लेबल

बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की - 14

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की - 14
        प्रस्तुति योगेश मित्तल
"ऐसी क्या मुसीबत आ गई कि मुझे बुलाने के लिए आपको मेरठ आना पड़ा?" मैंने राजेन्द्र भूषण जैन से पूछा तो वह बोले -"मुझे क्या पता, मुझसे तो गौरीशंकर जी ने रिक्वेस्ट की थी कि जैन साहब, योगेश मेरठ में कहीं होगा, उसके घर पर पता करवाया था, दिल्ली में तो वह है नहीं। आप मेरठ जाकर उसे पकड़ कर लाओ, जो भी खर्चा होगा, आपको हम देंगे।"
वेदप्रकाश शर्मा
वेदप्रकाश शर्मा जी
"काम नहीं बताया उन्होंने।" - मैंने पूछा! 
"मैंने पूछा नहीं, उन्होंने बताया नहीं। पिछली बार राज कुमार गुप्ता जी ने भेजा था, तब भी हमने कोई सवाल नहीं किया था।" राजेन्द्र भूषण बोले।
मैं सोचने लगा, क्या करूँ? दिल्ली जाऊँ या नहीं?
     मेरठ की मेरी यादों में, दिल्ली से मुझे बुलाने के लिए प्रकाशकों द्वारा किसी को मेरठ भेजने की घटनाएँ तीन बार हुई है। दो बार मनोज पाकेट बुक्स से - एक बार राजकुमार गुप्ता द्वारा तथा एक बार गौरीशंकर गुप्ता द्वारा राजेन्द्र भूषण जैन को मेरठ भेजा गया और एक बार विजय पाकेट बुक्स का मैसेज लेकर टूरिंग एजेन्ट इन्द्र मेरठ आये थे।

वो यादें जो मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गई- राजकुमार गुप्ता

 वो यादें जो मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गई...

18 फरवरी, 2017 की सुबह एक अशुभ समाचार मेरा इंतजार कर रहा था-लोकप्रिय उपन्यासकार वेदप्रकाश शर्मा नहीं रहे। मैं हत्प्रभ रह गया। ऐसा लगा कि जैसे वक्त वहीं थम गया हो और आत्मा अचानक एक अनजानी सी बेचैनी से भर उठी। मुझे उनके जाना का अभी भी यकीन नहीं हो रहा था। यादों की न जाने कितनी परछाइयां मेरे आस-पास जीवंत हो उठी।

         मेरा उनका साथ दो-चार वर्षों का नहीं, लगभग चालीस वर्षों का था। इन वर्षों के दौरान हम सिर्फ, प्रकाशक और लेखक ही नहीं रहे थे बल्कि जिंदगी की तमाम कठिनाइयों में साथ रहने वाले परम प्रिय दोस्त बन गये थे। उनके व्यक्तित्व में एक जादू था, जो उन्हें हर दिल अजीज बनाता था।

श्रद्धा सुमन वेद जी को- सुरेन्द्र मोहन पाठक

 अलविदा बिरादर अलविदा- सुरेन्द्र मोहन पाठक
            दिनाकं 17.02.2017 को विख्यात, प्रतिष्ठित, लोकप्रिय साहित्य के लेखक वेदप्रकाश शर्मा के देहावसान की खबर जब आम हुई तो उनके शैदाई पाठक हक्के-बक्के रह गये। एक निष्ठावान लेखक का इतनी कम उम्र में चला जाना उनके लिये एक नाकाबिलेबर्दाश्त सदमा था। जाना तो सब ने ही होता है लेकिन सिर्फ 62 साल की उम्र में  चला जाना एक दारुण व्यथा बरपाने वाला वाकया था।
वेदप्रकाश शर्मा जी के साथ सुरेन्द्र मोहन पाठक जी
                  उनके चौथे के दिन अपनी संवेदना प्रकट करने के लिये मैं मेरठ उनके दौलतखाने पर गया तो मैंने बैठक के एक कोने में स्मृति शेष के तौर पर रखी उनकी एक तस्वीर देखी। वो तस्वीर यकीनन हालिया थी और वो उसमें इतने यूथफुल और तरोताजा जान पड़ रहे थे कि यकीन करना मुहाल था कि जिस अक्स के मैं रूबरू था वो अब इस फानी दुनिया से रुखसत पा चुका था। उनकी पत्नी के रूबरू हुआ तो उनसे निगाहें मिलाते वक्त कलेजा चाक होता था, बेटे- बेटियों के रूबरू हुआ तो उनकी गमगीन सूरतें देखी नहीं जाती थी।
                कहते हैं वक्त बड़े-बड़े गम भुला देता है। ठीक ही कहते होंगे लेकिन वक्त लेखक के जाने का गम भले ही भुला दे अपने निरंतर, अनथक, लेखन के जरिये उन्होंने जो अपना लार्जर दैन लाइफ वजूद खड़ा किया था, वो नहीं भुलाया जा सकने वाला। सालोंसाल ये जहां `वर्दी वाला गुण्डा` के लेखक को याद करेगा जिसकी ज्यादातर जिंदगी में उपन्यास लेखन में उससे आगे कोई नहीं था। 
कबीर जी ने कितना दुरुस्त फरमाया है-
                              पानी केरा बुदबुदा, अस मानुष की जात
                              देखत ही छिप जायेगा,  ज्यों तारा प्रभात।
लेकिन इस `तारा प्रभात` का दुखद अंजाम किसे कबूल होगा? किसी को नहीं।
                              मौत को देखा तो नहीं
                              पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी
                              कमबख्त जो भी उससे मिलता है
                              जीना छोड़ देता है।
लभगभ आधी सदी तक पाठकों के दिल पर एकछत्र राज करने वाले विलक्षण रहस्यकथा लेखक वेदप्रकाश शर्मा को मेरी विनम्र श्रद्धांजालि।
                               जब तक रहे तू, यूं रहे कि तू ही तू रहे,
                              जब तू न रहे, तब भी तेरी गुफ्तगु रहे।
अलविदा बिरादर अलविदा।
                                                        उपन्यासकार
                                                       सुरेन्द्र मोहन पाठक
अन्य विशेष लिंक
- वो यादें जो मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गयी- राजकुमार गुप्ता 

Featured Post

मेरठ उपन्यास यात्रा-01

 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...