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रविवार, 17 दिसंबर 2017

गजाला-प्रथम भारतीय हिंदी जासूसी महिला उपन्यासकार

गजाला करीम लोकप्रिय उपन्यास जगत का एक वह नाम है जिसने कम समय में ही अपनी एक अलग पहचान स्थापित कर ली थी।
     स्वर्गीय वेदप्रकाश शर्मा की इस शिष्या ने बाल्यावस्था में ही जासूसी उपन्यास लेखन का शुभारंभ कर दिया और कम समय में ही प्रसिद्धि प्राप्त कर ली।
स्वयं वेदप्रकाश शर्मा जी ने गजाला जी के बारे में लिखा था, -" यह गर्व की बात है कि भारत की पहली महिला जासूसी उपन्यासकार मेरठ शहर की है। गजाला मुझे अपना गुरु मानती है, मैं इस काबिल नहीं हूँ । जब‌ मैंने उनमें लिखने की प्रतिभा और जज्बा देखा, तो उन्हें लेखन के कुछ गुर बताये थे। उन्होंने अभी तक जितने भी उपन्यास लिखे हैं, उनमें से कुछ मैंने पढे हैं। उनमें कथानक चयन की सलाहियत मौजूद है। दरअसल, जासूसी लेखन वो विधा है, जिस पर हमेशा से ही, खासकर भारत में पुरुषों का एकाधिकार रहा है। गजाला ने यह साबित किया है कि भारत कि महिलाएं भी जासूसी उपन्यास लिख सकती हैं।"
      
   बाल्यावस्था का फायदा प्रकाशकों ने इस तरह से उठाया की गजाला जी की प्रतिभा का इस्तेमाल गलत रूप से किया गया। इनके प्रारंभिक उपन्यासों को किसी और के नाम से प्रकाशित किया गया लेकिन प्रतिभा आखिर कहां तक छुपी रहती।
           कुछ पाठकों को इनके उपन्यासों के नाम पर आपत्ति हो सकती है लेकिन इनके उपन्यासों के नाम भी प्रकाशक महोदय अपने लालच के लिए बदल देते थे।
वेदप्रकाश शर्मा जी ने अपने उपन्यासों में‌ अश्लीलता का हमेशा विरोध किया है और फिर उनकी शिष्या के उपन्यासों में अश्लील कहां हो सकती है। सिर्फ उपन्यासों के शीर्षक जो कुछ उत्तेजक नजर आते हैं वह सिर्फ प्रकाशकों की देन है।
        कुछ विशेष वजह से गजला जी ने उपन्यास जगत से दूरी बना ली।
हमारी गजाला जी से यही प्रार्थना है की वे पुन: लेखन क्षेत्र में सक्रिय हों।
  अगर आप गजाला जी के बारे में जानाना चाहते हैं तो निम्न लिंक से उनकी आत्मकथा डाउनलोड करके पढें।
  अगर आप गजाला जी से संबंधित कोई भी प्रश्न करना चाहते हैं तो ब्लॉग के कमेंट बाॅक्स में लिखें।
गजाला करीम की आत्मकथा यहाँ उपलब्ध है।
क्लिक करें- आत्मकथा
नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।


24 टिप्‍पणियां:

  1. काबिले तारीफ भाई।
    अभी पढ़नी सुरु कर रहा हु।

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  2. Ghazala Kareem ji आपकी आत्मकथाअभी पढ कर खतम की आपका लेख बहुत ही सादगी भरा है तथा मर्मस्पर्शी है। आपके लेख से यह पूरी तरह जाहिर हो रहा है की आप बहुत ज्यादा हताशा और अकेलापन महसूस कर रही है और यह जानकर दुख हुआ की आप शारिरीक तथा मानसिक दुविधाओं की वजह से भविष्य मे लेखन शेत्र में अपना योगदान नही दे पायेंगी।आपके लिखने का अंदाज़बहुत ही बेहतरीन है , आपके संघर्ष तथा उपलब्धियों को सलाम, अगर आप भविष्य मै लेखन शेत्र मै
    पुन: प्रवेश करती है तो मै तो आपको जरुर पढना चाहूँगा और आपको ध्यान दिलाना चाहूँगा की social media पूरे जलाल पर है आज आप पाठको से सीधे सम्पर्क में है और यकीन जानिए अच्छे लेखको का हमेशा स्वागत रहेंगा। भविष्य के लिये शुभकामनायें और अपनी autobiography share करने के लिये धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपने आत्मकथा पढी और अपने विचार व्यक्त किये। आपको आत्मकथा अच्छी लगी।
      धन्यवाद।

      हटाएं
  3. अभी आपकी ऑटोबायोग्राफी पढ़ी।
    बहुत ही मार्मिक एवं सच्चाई से परिचित करवाती लगी।
    आपके लेखन की भाषा शैली बहुत ही सिंपल और दिल को छू लेने वाली रही।
    बहुत कम समय मे आपने 16 उपन्यास लिखे ये आपकी काबिलियत ही का नतीजा है।
    आपके साथ हुए कटु अनुभव के लिए क्षमाप्रार्थी है और बहुत बहुत शुक्रिया की आपने हमे अपनी बायोग्राफी से परिचित करवाया।
    वाकई में आपने इतिहास लिखा है।
    ये कोई मजाक नही।
    की महज छोटी उम्र में वो मुकाम हासिल करना जो आपने किया।

    जो गुजर गया वो गुजर गया।
    कहते भी है
    पास्ट is हिस्ट्री
    फ्यूचर is मिस्ट्री
    प्रेजेंट is प्रेजेंट।
    एक बार फिर जब आज आपने कलम उठा ली है तो इससे लिखते ही जाईये
    अपने उस दोस्त के उपहार को उपहार बनाइये
    आज बहुत कुछ बदल चुका है।
    खुद को भी बदलिए


    वो कहा भी जाता है
    की
    "मानव होना भाग्य है
    तो लेखक होना सौभाग्य है।"

    जवाब देंहटाएं
  4. गजाला जी आपकी ऑटोबायोग्राफी पढ़ी...शुरू से लेकर आखिर तक का वाकया सचाई को व आपके साथ घटित घटनायों को उजागर करता है ...आपका अपने पिता की और प्रेम व कैंसर वाला वाकया दिल को छू गया...परिवार को उनकी बीमारी के बारे में न बताना इत्यादि ....
    में तो एक ही बात कहना चाहता हू की कभी भी परिस्थितियों से न हारे ...बल्कि उनका डट के सामना करे.....
    और अंत में आपसे गुजारिस करूँगा कि आप एक बार फिर से अपनी कलम उठाये और लिखना सुरु करे..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ब्लॉग पर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए धन्यवाद।
      हमारी गजाला जी से यही निवेदन है की वे पुन: लेखन क्षेत्र में सक्रिय हो।

      हटाएं
  5. अभी पढ़कर खत्म की बहुत है उम्दा लिखा दिदी आपने कुछ समय पहले तक मैं समझता था कि आपके नाम से घोस्ट राइटिंग होती है लेकिन कुछ दिन पहले गुरप्रीत जी ने आपके बारे में बताया कि जीवनी आने वाली है । इस पल का कई दिन इंतजार किया आपने बहुत ही सटीक प्रहार किया है हमारे पुरुष प्रधान समाज पर मेरी नजर में आपको हतोत्साहित करने का मुख्य कारण यही लगा कि कुछ प्रकाशक व लेखक इस बात को हजम नही कर पाए कि एक लड़की उनसे आगे निकल रही है जिस समय आपने लेखन छोड़ा वो दौर उपन्यास जगत बहुत ही बुरा दौर था उसी दौर में बहुत से राइटर इस फील्ड से चले गए । मैं मानता हूं आपके साथ गलत हुआ और आपने पूरे हौसले से उनका सामना भी किया । लेकिन अब समय बदल रहा है । जिन्होंने आपके साथ गलत किया शायद ही आज उनका कोई नाम लेवा हो । जालिम खुद ही फना हो गए आपको फना करते करते आज भी आपकी लेखनी में धार है जो बड़ों बड़ों को पछाड़ सकती है आज भी हम जैसे कुछ दीवाने इस पुस्तकों के संसार मे जीते हैं अगर हो सके तो कलम उठाएं और फिर छा जाए । आपकी जीवनी में कुछ सवाल अनुत्तरित रह गए आशा है भविष्य में जरूर जवाब मिलेंगे

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  6. आपके सब उपन्यास क्या तुलसी पेपर बुक्स से ही आये थे या किसी और प्रकाशन से भी ?
    अब मैं तो आपके पुराने नावेल ढूंढना शुरू कर रहा हु।

    जवाब देंहटाएं
  7. गजाला जी की इस पोस्ट को फेसबुक पर शेयर किया गया था। वहाँ बहुत से पाठक मित्रों के कमेंट आये।
    जो पाठक मित्र ब्लॉग पर कमेंट नहीं कर पाये, उनके कमेंट फेसबुक से यहाँ PEST किये जा रहे हैं।

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. - देव महादेव जी की टिप्पणी फेसबुक से।

    कल रात यानी 18 दिसम्बर को जब मैं गजाला करीम जी की आत्मकथा पढ़ रहा था, तो उनके जीवन में जो कठिनाई हुई लेखन को लेकर और वो फिर भी आगे बढी।
    अपनी बुक्स को छपवाया और नाम और शोहरत बटोरी वो प्रेरणादायक है हर किसी के लिय।

    और वो वाक्या जब वो वेद सर से मिले गजब ..
    वेद जी नही रहे इसका मुझे भी बहुत
    दुख हुआ था ..तो आपको कितना दुख हुआ होगा ये मैं सोच भी नही सकता।
    मुझे तो लगा था की मैं अब कोई बुक पढ़ हि नही पाऊंगा !
    लेकिन फिर जैसे पढने लगा..

    और अंत में बस ये कहूँगा आप कोशिश कीजिये उठीये तैयार होईये और फिर लिखना शुरू
    कीजिये हम आपके साथ है ..

    मुझे ज्यादा लिखना नही आता फिर भी आपकी आत्मकथा पढ़ कर जो अच्छा लगा लिख दिया ..
    कोई गलती हो तो माफ कर दीजियेगा
    अापका एक फैन ...

    देव महादेव ....

    फेसबुक लिंक
    https://m.facebook.com/groups/1902203963353781?view=permalink&id=1994391534135023

    जवाब देंहटाएं
  10. - आबिद रिजवी जी की टिप्पणी फेसबुक से।

    आप उत्साही जनों का स्नेह पाकर, यह भावुक लड़की ' ग़ज़ला 'ज़रूर उत्साहित होगी, लिखना शुरू करेगी, ऐसी मै उम्मीद करता हूँ । कुदरत ने इसे फ़न का इनाम दिया है, यूँ भी कहूँ कि हनुमान जी को अपनी शक्ति का आभास-स्मरण कराया गया तो उन्होंने अपनी शक्ति समेटी थी ,कुछ इसी तरह ग़ज़ाला है । ग़ज़ाला को अपनी योग्यता की पहचान कर लेनी चाहिए । यह सही वक्त है क़लम सम्भालने का। मैं दुआ करता हूँ।
    --
    आबिद रिजवी- लेखक (मेरठ)

    फेसबुक लिंक
    https://www.facebook.com/groups/1902203963353781/permalink/1993908177516692/

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  11. - कैलाशचन्द्र जी की टिप्पणी फेसबुक के ' जासूसी नावल संसार' ग्रुप से।

    Gurupreet Singh ji ko aapki autobiography hame available karane ke liye dhanyawd....

    जवाब देंहटाएं
  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  13. सुश्री ग़ज़ाला जी की मार्मिक आत्मकथा पढ़ी। निश्चय ही उनके साथ अन्याय हुआ है। आज भी समय कोई खास नहीं बदला है। आज भी महिलाएं भेदभाव पूर्ण और कुत्सित भावनाओं से प्रेरित व्यवहार से पीड़ित हैं। कोई महिला अगर अपनी लेखनी से सम्मान प्राप्त करती है तो तत्काल कुंठित मानसिकता के लोग उस सम्मान को महिला की योग्यता के कारण मिला सम्मान न मानकर उसके महिला होने के कारण मिला सम्मान कहने लगते हैं और इसमें जो कुत्सित भाव होते हैं, जग जाहिर हैं।
    इसलिए ग़ज़ाला जी ऐसी ग़लतफ़हमी में पुनः लेखन प्रारम्भ न करें कि इस पारी में लोग स्वागत करेंगे। क्योंकि संभवतः वो लोग अभी भी सक्रिय हैं जिन्होंने उन्हें इस घोर कष्टदायक स्थिति और दूसरे लोगों में भी उस कुंठित मानसिकता के लोग भरे पड़े हैं।
    मुझे बाग़वान फिल्म का संवाद याद आता है - " औरतों के लिए दुनिया कभी नहीं बदलती"

    वैसे उनका स्वागत है। यद्यपि मैंने उनका कोई उपन्यास नहीं पढ़ा। तथापि मुझे विश्वास है कि पाठक उनका खुले ह्रदय से स्वागत करेंगे क्योंकि अच्छे जासूसी लेखन का हिंदी पाठक ने सदा स्वागत किया है।

    इस पोस्ट के शीर्षक के विषय में मुझे कुछ उलझन है। ग़ज़ाला जी को भारत की प्रथम जासूसी महिला उपन्यासकार कहा गया है। जबकि उनसे पहले श्रीमती चन्दर्कांता जैन जी ने "चन्दर" के लेखकीय नाम से और सुश्री कुसुम गुप्ता जी ने भी अनेक बेहतरीन हिंदी जासूसी उपन्यासों की रचना की है। इस विषय में श्री गुरप्रीत जी और अन्य विद्वतजन प्रकाश डालेंगे तो स्थिति स्पष्ट हो सकेगी।

    ग़ज़ाला जी शीघ्र ही अपनी नयी और मौलिक रचनाओं के साथ हिंदी जासूसी संसार में पुनर्प्रवेश करेंगी, इस प्रत्याशा में सभी को बधाइयाँ।

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    उत्तर
    1. इन्हें देश की प्रथम महिला जासूस लेखिका का खिताब वेदप्रकाश शर्मा जी ने दिया था।
      अब इनसे पूर्व अगर कोई महिला जासूसी उपन्यासकार थी तो यह खिताब उन्हीं को ही मिलना चाहिए।
      जहाँ तक मेरी जानकारी है चन्दर नाम से कोई पुरुष लेखक थे, जो अपनी पत्नी के साथ मिलकर उपन्यास लिखते थे।
      आपके विशेष सुझाव/जानकारी के लिए धन्यवाद।

      हटाएं
  14. सर,
    प्यासी धारा नाम से एक उपन्यास है, हमें याद नहीं है किसका है,
    पढ़ना चाहते हैं उसे अगर आपको जानकारी हो तो कृपया अवगत करायें....
    उत्तर की प्रतीक्षा में..

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत कुछ कहने की इच्छा थी पर वो क्या है कि गज़ाला जी ने ब्लॉकास्त्र का प्रयोग कर दिया तो मुझे फिर ब्लॉग तक आना पड़ा। मुझे लगता है कि मेरा ये कमेंट हटा लिया जाएगा पर शायद इसे उससे पचले कोई सुधी पाठक पढ़ ले।
    तो दोस्तों, ये आत्मकथा जो सिर्फ जहानुभूति बटोरने का जरिया है। वास्तव में लेखिका जी किन्ही खास कारणों से ये भी मानती हैं कि इस देश मे मुस्लिमों के खिलाफ अत्याचार हो रहे हैं, उन्हें उनके हक से महरूम रखा जा रहा है। वैसे मेरा मानना है कि कम से कम प्रशंसक और फनकार इस धर्म की दीवार से परे होतेहैं । यहीं देख लीजिए गज़ाला जी। आपके अपने प्रशंसकों में से ,जिन्होंने कमेंट किये हैं या नही किये, सब उस मज़हबी उन्माद से परे हैं जिनमे आप सर से पांव तक फंसी हैं।
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. भूषण जी, इस पोस्ट पर कोई भी धार्मिक बात नहीं है।
      आपका कमेंट पोस्ट के अनुकूल नहीं है।
      भविष्य में ध्यान रखें।

      हटाएं
    2. मैंने कब कहा कि यहां कोई धार्मिक बात कही है। मैंने तो promoted, sympathized मोहतरमा को कहा है कि उनके साथ सहानुभूति रखने वालों में, उन्हें repromote करने वाले लोग किसी धार्मिक उन्माद के हवाले नही हैं तो वो खुद भी उससे बाहर आएं। ऐसा करके वो एक सच्चे लेखक के कर्म से इंसाफ कर पाएंगी।
      बहरहाल मेरा कमेंट डिलीट न करने का धन्यवाद।

      हटाएं
    3. मैंने कब कहा कि यहां कोई धार्मिक बात कही है। मैंने तो promoted, sympathized मोहतरमा को कहा है कि उनके साथ सहानुभूति रखने वालों में, उन्हें repromote करने वाले लोग किसी धार्मिक उन्माद के हवाले नही हैं तो वो खुद भी उससे बाहर आएं। ऐसा करके वो एक सच्चे लेखक के कर्म से इंसाफ कर पाएंगी।
      बहरहाल मेरा कमेंट डिलीट न करने का धन्यवाद।

      हटाएं
  16. उक्त विषय पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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