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रविवार, 30 जून 2019

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-37,38

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-37

आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 37
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अगले दिन कोई प्रकाशक नहीं आया ! मैं और बिमल चटर्जी दोनों इन्तजार करते रहे ! उसके अगले दिन भी कोई नहीं आया !
तीसरे दिन मैं सुबह-सुबह तैयार होकर बिमल चटर्जी के घर की ओर निकलने वाला ही था कि द्वार पर भारी-भरकम स्याह-सा चेहरा प्रकट हुआ !
वह उत्तमचन्द थे ! बुक बाइन्डर !
"बाबे दी मेहर है ! चिन्ता नहीं करनी !" दोनों हाथ ऊपर उठा, उत्तमचन्द ने चिर-परिचित अन्दाज़ में अभिवादन किया !
"बाबे दी मेहर है !" मैंने अपना दायां हाथ आगे बढ़ाया-"आज सुबह-सुबह कैसे ?"
"चिन्ता नहीं करनी ! इधर से गुज़र रहा था ! सोचा - बड़े-बड़े लोगों से मिलते चलें !"
मैं ठहाका मारकर हँसा -"बड़े-बड़े लोगों से मिलने के लिए आप चारफुटिये से मिलने आये हैं ! मैं कहाँ से बड़ा नज़र आ रहा हूँ आपको ?"
उत्तमचन्द गम्भीर हो गये -"हमें तो जो रोटी दे, वही हमारे लिए बड़ा है !"
"अरे तो मैंने कौन-सी रोटी खिला दी आपको ? खिलाने-पिलाने वाला तो भगवान है ! मेरे यहाँ आने की जगह किसी मन्दिर चले गये होते !"
"वहाँ भी जाऊँगा, पर अभी नहाया नहीं हूँ !"
"तो आप बिना नहाये-धोये सिर उठाकर सीधे मेरे यहाँ चले आये हैं ! कुछ तो बात है ! क्या बात हैं ?" मैंने मुस्कुराते हुए भवें नीचे से ऊपर करते हुए पूछा !
"लड़के खाली बैठे हैं ! मैंने सोचा - योगेश जी से ही पूछ लेते हैं - पंकज पाॅकेट बुक्स का नया सैट कब आ रहा है ?" उत्तमचन्द के मुखमण्डल की मुस्कान का स्थान गम्भीरता ने ले लिया !
"इस बारे में तो कुमार साहब ही कुछ बता सकते हैं !" मैंने कहा !
"तो चलें...कुमार साहब के घर ?" उत्तमचन्द ने पूछा !
"चलिए !"
हम दोनों जब कुमारप्रिय के यहाँ पहुँचे ! कुमारप्रिय घर पर ताला लगा रहे थे ! स्पष्ट था - कहीं जाने को तत्पर हैं !

शुक्रवार, 14 जून 2019

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-35,36

आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 35
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राज भारती जी और यशपाल वालिया ने मेरा और बिमल का सहज स्वागत किया !
फोल्डिंग कुर्सी बिछाकर हम दोनों जम गये तो राज भारती जी ने बिमल से पूछा -"स्क्रिप्ट तैयार है तेरी ?"
"हाँ, लेकर आया हूँ !" बिमल ने कहा ! किन्तु सवाल मुझसे तो किया ही नहीं गया था ! मैं खुद टपक पड़ा जवाब देने को, बोला - "मैं भी लाया हूँ !"
"अच्छा...!" जवाबी आवाज यशपाल वालिया की थी, जो नाटकीय अन्दाज़ में कुर्सी से उठकर खड़े हुए और ऊपर से नीचे मुझे देख, भारती साहब से पंजाबी में बोले -"आपने इधर तो देखा ही नहीं ! इधर भी देख लो ! योगेश जी भी आये हैं ! स्क्रिप्ट भी लाये हैं !"
फिर वालिया साहब बिमल से बोले -"ये क्या मोटे ? तूने अपनी कुर्सी तो भारती साहब के पास रख ली, योगेश जी को पीछे छिपा दिया !"

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-33,34

आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 33
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अचानक अपना ही घर मेरे लिए कारागार बन गया !

लेखकों-प्रकाशकों तथा बिमल चटर्जी की विशाल लाइब्रेरी में आनेवाले लोगों से जो रिश्ता बना था, उसकी वजह से घर में मेरा समय कम ही बीतता था !
बहुत बार तो केवल रात का खाना ही घर पर होता था, दिन का भोजन कहीं न कहीं यारों के साथ होता था !

लेकिन...
सब दिन होत न एक समाना !

वह दिन भी अन्य दिनों से अलग था !

सुबह-सुबह की पहली चाय कुमारप्रिय के साथ एक टी स्टाॅल में पीने के बाद अलग हुआ तो बिमल चटर्जी के यहाँ पहुँच गया ! वहाँ से हम साथ-साथ विशाल लाइब्रेरी पहुँचे !

"योगेश जी, भारती पाॅकेट बुक्स का मेरा नाॅवल तो कम्प्लीट होनेवाला है ! आपका 'जगत के दुश्मन' कहाँ तक पहुँचा ?" बिमल ने पूछा तो मैंने बताया - "आखिरी ढलान पर है, जरा-सा धक्का लगाना है, पूरा हो जायेगा !"
बिमल हँस पड़े -"मुझे तो आज और कल, दो दिन लगेंगे ! आप भी पूरा कर लो ! फिर साथ में ही चलेंगे ! ठीक !"
"ठीक !" मैंने कहा !

गुरुवार, 13 जून 2019

के. एम. मोहन

उपन्यास जगत में एक और लेखक के विषय में जानकारी प्राप्त हुयी है। लेखक हैं के. एम. मोहन।

के. एम. मोहन के उपन्यास
1. किरण- एक अभिशप्त हीरा (साधना पॉकेट बुक्स)

उक्त लेखक के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध हो तो शेयर करें।
धन्यवाद।
. .




शनिवार, 1 जून 2019

अभिमन्यु पण्डित लेखकीय

अभिमन्यु पण्डित के प्रथम उपन्यास 'अभिमन्यु का चक्रव्यूह' का लेखकिय ।
परमप्रिय पाठकों,
सादर अभिनन्दन!

जिस तरह किसी भी मां को अपना पहला बच्चा प्यारा होता है, जौहरी को पत्थरों में हीरा प्यारा होता है, गुलशन के महकते फूलों में गुलाब प्यारा होता है, उसी तरह किसी भी लेखक के लिये उसका पहला उपन्यास प्यारा होता है, जिसे वह ताउम्र नहीं भूल पाता, क्योंकि उसी से उसकी पहचान बननी शुरू होती है। मैं अपनी इस प्यारी चीज को आप सबको समर्पित करता हूं। मेरी यह सौगात आपके नाम है। केशव पण्डित जैसे किरदार का जलवा ही समझिये जिसने मुझे प्रेरित किया कि मैं भी अपने टूटे-फूटे शब्दों से इस किरदार को लेकर पूरा केशव पुराण ही लिख सकूं। इस केशव पुराण की यह पहली कृति है, जिसके प्रकाशक हैं—'रवि पॉकेट बुक्स'।


          केशव पण्डित को मुख्य पात्र के रूप में लेकर अनेक उपन्यासों की इस घुड़दौड़ में पहली बार एक लंगड़ा घोड़ा मैदान में उतरा है, जो अभी इस रेस में सबसे पीछे है, अगर जौकी ने इस घोड़े को उसी अन्दाज में दौड़ाया, जिसकी मैंने परिकल्पना की है, तो दौड़ का एक अद्भुत आनन्द आप सब ले सकेंगे। हार-जीत का फैसला भविष्य के गर्भ में है--भविष्य, जिसे न कोई जान सका और न जान सकता है। इस घोड़े पर जो जौकी सवार है, उसका नाम है अभिमन्यु पण्डित और प्रस्तुत उपन्यास है--'अभिमन्यु का चक्रव्यूह'।

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