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सोमवार, 29 जून 2020

मैं और मेरी छोटी सी साहित्यिक दुनिया- अजिंक्य शर्मा

मैं और मेरी छोटी सी साहित्यिक दुनिया- अजिंक्य शर्मा
(उपन्यास जगत के सुनहरी दौर को रेखांकित करता अंजिक्य शर्मा जी का यह आलेख आपको उस समय में ले जायेगा जब मनोरंजन का माध्यम पुस्तकें होती थी।)

    उपन्यास! चार अक्षरों और एक अर्धाक्षर का ये शब्द कुछ लोगों के लिये बिल्कुल नया होता है तो कुछ की इसे सुनकर भृकुटि चढ़ जाती है लेकिन हम जैसे बहुत से पुस्तकप्रेमी ऐसे भी हैं, जिनके दिलों के लिये ये शब्द ऐसा है, जैसे तपती गर्मी में सावन की बौछार।
       अगर आप उपन्यास प्रेमी नहीं हैं तो शायद इसे महसूस न कर सकें लेकिन एक उपन्यास प्रेमी इसे अच्छी तरह समझ सकता है। बहुत से पाठकों ने किशोरावस्था से, तो बहुत से ने तो बचपन में ही ये रोग दिल से लगा लिया था। कॉमिक्सों से तरक्की कर हमने उपन्यास पढ़ना शुरू किया और कब ये जीवन का अभिन्न अंग बनती चली गईं, पता भी न चला। वो समय भी कितना सुनहरा था, जब किसी काम से या घूमने कहीं भी जाओ तो चाहे बाजार हो, रेलवे स्टेशन हो, बस स्टैंड हो या गांव-शहर का कोई गली-मोहल्ला ही हो, नजरें किसी ऐसी दुकान या गुमटी को ढूंढतीं थीं, जिन पर एक पतली रस्सी पर कॉमिक्सें लटकी हुईं और सीधे कतार में या आड़े रखे हुए उपन्यास दिख जायें। खरीदने के लिये या किराये पर पढ़ने के लिए ही मिल जायें। शहरों में उम्मीद ज्यादा होती थी क्योंकि शहरों में लाइब्रेरियाँ अधिक हुआ करतीं थी। 
         लेकिन टीवी पर लगातार बढ़ते चैनलों और फिर इंटरनेट ने इन पुस्तकों के व्यवसाय पर करारा प्रहार किया। फिर बहुउपयोगी विलक्षण यंत्र मोबाइल और उसका स्मार्ट और स्मार्ट से भी ज्यादा स्मार्टफोन के रूप में विकसित हो जाना तो जैसे ऊंट की पीठ पर आखिरी तिनका था। 

शुक्रवार, 26 जून 2020

पल्प फिक्शन का सुनहरा दौर और आज

इंडियन पल्प फिक्शन का सुनहरा दौर और आज
- गौरव की कलम
आज सुबह सुबह पल्प फिक्शन पर कुछ लिख रहा था तो अचानक 90s की पुरानी यादें ताज़ा हो गयी जब कर्नल रंजीत, वेद प्रकाश शर्मा,ओम प्रकाश शर्मा,सुरेन्द्र मोहन पाठक, वेद प्रकाश काम्बोज, परशुराम शर्मा, इब्ने सफी, देवकी नंदन खत्री, गुलशन नंदा आदि जैसे पल्प फिक्शन राइटर्स का पाठकों में भयंकर चस्का था, एक दौर था जब गुलशन नंदा और वेद प्रकाश शर्मा ने नॉवेल आते ही स्टॉक आउट हो जाते थे, शायद आपको जानकार ताज्जुब हो की नीचे दिए वेद प्रकाश शर्मा की इस नॉवेल की 15 लाख कॉपी रिलीज़ से पहले ही सोल्ड आउट (प्री-बुकिंग) हो गयी थी, और एक समय में इस नॉवेल को बैन करने की मांग उठने लगी और इसका मुख पृष्ठ काला कर दिया गया और आजतक आठ करोड़ से भी ज्यादा प्रतियां बिक चुकी है, या गुलशन नंदा जी जिनके नॉवेल के होर्डिंग्स फिल्मो के होर्डिंग्स की तरह लगाए जाते थे या अय्यारी लेखन के उस्ताद देवकी नंदन खत्री जिनकी अनगिनत कॉपी उस काल में सेल आउट हुई जब इंडियन पल्प फिक्शन अपने शैशव काल में था या इब्ने सफी जिन्होंने जासूसी दुनिया के लेखन में एक कीर्तिमान स्थापित किया। 


      ‌‌दरअसल केबल TV के उद्गम ने भारत में पाठको की संख्या कम कर दी थी...फिल्म्स और नाटकों का TV पर इतना सुलभ हो जाना लोगो को             मनोरंजन की नयी खुराक थी, जिस से नयी पीढ़ी इस सुख से दूर होती चली गयी, भाग्यवश मैं किताबों हमेशा पास रहा पर छोटा होने के कारण मैं 90s में ज्यादातर कॉमिक्स का ही दीवाना था पर नॉवेल पर भी चोरी छुपे हाथ साफ़ कर लिया करते थे और जैसे जैसे उम्र बढ़ी घर में और नॉवेल पढ़ने की इज़ाजत मिलने लगी तो समझा गुरु की लेखन द्वारा विसुअल ट्रीट किसे कहते है,ये लोग भले ही आज की तरह PR और मार्केटिंग से वंचित रहे हो, फिर भी माउथ पब्लिसिटी और लेखन की बदौलत लाखों करोड़ों पाठको के दिल में राज़ करते थे और शायद आज के दौर में कोई ही नया भारतीय लेखक कितना भी PR यूज़ करके उस ऊँचे मुकाम तक पंहुचा हो जहाँ उपर्लिखित राइटर आसीन है ऐसा दूर दूर तक दिखाई नहीं देता।

      ये आलम था की मैंने ऐसे लोग भी देखे है जो 2-2 km चलते चलते भी भी नॉवेल से पढ़ते रहते थे, बच्चे कॉमिक्स के लिए दीवाने थे पर उसी भारतीय पल्प में आज रोचकता का बेहद आभाव है तभी शायद विदेशी राइटर के हिंदी अनुवादित या मूल प्रति नावेल हमारे आज के मौजूदा नए हिंदी राइटर्स से ज्यादा बिकते है, किसी इक्का दुक्का राइटर को छोड़ कर जो आज भी वो सुनहरी मशाल पकडे हुए है।

भले ही पाठकवर्ग आज बहुत ही सिमट गया हो पर हमारे प्रकाशनों को और आगे आना पड़ेगा और लेखकों को अपने ऊपर जिम्मेदारी लेनी होगी ताकि ये मशाल जलती रहे, ये दौर फिर वापस आये।

लेखक- गौरव
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गौरव

बुधवार, 24 जून 2020

हिन्दी उपन्यास जगत के 'स्टीवन स्पीलबर्ग'.... - अजिंक्य शर्मा

हिन्दी उपन्यास जगत के 'स्टीवन स्पीलबर्ग'-जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा
  अजिंक्य शर्मा जी की कलम से

      हिन्दी उपन्यास जगत में कई महान हस्तियां हुईं हैं, जिन्होंने अपनी अद्वितीय प्रतिभा के बल पर जासूसी साहित्य को समृद्ध बनाया। जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी भी ऐसे ही लेखकों में से थे, जिनकी गिनती सर्वश्रेष्ठ लेखकों में होती है। सहज सरल भाषा और मन को छू लेने वाली कहानियां उनकी लेखनी की विशेषता थीं। उनकी रचनाएं वास्तविकता के इतनी करीब होतीं हैं कि उन्हें पढ़ते वक्त पाठकों को लगने लगता है, जैसे वे स्वयं उन घटनाओं के साक्षी हों।

       जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी को लेखन में  विविधता के कारण भारत में हिन्दी उपन्यास जगत का 'स्टीवन स्पीलबर्ग' कहा जा सकता है। जिस तरह स्टीवन स्पीलबर्ग ने 'सेविंग प्राइवेट रायन', 'ई.टी.', 'शिण्डलर्स लिस्ट' से लेकर 'जुरासिक पार्क' तक अलग अलग जॉनर की एक से बढ़कर एक फिल्में बनाईं, उसी तरह ओमप्रकाश शर्मा जी ने भी ऐतिहासिक, सामाजिक, जासूसी, व्यंग्य से लेकर हॉरर आदि विभिन्न विधाओं में एक से बढ़कर एक उपन्यास लिखे। उस समय की डाकुओं की समस्या का चित्रण करते हुए उन्होंने कई शानदार उपन्यास लिखे। राष्ट्रों के हथियारों के प्रति बढ़ते मोह और न्यूक्लियर बम जैसी समस्याओं की ओर भी 'कटे हुए सिर' जैसे उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने पाठकों को जागरूक किया। उनके द्वारा रचित 'सांझ का सूरज' जहां एक महान ऐतिहासिक रचना है, वहीं अपने देश का अजनबी बेहद मर्मस्पर्शी उपन्यास है, जो विदेशों में बसे भारतीयों को उनके देश से जोड़ने का सन्देश देता है। 'छुपे चेहरे' भारत के 'अवेंजर्स' की तरह है, वहीं 'पिशाच सुन्दरी' 'ड्रैक्यूला' के भारतीय रूप की तरह। 'भूतनाथ की संसार यात्रा' पढ़कर आप हंसते हंसते लोटपोट हो जायेंगें, वहीं 'सबसे बड़ा पाप' जैसे उपन्यास देह व्यापार जैसे घृणित कारोबार की सच्चाई आपकी आंखों के आगे बेनकाब करते हैं।
              ये सचमुच एक आश्चर्य का विषय रहा कि आखिर जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी अलग अलग विधाओं में इतना शानदार कैसे लिख लेते थे? उन पर मां सरस्वती की विशेष कृपा थी। उनकी अपार लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बुकस्टाल्स पर लोग सीधे पूछते थे-"शर्मा जी का नया उपन्यास आया क्या?" उनकी बढ़ती लोकप्रियता का लाभ उठाने कुछ अन्य लेखकों ने भी उनके नाम से लिखना शुरू कर दिया, जिसके चलते उनके असली नॉवल्स ढूंढने के लिये उनके नाम के साथ 'जनप्रिय लेखक' ही उनकी पहचान बन गया।
            उनके उपन्यासों की तरह ही उनके पात्र भी विविधता से परिपूर्ण हैं। राजेश जहां एक आदर्श चरित्र वाले मानवतावादी जासूस हैं, वहीं जगत एक मस्तमौला अंतर्राष्ट्रीय ठग है, जो जिन्दगी को खुलकर जीने में विश्वास रखता है। गोपाली राजस्थान के जाने माने जासूस हैं, जिनके साहस और काबिलियत की लोग मिसालें देते हैं। 'पिशाच सुन्दरी' के नायक भी गोपाली ही हैं। चक्रम थोड़े सनकी किस्म के जासूस हैं, जिनका पालतू कुत्ता...ओह सॉरी...हवाबाज अपनी आश्चर्यजनक हरकतों से मंत्रमुग्ध कर देता है। राजेश का साथी जयन्त की हरकतों से आप हंसने के लिये विवश हो जायेगें, वहीं आधुनिक जासूसों जगन-बन्दूकसिंह की जोड़ी भी लाजवाब है।
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी की लेखनशैली की एक खास बात ये भी है कि उनमें अनावश्यक हिंसा का प्रदर्शन नहीं होता। उनके कई उपन्यासों में आप देखेंगे कि पूरा उपन्यास खत्म हो जायेगा लेकिन किसी का खून नहीं होगा। इसके बावजूद उनके उपन्यासों की रोचकता में कोई कमी नहीं आती थी। इसी प्रकार जनप्रिय लेखक अश्लीलता से भी हमेशा कोसों दूर रहे। उनके उपन्यास इस तरह के होते हैं कि एक पिता अपनी पुत्री को, एक भाई अपनी बहन को पढ़ने के लिये दे सकता है।
              जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के उपन्यासों की एक खास बात ये भी है कि उनसे हमें हिम्मत और मानवता की सीख मिलती है। राजेश, जगत जैसे साहस के शिखर पुरुषों से सीखने को मिलता है कि कभी भी किन्हीं भी परिस्थितियों में हार नहीं माननी चाहिये। राजेश, जगत बिना किसी हथियार के केवल अपने बुद्धिकौशल के बल पर पूरी की पूरी फौज को धूल चटा देने की क्षमता रखते हैं। जगत तो 'फैंटम' के भारतीय रूप की तरह है। अविजित और अडिग।
            बेहद दुख की बात है कि ऐसे महान लेखक आज हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन उनकी कालजयी रचनाएँ आज भी हमारे साथ हैं। रीप्रिंट नहीं होने से उनके उपन्यास आज पाठकों को उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं।मैं शर्मा जी के सुपुत्र श्री वीरेन्द्र शर्मा जी एवं 'महासमर' व 'सत्यमेव जयते नानृतं' के रचयिता श्री रमाकान्त मिश्रा जी का विशेष रूप से आभार व्यक्त करना चाहता हूं, जिनके प्रयासों से जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी की वेबसाइट  http://omprakashsharma.com के माध्यम से ओमप्रकाश शर्मा जी के बहुत से अनमोल उपन्यास पाठकों को पढ़ने के लिये उपलब्ध हो पा रहे हैं। इन पंक्तियों के लेखक को स्वयं भी ओमप्रकाश शर्मा जी के अनेक उपन्यास इस वेबसाइट के माध्यम से ही पढ़ने को मिल सके। वहीं ईबुक के आदि नहीं होने के कारण बहुत से पाठक अब भी पुराने उपन्यासों के रीप्रिंट होने की बेसब्री के साथ प्रतीक्षा कर रहे हैं। उम्मीद है ओमप्रकाश शर्मा जी के अनगिनत प्रशंसकों का ये सपना शीघ्र पूरा हो और उनके उपन्यास रीप्रिंट होकर हमें पढ़ने को मिल सकें।

हिन्दी उपन्यास जगत के महान लेखक जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
    लेखक- अजिंक्य शर्मा (ब्रजेश शर्मा) उपन्यासकार

रविवार, 14 जून 2020

लोकप्रिय साहित्य में आत्मकथा और जीवनी

किसी चर्चित व्यक्ति जो जानने का अच्छा माध्यम है उसकी आत्मकथा या जीवनी। इन दोनों के माध्यम से हम उस व्यक्ति के व्यवहार, मित्र, उसके परिवेश और व्यक्तित्व को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। इन दोनों के अतिरिक्त डायरी भी एक अच्छा माध्यम है। वैसे बहुत से चर्चित व्यक्तियों की डायरियों ने भी 'आत्मकथा और जीवनी' की नींव का काम किया है।
           पहले हम जान लें की आत्मकथा (Autobiography) और जीवनी (Biography) में अंतर क्या होता है।
सबसे बड़ा और विशेष अंतर दोनों में यही है की आत्मकथा (Autobiography) लेखक द्वारा स्वयं लिखी जाती है अर्थात् स्वयं के जीवन की कथा स्वयं द्वारा लिखना ही आत्मकथा है।
        वहीं जीवनी (Biography) में किसी के जीवन की कथा अन्य व्यक्ति द्वारा लिखी जाती है।
       जीवनी का अंग्रेजी अर्थ “बायोग्राफी” है। जीवनी में व्यक्ति विशेष के जीवन में घटित घटनाओं का कलात्मक और सौन्दर्यता के साथ चित्रण होता है।  जीवनी इतिहास, साहित्य और नायक की त्रिवेणी होती है। जीवनी में लेखक व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन और यथेष्ट जीवन की जानकारी प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत करता है।
         साहित्य में आत्मकथा किसी लेखक द्वारा अपने ही जीवन का वर्णन करने वाली कथा को कहते हैं। यह संस्मरण से मिलती-जुलती लेकिन भिन्न है। जहाँ संस्मरण में लेखक अपने आसपास के समाज, परिस्थितियों व अन्य घटनाओं के बारे में लिखता हैं वहाँ आत्मकथा में केन्द्र लेखक स्वयं होता है।

         हालांकि दोनों जी अपनी-अपनी विशेषताएं और कमियां है।   'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' महात्मा गांधी जी की आत्मकथा है और 'आवारा मसीहा' विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित 'शरतचन्द्र' जी की जीवनी है। 

गुरुवार, 11 जून 2020

नृपेन्द्र शर्मा

लेखक नृपेन्द्र शर्मा जी का संक्षिप्त परिचय

परिचय:- नाम-नृपेन्द्र शर्मा 
उपनाम - "सागर"
पिता:-  श्री रामऔतार शर्मा
निवास- होलिका मन्दिर ठाकुरद्वारा
कार्य:- पशुपति एक्रिलोन लिमिटेड ठाकुरद्वारा।

प्रकाशित उपन्यास 
1. तिलिस्मी खज़ाना
2-ज्वाला
प्रकाशित कहानी संग्रह 
1. भूतों के साये में

कविताएं सहित्ययन पुस्तक में प्रकाशित। कहानियां विश्वगाथा पत्रिका में प्रकाशित।
प्रतिलिपि, मातृभारती, स्टोरी मिरर, शब्द नगरी आदि ऑन लाईन मंचों पर रचनाएँ।

मंगलवार, 9 जून 2020

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की- 02

कुछ यादें वेद प्रकाश शर्मा जी के साथ की - 02
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      पुरानी यादें कभी सिलसिलेवार क्रम से याद नहीं आतीं। अक्सर ऐसा होता है, पहले की कोई बात बाद में और बाद की कोई बात पहले - याद आ जाती है तो लिखने में भी ऐसा ही होना निश्चित है।

       लेकिन आज का हर पाठक लेखक से ज्यादा महान है! उसे लेखक की बकवास पढ़ने मे कोई दिलचस्पी नहीं होती, जहाँ बेकार की बात नज़र आई, निगाहें चार- पांच -छ: लाइन छोड़ती चली जाती हैं।
     और जब ऐसी किसी हकीकत में हम आगे की घटना पीछे तथा पीछे की आगे कह जाते हैं, पाठक का दिमाग उसे अपने आप दुरुस्त कर लेता है।
आप में से बहुत से लोग सुमन पाकेट बुक्स में रतिमोहन के नाम से सामाजिक उपन्यास लिखने वाले गोविन्द सिंह से अवश्य मिले होंगे। वैसे गोविन्द सिंह, गोविन्द सिंह नाम से भी बहुत छपे हैं! 

      गोविन्द सिंह ने एक बार मुझसे कहा - "पढ़ने वाला लिखने वाले से बहुत ज्यादा अक्लमंद होता है।"

       "क्या बात कह रहे हैं सर...! लिखने वाला तो दिमाग लगाता है! कहानी का ताना-बाना बुन कहानी की कान्टीन्यूटी कायम रखता है! फिर सारे लिंक समेट कर शानदार सा अंत करता है! लिखने वाले का तो खूब दिमाग लगता है तो पढ़ने वाला ज्यादा अक्लमंद कैसे हो सकता है?"

       "ऐसे कि... " पान की पीक थूकते हुए गोविन्द सिंह ने जवाब दिया - "लिखने वाला दो तीन चार महीने या कुछ भी टाइम लगाकर एक सौ दो सौ पेज की किताब लिखता है और पढ़ने वाला, उसे दो घंटे में पढ़कर दस गलतियां निकाल देता है, जो उसके बताने से पहले लिखने वाले को पता ही नहीं होती थीं!"
       गोविन्द सिंह की इस बात का मेरे पास कोई काट न था  न ही कोई जवाब!
       खैर यह सब लिखने का मुख्य कारण यह है कि जो कुछ मैं लिख गया हूँ, अब कुछ घटनाएँ उससे पहले की बताना चाहता हूँ! 

सुमन पॉकेट बुक्स

सुमन पॉकेट बुक्स के प्रथम सेट का परिचय

  इसका प्रकाशन कब हुआ यह तो खैर पता नहीं, पर कुशवाहा कांत के उपन्यास 'हमारी गलियां' के अंतिम पृष्ठ पर प्रकाशन सेट की जानकारी उपलब्ध थी जो यहाँ प्रस्तुत है।
  एक जगह प्यारे लाल 'आवारा' का नाम अवश्य मिलता है, शायद वे इस प्रकाशन के संपादन रहे हैं।

प्रकाशक
सुमन पॉकेट बुक्स
दरिबा कलां- दिल्ली-6

प्रथम सेट में प्रकाशित उपन्यास
1. हमारी गलियां-         कुशवाहा कांत
2. अंधेरा और गुनाह-    आदिल रशीद
3. रेत के महल-           प्यारे लाल 'आवारा'
4. लाशों के व्यापारी-    ओमप्रकाश शर्मा
5. अधूरी प्यास-           दत्त भारती
6. कठपुतली-             साधना 'प्रतापी'
7. स्त्री, पुरुष और सैक्स-  आनंद


 



सोमवार, 8 जून 2020

उपन्यासकार

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के सितारे एक साथ

बायें से क्रमशः- 
साधना प्रतापी, 
प्रेम वाजपेयी, 
सुरेन्द्र मोहन पाठक, 
जयप्रकाश शर्मा (ओमप्रकाश शर्मा के भाई), 
सुरेश जी(सामाजिक उपन्यासकार), 
ओमप्रकाश शर्मा-जनप्रिय
वेदप्रकाश कांबोज

रितुराज, अनिल सलूजा

लोकप्रिय साहित्य के दो प्रसिद्ध उपन्यासकार सपरिवार


सुरेश रितुराज जैन अपनी धर्मपत्नी प्रमिला जैन जी के साथ
अनिल सलूजा जी सपरिवार

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की-01

कुछ यादें वेद प्रकाश शर्मा जी-01
मुझसे एक फेसबुक मित्र ने कहा कि मैं बहुत दिल से लिखता हूँ और वे अतीत में मेरे द्वारा लिखे उपन्यास पढ़ना चाहते हैं तो मैं यह बताना चाहूँगा कि मैंने कितने नामों से लिखा, किस किस लेखक और किस किस ट्रेंड मार्क के लिए लिखा और कितने उपन्यास लिखे, कभी रिकॉर्ड नहीं रखा और बीते हुए दौर को बहुत ज्यादा याद रखने में मेरी विशेष दिलचस्पी भी नहीं है।
      किन्तु आप यह जान लीजिये कि उस दौर के तकरीबन सभी प्रकाशक मुझे शक्ल और नाम से जानते थे और बहुतों से दोस्ताना अन्दाज में ही बात चीत होती थी।
और दिल से लिखने की बात के विषय बेबाकी से कहना चाहूँगा कि आज के बहुत से लेखक दिल से लिखते हैं, लेकिन तब ऐसा नहीं था कि लेखक - जो लिख रहा हो, दिल से ही लिखा गया हो, दरअसल तब एक नहीं, अनेक लेखक ने ऐसे वक़्त का शिकार थे कि उनकी जिन्दगी में कई बार ऐसा कठिन वक़्त भी आया, जब घर में बच्चों की फीस के लिए, राशन के लिए पैसे के लिए उन्हें उपन्यास की पेमेन्ट का इन्तजार रहता था, तब कई बार लिखने का मन भी नहीं हो पाता था, पर बेमन से पन्ने भर कर उपन्यास पूरा करना होता था! 
इसलिए अच्छे लेखकों द्वारा भी अक्सर घटिया उपन्यास भी लिखे जाते थे।

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मेरठ उपन्यास यात्रा-01

 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...