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बुधवार, 28 नवंबर 2018

काम्बोज जी- पाठक जी

 उपन्यास जगत के दो सितारे। 

वेदप्रकाश कंबोजी जी और सुरेन्द्र मोहन पाठक।

 बचपन के मित्र। एक बार फिर साथ-साथ। 

    

29.11.2018

मंगलवार, 27 नवंबर 2018

राम-रहीम

कहानी राम रहीम की
कौन थे राम- रहीम?

जोड़ी 'राम-रहीम' की। उपन्यासकार जगत में कुछ लेखक द्वय संयुक्त रूप से भी उपन्यास लेखन करते रहे हैं। यह प्रयोग सफल भी रहा है। एक समय था जब 'धरम-राकेश' नामक लेखक की जोड़ी खूब चर्चित रही थी। ऐसा एक और नाम भी है,वह है 'राम-रहीम'। राम-रहीम की जोड़ी में राम नामक लेखक थे 'परशुराम शर्मा' और रहीम बने थे 'फारूख अर्गली'। यह जोड़ी भी काफी चर्चित रही। (यह जानकारी परशुराम शर्मा जी ने अपने फेसबुक पेज पर शेयर की)

दीपक पालेकर

उपन्यासकार दीपक पालेकर के एक उपन्यास का आवरण पृष्ठ मिला है, इनके विषय में अभी तक किसी भी प्रकार की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं। 

 दीपक पालेकर के उपन्यास 

1. मौत का जाल 

2. शोलों का तूफान

 इस विषय में अगर कोई जानकारी हो तो अवश्य शेयर करें।   



शनिवार, 24 नवंबर 2018

2. साक्षात्कार- इकराम फरीदी

कहानियाँ समाज से मिलती हैं- एम. इकराम फरीदी
साक्षात्कार शृंखला-02
 दिल्ली यात्रा (4.11.2018)  के दौरान जासूसी उपन्यासकार इकराम फरीदी से मिलना हुआ। उस दौरान इनका एक साक्षात्कार लिया जो आप के समक्ष प्रस्तुत है।
       -इकराम फरीदी जी के 'द आॅल्ड फाॅर्ट' से लेकर 'रिवेंज' तक पांच उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं और सभी कहानी के स्तर पर विविधता लिए हुए हैं। 
 - फरीदी जी, सर्वप्रथम आपका धन्यवाद जो आपने उपन्यास जगत को बेहतरीन उपन्यास दिये।
 - जी, धन्यवाद। 
- मेरा पहला प्रश्न है,आपको लिखने की प्रेरणा कहां से मिली। 
- बचपन से ही कहानियाँ पढने का शौक रहा, बाल मैगजीन पढी, धीरे-धीरे यह शौक उपन्यास की तरफ चला गया। और पढना फिर लेखन में बदल गया। 
- अपनी उपन्यास यात्रा के बारे में बतायें? 
- मेरा प्रथम उपन्यास 'द ओल्ड फोर्ट' जनवरी 2015 में  साहित्य सदन दिल्ली से आया। दूसरा उपन्यास 'ट्रेजड़ी गर्ल' धीरज पॉकेट बुक्स मेरठ से आया उसके बाद मेरे सभी उपन्यास 'रवि पॉकेट बुक्स' मेरठ से ही आ रहे हैं। 
 - उपन्यास जगत में आपके प्रेरणास्रोत लेखक कौन रहे हैं ?
 - मैंने सर्वाधिक आदरणीय वेदप्रकाश शर्मा जी को पढा है, मैं उनसे बहुत प्रभावित हूँ। इसके अलावा वेदप्रकाश कंबोज जी, सुरेन्द्र मोहन पाठक, अनिल जी, इब्ने सफी आदि को भी पढा है। इन्हीं की बदौलत में आज इस मुकाम पर हूँ। 
- बहुत से पाठक यह भी कहते हैं आपकी लेखनी में वेद जी की झलक मिलती है? 

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

घनश्याम मालाकार

घनश्याम जी एक जासूसी उपन्यासकार हैं। अभी तक इनका एक उपन्यास मिला है। यह उपन्यास प्रभात पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हुआ था। 

  एक फोन वार्ता के दौरान लेखक महोदय मे बताया की अभी तक उनका यही एक मात्र उपन्यास बाजार नें आया है। (23.11.2018)

नश्याम मालाकार जी के उपन्यास 

1. खूनी खिलाड़ी -2011 (प्रथम उपन्यास)

 संपर्क- 

 घनश्याम मालाकार 

 गायत्री कालाॅनी, बैड़िया 

तह.- बड़वाह, 

जिला-खरगोन, मध्य प्रदेश

 Email- malakarghnshyam@yahoo.com

 Mob- 9826047608, 9039004496

अनिल राज

एक जासूसी उपन्यासकार अनिल राज का उपन्यास मिला। अब अनिल राज कौन है कहां से हैं‌ कोई परिचय प्राप्त नहीं हुआ। 

 अनिल राज के उपन्यास 

अनिल राज - दुर्गेश पॉकेट बुक्स
1. नींव में भरा बारूद-    अमर सिंह सीरिज
2. भून दो सालों‌ को-      अमर सिंह सीरिज
3. एडवांस मर्डर-           एन.के. अग्रवाल सीरिज
4. हादसों के बीच-         थ्रिलर
5. भुनगा-                    अमर सिंह सीरिज
6. ब्लैक हाउस-            अमर सिंह सीरिज
7. दो पल की दुल्हन-     एन. के अग्रवाल
8. हत्या एक मुजरिम की- थ्रिलर उपन्यास
9. लिफाफे में बदं मौत-    एन. के. अग्रवाल
10. लूटकाण्ड-                थ्रिलर



दुर्गेश पॉकेट बुक्स- SS II 1444, सेक्टर-D-1,
LDA, कॉलोनी, लखनऊ-12,

Mob-   9793102780

 अनिल राज के विषय में कहीं से कोई सूचना मिले तो अवश्य संपर्क करें। 

धन्यवाद।

 -sahityadesh@gmail.com

www.sahityadesh.blogspot.in

सोमवार, 19 नवंबर 2018

विजेता पण्डित

हिंदी जासूसी उपन्यास जगत में जो 'केशव पण्डित' का जलवा था वैसा शायद ही किसी पात्र को नसीब हो। एक पात्र  केशव पण्डित और उस बहुसंख्यक पैदा हो गये 'केशव' नामक Ghost Writer।  यहाँ तक की केशव केशव के आगे पुत्र तक भी बाजार में उतार दिये।
    वेदप्रकाश शर्मा का प्रसिद्ध पात्र था केशव पण्डित । जिस पर वेदप्रकाश शर्मा ने ...उपन्यास लिखे थे। एक लंबे समय पश्चात वेदप्रकाश शर्मा के पुत्र 'शगुन शर्मा' के नाम से जो उपन्यास बाजार में आये उसमें 'केशव पण्डित' के पुत्र 'विजेता' को एक नायक के रूप में प्रस्तुत किया गया। 'विजेता' की लोकप्रियता देखकर बाजार में 'विजेता पण्डित' नामक  Ghost writer भी आ गये ।
यह प्रकाशक....की देन थी।

- विजेता पण्डित के उपन्यास
1. मैं बेटा तूफान का
2.
3.
4.
5.

शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

प्रकाश पण्डित

केशव पण्डित नामक बहती गंगा में एक और धारा समाहित होती है वह है प्रकाश पण्डित ।
केशव पण्डित एक Ghost writing का कमाल है। इसकी लोकप्रियता को देखकर अनेक प्रकाशक 'पण्डित' नाम से Ghost writing करवाने लगे।
 प्रकाश  पण्डित भी ऐसी ही एक Ghost writing का कमाल है।
 धीरज पॉकेट बुक्स-

केशव पण्डित के उपन्यास
1. केशव पण्डित का कानून
2. केशव पण्डित और मर्डर किंग
3. केशव पण्डित के हत्यारे
4. केशव पण्डित और मौत का चक्रव्यूह
5. केशव पण्डित और खून से सनी रोटी
6. केशव पण्डित की जंग
7. केशव पण्डित का इंसाफ 
8. केशव पण्डित और शैतान
9. केशव पण्डित और सिंगही
10. केशव पण्डित और तबाही
11. बम ब्लास्ट
12. केशव पण्डित और कानून का दुश्मन
13. केशव पण्डित और क्राइमवार
14. केशव पण्डित और जल्लाद
15. केशव पण्डित और जख्मी शेर
16. खून बना तेजाब
17. केशव पण्डित और कोबरा
18. केशव पण्डित और जादूगर
19. केशव पण्डित और कानून की देवी


प्रकाश पण्डित नामक Ghost Writer धीरज पॉकेट बुक्स-मेरठ की देन है। 

मंगलवार, 13 नवंबर 2018

किस्सा ओमप्रकाश का

#नकली_उपन्यास_लेखन_कैसे?
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प्रिय पाठकों, लिटरेचर लाइफ गु्रप पर 12 नवम्बर, सन् 2018 ई. को दो मित्रजनों की पोस्टें पढ़ीं। उस पोस्ट पर उन्होंने ओम प्रकाश शर्मा (जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा पर भ्रामक टिप्पणियां कर, जासूसी उपन्यास जगत के 40-50 की वय के पाठकों को भ्रामक जानकारियां देकर दिवंगत लेखक पर आक्षेप लगाए। मैं उन्हें पूरी तरह नकारते हुए जानकारियां दुरुस्त कराने का प्रयास कर रहा हूं। ओम प्रकाश शर्मा (बाद में जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा) और वेद प्रकाश काम्बोज का मैं सन् 1958 ई. से पाठक रहा हूं। हो सकता कुछ महीने पूर्व से उनका लेखन पाठकों के बीच आ गया हो। ये लेखक द्वय, मासिक पत्रिकाओं में लिखा करते थे। (नाॅवल) लेखन की शर्त मासिक पत्रिका प्रकाशक की हर माह नाॅवल देने की होती थी। 112 पेजेज और 27 लाइनों में नाॅवल होते थे, (मूल्य 75 पैसे।) अतः सरलता से हफ्ता-दस में लिखे जा सकते थे।
ओम प्रकाश शर्मा के 450 के आसपास उपन्यास, और 900 के आसपास नकली उपन्यासों को मिलाकर संख्या बतायी गयी है। पाठक द्वय द्वारा। प्रश्न उठाया कि 450 उपन्यास कैसे लिखे जा सकते हैं? आक्षेपित किया कि ओम प्रकाश ने नकली उपन्यास ओम प्रकाश शर्मा के नाम से लिखे-लिखाए।
इस संदर्भ में जानकारी देता हूं कि मेरे सन् 1968-70 के बीच दिल्ली प्रवास के बीच, एक ऐसी घटना घटी जिसने जासूसी उपन्यासकारों के नाम पर भूचाल ला दिया, जो सन् 2000 तथा बाद तक अपना पूरे असर में रहा; जब तक कि जासूसी उपन्यासों की सेल, ढलान पर न आ गयी। हुआ यूं कि उक्त अवधि 1968-70 के बीच, कूचा चेलान, दरियागंज, दिल्ली-6, निवासी एक ओम प्रकाश शर्मा नामधारी सज्जन जो लिखने का शौक रखते थे, उनसे एक प्रकाशक ने, कानूनी सलाह लेकर राजेश, जयन्त, जगत, तारा आदि पात्रों सहित जासूसी उपन्यास लिखाया। ओम प्रकाश शर्मा के नाम से छपा। बेचा।
नोट-उस समय तक पिछले दस वर्षों से लिखते आ रहे ओम प्रकाश शर्मा के दस वर्षों में प्रतिमाह नावल, 10×12=120 मार्केट में आ चुके थे। पाठक उनकी शैली पहचानते थे। बाद में आये ओम प्रकाश शर्मा की शैली में अंतर पकड़कर शिकायतें लिखकर भेजी गयीं। पूर्व के ओम प्रकाश शर्मा ने प्रकाशक का साथ पाकर बाद वाले ओम प्रकाश शर्मा पर मुकदमा किया। अदालती पेशियां पड़ीं। बाद वाले ओम प्रकाश शर्मा मुकदमा चलने के दौरान कई उपन्यास मार्केट में उतार चुके थे। (नोट-मैं उन्हें नकली ओम प्रकाश शर्मा न लिखूंगा, क्योंकि अदालत में नहीं माना) बाद वाले ओम प्रकाश शर्मा के वकील ने अदालत में साबित कर दिया कि उनके मुवक्किल का नाम ओम प्रकाश शर्मा हैं। उन्हें अपने नाम से लिखने-छपने का मौलिक अधिकार है। अदालत ने यह दलील स्वीकार की। पूर्व वाले ओम प्रकाश शर्मा ने उपन्यास के पात्रों को लेकर विरोध रखा, बाद वाले ओम प्रकाश शर्मा के वकील ने अदालत को दलील देते हुए कहा कि राम, सीता, गीता, राजेश, जयन्त, तारा नाम देश के हजारों लोगों के हो सकते हैं, चूंकि पात्र समाज के नामों से ही उठाए जाते हैं, अतः इस अधिकार को भी नहीं छीना जा सकता।
बहरहाल बाद वाले ओम प्रकाश शर्मा ने मुकदमा जीता। अदालत ने अपनी सलाह दी कि नाम के साथ कुछ और आगे-पीछे लगाकर नाम की भ्रामक स्थिति को लेखक स्वयं साफ करें। पूर्व वाले ओम प्रकाश शर्मा ने अपने लिए ‘जनप्रिय लेखक’ नाम रजिस्टर्ड कराया। जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के नाम से नावल, फोटोयुक्त आने लगे।
तो दोस्तों, इस तरह आगे, ओम प्रकाश शर्मा नाम के साथ नाॅवलों के छपने का सिलसिला शुरू हुआ तो महीने में दिल्ली-मेरठ से 50-60 उपन्यास आने लगे। जिनकी संख्या समीक्षक द्वय ने 900 लिखी वे कई हजार में है जिन्हीं अब नकली कहने में परहेज नहीं।
जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के 450 उपन्यास पर सवाल उठाने वालों को ध्यान में लाना आवश्यक है कि पूर्व में 120 उपन्यास की बात 10 वर्षों में मैंने लिखी, अगले 30 वर्षों को और जोड़ लीजिए 68 से 98 जबकि उपन्यास लेखन-पाठन का स्वर्णिम काल था तो 30×12=360़120=480 उपन्यास बनते हैं। कुछ अपवाद स्वरूप समय में न लिखा तो तीस की संख्या घटकर 450 रह जाती है। जो अक्षरशः सही है। जनप्रिय ओम प्रकाश ने कभी नकली नाॅवल नहीं लिखा। उन्हें जब एक उपन्यास के प्रथम एडिसन की रायल्टी दस हजार रुपये मिलते थे तब नकली ओम प्रकाश शर्मा पाण्डुलिपि लिखने वाले लेखक, 60-100 रुपये के बीच पारश्रमिक पाते थे। सहज में समझ में आने वाली बात है कि 10,000 रुपये एक प्रिण्ट के लेने वाला लेखक 60-100 रुपये में नाॅवल नकली क्यों लिखेगा? एक बालक बुद्धि की भी समझ में यह बात नहीं आने वाली।
ओम प्रकाश शर्मा नाम के जाली उपन्यासों की संख्या 900 में नहीं 9,000 से ऊपर हो सकती है।
जनप्रिय ओम प्रकाश के साथ मैंने वेद प्रकाश काम्बोज के नाम को भी खास मकसद से लिखा है। सन् 1974-75 में वेद प्रकाश शर्मा जी जब लेखन क्षेत्र में आये तो अदालती फैसले को निगाह में रखते हुए वेद प्रकाश काम्बोज के पात्रों विजय-रघुनाथ को लेकर लेखन की शुरूआत की। उन्होंने मेहनत की कामयाबी के झण्डे गाड़े। पर न भूलना चाहिए कि शुरूआती दिनों में वेद प्रकाश काम्बोज और विजय-रघुनाथ सीरीज के नाम की गुडविल शामिल थी।

-आबिद रिजवी
8218846970
दिनांक-13 नवम्बर, 2018

ओमप्रकाश शर्मा- एक रोचक किस्सा

ओमप्रकाश शर्मा से जनप्रिय लेखक बनने की कहानी
उपन्यास जगत के चर्चित लेखक ओमप्रकाश को कौन नहीं जानता।
अरे! मैं भी भूल गया भाई। ओमप्रकाश भी तो दो हैं ना अब आप कहां भटक गये।
जगन, जगत, पचिया, बंदूक सिंह जैसे पात्रों को लिखने वाले ओमप्रकाश शर्मा।
अब भी नहीं पहचाने तो अब हम बोल देते हैं जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा।
अच्छा अब पहचाना है।
   तो मित्रों कोई लेखक अपने पहले उपन्यास से तो जनप्रिय होता नहीं इसलिए उसे जनप्रिय बनने के लिए कुछ ऐसा लिखना होगा की वह वास्तव में जनप्रिय बन सके।
   और इन्होंने ऐसा ही लिखा की पाठक इनके उपन्यास का इंतजार करते रहते थे।
   इनकी लोकप्रियता इस कदर थी की उपन्यास जगत में एक और ओमप्रकाश शर्मा आ गये।
अब दो ओमप्रकाश शर्मा।
अब पाठक किसे पढे।
कौन असली- कौन नकली।
इस असली- नकली की लङाई में पाठक भटकता रहता है।
हालांकि नकली किसी को भी नहीं कहा जा सकता।
अब दोनों ओमप्रकाश शर्मा।
  तो मित्रों प्रथम ओमप्रकाश शर्मा इस बात को लेकर अदालत पहुंच गये की मेरे नाम से कोई और लेखन कर रहा है जिसके कारण पाठक से धोखा हो रहा है।
अदालत में द्वितीय ओमप्रकाश शर्मा को बुलाया गया।
तो द्वितीय ओमप्रकाश शर्मा ने कहा, -" महोदय मेरा वास्तविक नाम ओमप्रकाश शर्मा है और में भी एक लेखक हूँ । क्या एक नाम से दो लेखक नहीं हो सकते।"
अब जज महोदय ने प्रथम ओमप्रकाश शर्मा जी से कहा , " आप दोनों ही ओमप्रकाश शर्मा हो। इसलिए किसी को लेखन से मना तो नहर किया जा सकता। अतः आप अपने उपन्यास पर अपना चित्र प्रकाशित कीजिएगा।"
ओमप्रकाश शर्मा की तरफ से फिर आपत्ति आयी, कि जब द्वितीय ओमप्रकाश शर्मा भी अपना चित्र लगाना आरम्भ कर देंगे तो पाठक फिर भ्रमित होगा।"
न्यायाधीश ने कहा, -" चलो, फिर आप अपने नाम के आगे- पीछे कोई उपाधि या उपनाम लगा लो।"
यहाँ मामला कुछ जचा।
काफी सोच-विचार के बाद ओमप्रकाश शर्मा जी ने अपने नाम के आगे जनप्रिय लेखक लगाना आरम्भ किया।
इस प्रकार जनता के प्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा से जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा बन गये।
- आबिद रिजवी जी के स्मृति कोश से।
 

सोमवार, 12 नवंबर 2018

लेखक मित्र

बायें से इकराम फरीदी जी, गुरप्रीत सिंह, वेदप्रकाश कंबोज जी, राममेहर जी, बबलु जाखड़।
लेखक इकराम फरीदी जी के साथ
लेखक कंवल शर्मा जी के साथ। (यूथ क्लब शुभारंभ पर)
वेदप्रकाश कंबोज जी और इकराम‌ फरीदी जी

दिल्ली यात्रा के दौरान 3.11.2018 को लेखकगण के साथ।
1. वेदप्रकाश कंबोज
2. इकराम फरीदी
3. कंवल शर्मा
4. वेदप्रकाश कंबोज जी और इकराम फरीदी जी


शनिवार, 10 नवंबर 2018

आदर्श -मनोरंजन साहित्य- संतोष पाठक

आदर्श साहित्य बनाम मनोरंजक साहित्य - संतोष पाठक

मेरा निजी ख्याल है कि मुख्यधारा के साहित्य और लुग्दी साहित्य को ‘आदर्श साहित्य‘ और ‘मनोरंजक साहित्य‘ के नाम से जाना जाना चाहिए। उक्त दोनों नाम ऐसे हैं जो दोनों को तत्काल अलग अलग कर देने में पूरी तरह सक्षम हैं।
              इससे दोनों की अपनी निजी पहचान कायम होती है, जो कि उनके बारे में बात करते वक्त सहज ही समझ में आ जाती है कि बात आखिर हो किसकी रही है।
वैसे भी अब लुग्दी, लुग्दी ना रहा, वो तो इम्पोर्टेड पेपर पर छपने लगा है, फिर क्यों हम आज भी उसे लुग्दी के नाम से ही संबोधित करते रहें।
                  अब मैं मुख्य मुद्दे पर आता हूं। किसने क्या पढ़ा और किसने क्या नहीं पढ़ा! किसे कौन सा लेखक पसंद है और किसे कौन सा लेखक पढ़ने के काबिल ही नहीं लगता! ये बात कोई मायने नहीं रखती इसलिए इसे बहस का मुद्दा बनाना ही बेकार है।
                     अब बात आती है आदर्श साहित्य का आज के दौर में कम पाॅपुलर होना, तो जनाब जरा सोचकर देखिए, एक बच्चा जिसे प्ले स्कूल में ही क से कबूतर की बजाय ए फाॅर एप्पल का ज्ञान दिया जाने लगता है, वो क्या जीवन में कभी कंकाल, कामायनी, आधा गांव, धरती धन न अपना, से लेकर आज के दौर में शह और मात, एक इंच मुस्कान, फिजिक्स कैमेस्ट्री और अलजबरा, आवान इत्यादि किताबों के साथ जुड़ पायेगा। जुड़ेगा तो कैसे जुड़ेगा? सच्चाई तो ये है कि इन या इनके जैसी हजारों की तादात में लिखी जा चुकी रचनायें उसके सिर के ऊपर से गुजर जायेगी। इसलिए गुजर जायेगी क्योंकि उसे पढ़ने के हिंदी का जो ज्ञान अनिवार्य है उससे वो वंचित होगा। मैंने जब फिजिक्स कैमेस्ट्री और अलजबरा नामक कहानी पढ़ी थी तो उसके मर्म तक पहुंचने के लिए उसे तीन बार पढ़नी पड़ी थी जबकि मैं उस दौर में हिंदी साहित्य से ना सिर्फ एमए कर रहा था बल्कि हिंदी अकादमी द्वारा उत्कृष्ट कथा लेखन के सम्मानित किया जा चुका था। तीन बार इसलिए पढ़ी क्योंकि मेरे मन में कहीं ना कहीं ये बात जरूर थी ‘हंस‘ जैसी पत्रिका में छपी कोई कहानी निरउद्देश्य हरगिज भी नहीं हो सकती थी। यही हाल राजेंद्र यादव जी के शह और मात के साथ हुआ।
कहने का तात्पर्य ये कोई कहानी या पुस्तक सिर्फ इसलिए हेय नहीं हो जाती क्योंकि वो हमारी समझ से बाहर है, उल्टा ये उसकी उत्कृष्टता को दर्शाता है। जाहिर सी बात है एक पीएचडी कर चुका लेखक जब कुछ लिखेगा तो उसकी बातों के मर्म तक पहुंचने के लिए हमें कम से कम एमए की उपाधि तो हासिल होनी ही चाहिए। यही वजह है कि आदर्श साहित्य की कई एक पंक्तियां ऐसी निकल आती हैं जिनका अर्थ तलाशने की कोशिश में कई कई पन्ने भर दिये जाते हैं।
                  आदर्श साहित्य भाषा के साथ-साथ, समाज को उन्नति प्रदान करता है। वो समाज की कुरीतियों उसकी खमियों के विरूद्ध आवाज बुलंद करता है। वो लगातार समाज को एक नई दिशा देने की कोशिश में लगा रहता है। वो ठीक वैसी ही जिम्मेदारी निभाता है जैसा बाॅर्डर पर खड़ा एक सैनिक निभाता है। बस दोनों का कार्यक्षेत्र अलग होता है दोनों अपने अपने स्तर पर अपने कर्म को अंजाम देते हैं।
ऐसे में मनोरंजक साहित्य को उसकी तुलना में खड़ा कर देना क्या सूरज को मोमबत्ती से कंपेयर करने जैसा नहीं होगा।
               सच्चाई यही है कि मनोरंजक साहित्य लेखक को समृद्ध कर सकता है, पाठक को चार-पांच घंटे का मनोरंजन प्रदान कर सकता है। वो भाषा के सैकड़ों नये पाठक पैदा कर सकता है, मगर सामाजिक स्तर पर उसका योगदान नागण्य ही होता है।  ऐसा ही फिल्मों के साथ होता है। जरा परेश रावल जी की फिल्म रोड टू संगम देखिए और फिर आक्रोश देखिए। फिर हेरा फेरी देखिए, दोनों में आपको आदर्श साहित्य और मनोरंजक साहित्य जैसा ही अंतर देखने को मिलेगा। बीच में कुछ फिल्में ओ माई गाॅड जैसी भी आ जाती हैं, जिसमें मनोरंजन के साथ-साथ एक खास उद्देश लिए हुए होती हैं।  हो सकता है हममें से कुछ लोगों ने ‘रोड टू संगम‘ देखा भी ना हो, या घर पर देखते वक्त बीच में ही छोड़ दिया हो। मगर इसका मतलब ये हरगिज भी नहीं है कि फिल्म अच्छी नहीं थी! हां कमाई के लिहाज से फिल्म निचले पायदान पर ही रही और उसने रहना भी था।
अगर हम ये समझते हैं कि आदर्श साहित्य का कोई लेखक मनोरंजक साहित्य नहीं लिख सकता इसलिए वो आदर्श साहित्य से पल्ला नहीं झाड़ पाता तो इससे बढ़कर कोई अहमकाना बात हो ही नहीं सकती।
अंत में सिर्फ इतना कहूंगा कि आदर्श साहित्य के सामने मनोरंजक साहित्य उद्देश के मामले में सूरज के आगे दीपक जैसा ही है।
                      बहरहाल ये मेरी निजी सोच है, इससे आप सभी महानुभावों में से किसी एक का भी सहमत होना कतई जरूरी नहीं है। क्योंकि हर पाठक के पास एक अलग किस्म का तराजू होता है जिसपर वो किसी रचना या उसके लेखक को तौलता है, तौलकर उससे हासिल का अंदाजा लगाता है और ये फैसला करता है कि भविष्य में उसे उक्त लेखक की किसी रचना को पढ़ना है या नहीं पढ़ना।
बावजूद उपरोक्त बातों के मुझे ये स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं कि क्राइम फिक्शन मेरा पसंदीदा विषय है। पढ़ने के लिए भी और लिखने के लिए भी।
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लेखक- संतोष पाठक
संतोष जी मूलतः उपन्यासकार हैं। इनके कई उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं।
संतोष पाठक जी के संबंध में जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें। संतोष पाठक

संतोष पाठक


बुधवार, 7 नवंबर 2018

आशीर्वाद

आशीर्वाद नामक लेखक एक Ghost writer हैं। इस नाम से समानता रखते और भी कई Ghost writer मिल जायेंगे।
 आशीर्वाद नामक लेखक 'राधा पॉकेट बुक्स-मेरठ' की देन है। आशीर्वाद 'केशव पण्डित' सीरिज के उपन्यास लिखते थे।

आशीर्वाद के उपन्यास
1. शिकार शिकारी का
2.कानून की तलवार
4. गोरे मुजरिम, काले धंधे
5.

तरुण इंजिनियर

तरुण इंजिनियर एक बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी हैं।  उन्होंने कई विधायों में‌ लिखा है।  तरुण इंजिनियर एक ऐसे उपन्यासकार हैं जिन्होंने कभी भी कलम से साथ बंधकर लिखना नहीं सीखा...जो दिल में आता है वही लिख देते हैं...कभी फिल्मों के लिए गीत लिख देते हैं...तो कभी फिल्मों की पटकथा....कभी गजलें‌ लिखने लिखते हैं....तो कभी इंग्लिश उपन्यास.... (डाॅंट टच मी उपन्यास से)
    उपन्यास के अलावा भी तरुण साहब ने अन्य कई विषयों पर लेखन कार्य किया है।
    तरुण इंजिनियर दिल्ली के निवासी हैं। जो मूलतः उपन्यास क्षेत्र में सामाजिक उपन्यासकार हैं लेकिन सामाजिक उपन्यासों के साथ -साथ इन्होंने जासूसी उपन्यास भी लिखे हैं। तरुण इंजिनियर की एक अलग विशेषता है वह है इनके लिखे 'हास्य उपन्यास' जो की मेरे विचार से उपन्यास जगत में एक नया प्रयोग था।

तरुण इंजिनियर के उपन्यास
1. एक और लैला
2. कंवारी माँ
3. माँ और महबूबा
4. माशूका
5.  आशिक आवारा
6. प्यार एक नशा है
7. ये कैसा प्यार है
8. मांग भरो मेरी खून से
9. डाॅट टच मी (हास्य उपन्यास)- राधा पॉकेट बुक्स- मेरठ
10. ये दिल्ली है मेरी जान (हास्य उपन्यास)

जासूसी उपन्यास
11. बैंक राॅबरी
12. खतरनाक स्पाईडर
13. वतन का बेटा
14. सरहद मांगे खून- प्रथम भाग ( जतिन सीरिज)
15.  मेरा भारत महान- द्वितीय भाग  (जतिन सीरिज)


लेखक संपर्क
- तरुण इंजिनियर
 साहिल विला, जी.9/ बी.
स्ट्रीट नंबर- 1, शंकरपुर
नयी दिल्ली- 110092
Email- tarunengineer2003@yahoo.com
Mob - 9899153952




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मेरठ उपन्यास यात्रा-01

 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...