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शनिवार, 1 जून 2019

अभिमन्यु पण्डित लेखकीय

अभिमन्यु पण्डित के प्रथम उपन्यास 'अभिमन्यु का चक्रव्यूह' का लेखकिय ।
परमप्रिय पाठकों,
सादर अभिनन्दन!

जिस तरह किसी भी मां को अपना पहला बच्चा प्यारा होता है, जौहरी को पत्थरों में हीरा प्यारा होता है, गुलशन के महकते फूलों में गुलाब प्यारा होता है, उसी तरह किसी भी लेखक के लिये उसका पहला उपन्यास प्यारा होता है, जिसे वह ताउम्र नहीं भूल पाता, क्योंकि उसी से उसकी पहचान बननी शुरू होती है। मैं अपनी इस प्यारी चीज को आप सबको समर्पित करता हूं। मेरी यह सौगात आपके नाम है। केशव पण्डित जैसे किरदार का जलवा ही समझिये जिसने मुझे प्रेरित किया कि मैं भी अपने टूटे-फूटे शब्दों से इस किरदार को लेकर पूरा केशव पुराण ही लिख सकूं। इस केशव पुराण की यह पहली कृति है, जिसके प्रकाशक हैं—'रवि पॉकेट बुक्स'।


          केशव पण्डित को मुख्य पात्र के रूप में लेकर अनेक उपन्यासों की इस घुड़दौड़ में पहली बार एक लंगड़ा घोड़ा मैदान में उतरा है, जो अभी इस रेस में सबसे पीछे है, अगर जौकी ने इस घोड़े को उसी अन्दाज में दौड़ाया, जिसकी मैंने परिकल्पना की है, तो दौड़ का एक अद्भुत आनन्द आप सब ले सकेंगे। हार-जीत का फैसला भविष्य के गर्भ में है--भविष्य, जिसे न कोई जान सका और न जान सकता है। इस घोड़े पर जो जौकी सवार है, उसका नाम है अभिमन्यु पण्डित और प्रस्तुत उपन्यास है--'अभिमन्यु का चक्रव्यूह'।




         आपको किसी किस्म की भ्रान्ति न हो एवं नक्कालों के भ्रमित कर देने वाले प्रचार से प्रभावित न हों--इसके लिये एक बात का खुलासा जरूरी है--केशव पण्डित सीरीज़ में जिस अभिमन्यु पण्डित का पदार्पण हुआ है, उसका प्रकाशन सिर्फ और सिर्फ 'रवि पॉकेट बुक्स' से हो रहा है एवं भविष्य में भी होता रहेगा। इस श्रृंखला के उपन्यासों में कसे हुए जुमलों की बरसात तो होगी ही, साथ ही ये आतिशी संवादों से भी लबरेज होंगे। ड्रामा, सस्पैंस, थ्रिल की बादशाहत का ताज तो किसी लेखक के सिर पर नहीं होता--लेकिन वह आप सबकी आंख का तारा जरूर होता है। मैं उसी स्थान को पाने के लिये शब्दों की पूरी डिक्शनरी, जहां तक मेरी पहुंच है, उसे उड़ेलकर पेश कर रहा हूं और करता रहूंगा। इसी केशव पुराण की श्रृंखला में मेरा आगामी उपन्यास होगा--'तू बन्दर मैं लंगूर'! इसके लिये आपको अधिक इन्तजार नहीं करना पड़ेगा।


           उपन्यास छपने के बाद हर लेखक की दिली ख्वाहिश होती है कि उसे इसका इल्म हो कि जो उसने परोसा, उस पकवान में कितनी मिठास या खटास थी, उसका जायका कैसा था--कितनी चटनी थी---कितना नमक था--कितना तीखा था या फिर कितना स्वीट था। उसका पता तब ही चलता है, जब डाकिया कहता है, आपका पत्र आया है। पत्र तभी आयेगा जब आप प्रेषित करेंगे। जी जनाब...इसी उम्मीद के साथ यह नॉवल लिखने का सिला चाहता हूं--


आप दुआ दें या बद्दुआ, हमें कबूल है।
चाहने वालों की हर अदा, हमें कबूल है।
आपका
अभिमन्यु पण्डित

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