कौआ बोला काऊं-काऊं, मैं करोड़पति बन जाऊं
4. रक्त उडे़लूंगा पन्नों पर
5.
Jb ye itne wahiyat writer to apko b kya zarurat h inke bare m Kuch btane ki dfa kra na Bhai kyu apna time wast krte ho
जवाब देंहटाएं